नई दिल्ली (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंडी लोककलाकार कमल नयन डबराल अब नहीं रहे। शनिवार को उनका निधन हो गया। कमल नयन डबराल कई साल तक दिल्ली में रहे और यहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। वे मूलरूप से टिहरी गढ़वाल के रहने वाले थे।
प्रतिभा और कलम के धनी कमल नयन डबराल जी का दिल्ली में निधन हो गया। लेकिन अपने पीछे वो कई यादें छोड़ गए हैं। उत्तराखंडी संगीत का उन्होंने अविस्मरणीय ताना-बाना बुना था। उनका यूं चले जाना बेहद दुखद है, हमारा बचपन उनके गीतों को सुनते सुनते गुज़रा है। उनके कालजयी गीत “खित खित् नि हैसणु कमला, अब तू हवेगे ज्वान कमला”…इस गीत ने बुलंदियों को छुआ था। पोसतू का छुमा मेरी भग्यानी बौ, सियाराम हुंगरालू बाग, कुसुम्बा कोलेण, छुयुं छुयूं मां और ना जाने कितने ऐसे गीत हैं, जिन्हें कमल नयन डबराल ने अपने सुरों से सजाया था।
उत्तराखंड के इस बेमिसाल गीतकार की आवाज अब हमारे दिलों में जिंदा रहेगी। कमल नयन डबराल जी की बिटिया भी अद्भुत प्रतिभा की धनी हैं। सरोजनी डबराल यानी सरू डबराल एक बेहतरीन पेंटर हैं। राज्य समीक्षा की ओर से इस अद्भुत लोकगायक को शत शत नमन।
शोक में है पूरा कला जगत
लोकगायक कमल नयन डबराल के निधन से पूरे उत्तराखंडी कला जगत में शोक की लहर है। सभी कलाकारों ने अपने अपने शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
-शिव दत्त पंत, लोकगायक- मैं डबराल जी के निधन से दुखी हूं। वे समृद्ध लोककला के धनी व्यक्तित्व थे। हमने कई मंचों में साझी प्रस्तुतियां दी हैं। डबराल जी खुद में लोककला के ज्ञाता थे। एक सरल व्यक्तित्व के धनी थे। मैं उन्हें शत शत नमन करता हूं।
-हीरा सिंह राणा, लोककवि एवं गायक- कमल नयन डबराल जी से दशकों पुराना नाता रहा है। उनका कम उम्र में चले जाना सालता है। मैं उनकी कला की कद्र करता हूं। वे हमेशा हमारे बीच प्रेरणा के रूप में जीवित रहेंगे।
-जनार्दन नौटियाल, लोकगायक- कमल नयन डबराल जी के गीत हमारे बीच सदा सदा के लिए हमर हैं। उनकी गायकी को कोई नहीं भूल सकता। आज वे हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी कला सदा अमर रहेगी।
-प्रीतम भरतवाण, जागर सम्राट- पूजनीय डबराल जी हमारे अग्रज थे। लोककला के महारथी थे। उनसे अक्सर दिल्ली में मुलाकात होती रहती थी। उनका अपने लोक से गहरा नाता था। उनके गीत हमारे बीच हमेशा गूंजते रहेंगे।
-राजेंद्र चौहान, संगीतकार- कमल नयन डबराल जी ने हमसे आगे की पीढ़ी का नेतृत्व किया। मैं उन्हें बड़े भाई के रूप में सम्मान देता था। मधुर कंठ और दमदार कलम के धनी डबराल जी हमारे लोककला साहित्य में हमेशा अमर रहेंगे।
-मीना राणा, लोकगायिका- डबराल जी की संगत करने का कई मंचों पर मौका मिला। वे मृदभाषी, सुरीले गायक, मंझे हुए गीतकार और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें कोटि कोटि नमन।