पर्यावरण मंत्रालय ने मांगी दयारा बुग्याल के सफल ट्रीटमेंट की रिपोर्ट

उत्तरकाशी: समुद्रतल से 10500 फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले में स्थित दयारा बुग्याल (मखमली घास का मैदान) को बचाने में कारगर सिद्ध हुए ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट को लेकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने रिपोर्ट मांगी है। मंत्रालय की ओर से उत्तरकाशी वन प्रभाग को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि इस ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट को अन्य हिमालयी राज्यों में भी बुग्यालों के संरक्षण में आजमाया जाएगा।

जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 50 किमी दूर 406 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले दयारा बुग्याल के करीब 600 मीटर हिस्से का मार्च से जून के मध्य ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट किया गया। इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। भू-क्षरण वाले क्षेत्र के 50 फीसद से अधिक हिस्से में वनस्पति उग आई है। भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) और उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) के वैज्ञानिकों ने भी इस ट्रीटमेंट की सराहना करते हुए इसे बुग्यालों के संरक्षण में कारगर माना। इसके साथ ही नमामि गंगे के पुरस्कार प्रस्तुतिकरण में भी इस ट्रीटमेंट को सराहना मिली।

उत्तरकाशी वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी संदीप कुमार ने बताया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से उनके पास पत्र आया है। मंत्रालय ने ईको फ्रेंडली ट्रीटमेंट को एक सफल प्रयोग माना है और ट्रीटमेंट करने के तरीके पर रिपोर्ट मांगी है। बताया कि उन्होंने रिपोर्ट तैयार कर उसका फोटो और वीडियो मंत्रालय को भेज दिया है। पत्र में यह भी कहा गया है कि देश के अन्य हिमालयी राज्यों में भी इस तकनीक से बुग्यालों का संरक्षण कराया जाएगा।

ऐसे किया गया है ट्रीटमेंट

जूट व नारियल के रेशों से तैयार जाल (केयर नेट), बांस के खूंट और पिरुल (चीड़ की पत्ती) के रोल से चेक डैम बनाकर बुग्याल का ट्रीटमेंट किया गया। इससे कटाव रुकने के साथ ही कटाव वाले क्षेत्र में बुग्याली क्षेत्र की वनस्पति भी उग आई है।

दूसरे चरण का ट्रीटमेंट होगा शुरू

दयारा बुग्याल में कटाव व भूक्षरण वालेअन्य स्थानों पर ट्रीटमेंट का कार्य शुरू किया जा रहा है। प्रभागीय वनाधिकारी संदीप कुमार ने बताया कि स्वारी गाड और पापड़ गाड नदियों का उद्गम स्थल दयारा बुग्याल ही है। उद्गम क्षेत्र में कटाव से बुग्याल को नुकसान पहुंच रहा है। स्वारी गाड वाले क्षेत्र में ट्रीटमेंट हो चुका है। अब पापड़ गाड वाले क्षेत्र में वन पंचायतों के माध्यम से ट्रीटमेंट का कार्य किया जा रहा है। इन दिनों वन पंचायतें 80 क्विंटल पिरुल एकत्र कर रही हैं। सितंबर आखिर तक ट्रीटमेंट का कार्य शुरू हो जाएगा।

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