(नेटवर्क 10 संवाददाता ) : बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. चुनाव के ऐलान से पहले आरजेडी में सियासी भूचाल आ गया है. आरजेडी के 5 एमएलसी ने पार्टी छोड़ जेडीयू का दामन थाम लिया. इतना ही नहीं आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. लालू प्रसाद यादव के करीबी रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा देना पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
रघुवंश प्रसाद पूर्व सांसद रामा सिंह को आरजेडी में शामिल किए जाने को लेकर नाराज चल रहे हैं. हालांकि, इससे पहले भी रघुवंश प्रसाद कई बार नाराज हो चुके हैं, लेकिन हर बार लालू उन्हें मना ले जाते हैं. इसी साल फरवरी में लालू यादव ने नाराज रघुवंश से जेल में ही मुलाकात की थी और समझाया था कि आप पार्टी के वरिष्ठ हैं, आप ही नाराज हो जाएंगे तो कैसे काम चलेगा?
- रघुवंश प्रसाद ने आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद छोड़ा
- रघुवंश सिंह ने आरजेडी को सत्ता की बुलंदी तक पहुंचाया
- 1973 में राजनीति में रखा था रघुवंश प्रसाद सिंह ने कदम
रघुवंश प्रसाद आरजेडी के चुनिंदा नेताओं में से है, जिन्होंने पार्टी को बुलंदी पर पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की है. रघुवंश आरजेडी के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं जिनपर कभी भी भ्रष्टाचार या गुंडागर्दी के आरोप नहीं लगे.
लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की कमी हो गई है. रघुवंश प्रसाद ही वह चेहरा माने जाते हैं जो पार्टी के उम्रदराज कार्यकर्ताओं को पार्टी के साथ जोड़े रखने में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं. ऐसे में उनकी नाराजगी आरजेडी और तेजस्वी यादव के लिए काफी मंहगी पड़ सकती है.
समाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद ने गणित में एमएससी और पीएचडी किया है. उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लेना शुरु कर दिया था.1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया. रघुवंश प्रसाद 1977 में पहली मर्तबा विधायक बने थे. बेलसंड से उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चलता रहा. इस बीच 1988 में कर्पूरी ठाकुर का अचानक निधन हो गया.
बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी. लालू प्रसाद यादव कर्पूरी के खाली जूतों पर अपना दावा जता रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस गाढ़े समय में लालू का साथ दिया. यहां से लालू प्रसाद यादव और रघुवंस प्रसगा बीच की करीबी शुरू हुई. 1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुए. रघुवंश प्रसाद सिंह के सामने खड़े थे कांग्रेस के दिग्विजय प्रताप सिंह. इस चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह 2,405 वोटों से हार गए.
रघुवंश चुनाव हार गए थे लेकिन सूबे में जनता दल चुनाव जीतने में कामयाब रहा. लालू प्रसाद यादव नाटकीय अंदाज में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. लालू को 1988 में रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा दी गई मदद याद थी और लिहाजा उन्हें विधान परिषद भेज दिया गया. 1995 में लालू मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिए गए. ऊर्जा और पुनर्वास का महकमा दिया गया.