देहरादून: दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट समेत देश की कई चोटियों की खोज करने वाले सर जॉर्ज एवरेस्ट ने जीवन का एक लंबा अर्सा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था। वेल्स के इस सर्वेयर एवं जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी। इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ। इससे पहले इस चोटी को ‘पीक-15’ नाम से जाना जाता था। मसूरी स्थित सर जार्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से वर्ष 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा। जार्ज वर्ष 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे।
पहाड़ों की रानी मसूरी, हाथीपांव के समीप स्थित 172 एकड़ के बीचों बीच बने सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस (आवासीय परिसर) और इससे लगभग 50 मीटर दूरी पर स्थित प्रयोगशाला (ऑब्जर्वेटरी) का जीर्णोद्धार का कार्य अनलॉक के बाद प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने 18 जनवरी 2019 को प्रारम्भ करवाया था। 23 करोड़ 69 लाख 47 हजार रुपये की लागत से सर जॉर्ज एवरेस्ट (आवासीय परिसर) समेत उसके आसपास के क्षेत्र के जीर्णोद्धार का काम तभी से लगातार चल रहा है।
उत्तराखंड पर्यटन संरचना विकास निवेश कार्यक्रम के तहत एशियन डेवलपमेंट बैंक की तरफ से वित्त पोषित योजना के तहत किये गये सर जॉर्ज एवरेस्ट हेरिटेज हाऊस के पूर्ण हो चुके जीर्णोद्वार कार्य का लोकार्पण 7 दिसम्बर 2021 को प्रदेश के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज द्वारा किया जायेगा।
मसूरी स्थित ऐतिहासिक सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस जो कि पूर्व में बेहद खस्ता हालत में था का जीर्णोद्धार कर इसे मूल स्वरूप को बरकरार रखते हुए अंग्रेजों की तर्ज पर सीमेंट की जगह चक्की में पीस कर बनाए गए मिश्रण से दोबारा बनाया गया है। इसके जीर्णोद्धार में चक्की में चूना, सुर्खी, मेथी और उड़द की दाल को पानी के साथ पीसकर सीमेंट जैसा लेप बना कर लाहौरी ईंटों का प्रयोग किया गया है।