भांग के व्यवसाय को पहचान देने में जुटी यमकेश्वर की नम्रता

यमकेश्वर : भांग का नाम सुनते ही लोगों को नशे का ख्याल आता है। उत्तराखण्ड के कई लोग मानते है ही भांग पहाड़ के युवाओं की जिंदगी को बर्बाद कर रहा है। ये केवल विनाश करता है ऐसा नहीं है, आज हम आपको एक ऐसे दंपत्ति के बारे में बताने जा रहे हैं जो इस भांग से रोजगार के अवसर पैदा करने की तैयारियों में जुटा है। जी हां यह वहीं भांग है जो नशा करती है लेकिन इस भांग की मदद से नम्रता और गौरव पहाड़ों में रोजगार देने के प्लान में जुटे हुए हैं।

यमकेश्वर ब्लॉक के नम्रता और गौरव भांग की खेती पर फोकस कर रहे हैं। दोनों ने जीपी हेम्प एग्रोवेशन स्टार्टअप्स शुरू किया है। भांग के बीजों और रेशे से रोजाना इस्तेमाल होने वाली वस्तुएं तैयार की जा रही है। दोनों पहाड़ पर रहकर ही काम करना चाहते हैं और लोगों की जिन्दगी बदलना चाहते हैं। अपने इस प्रयास में ये दोनों तेजीे से आगे बढ़ भी रहे हैं। काम को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने उत्तराखंड हैंप एसोसिएशन बनाई है, जिसमें करीब 15 लोग जुड़े हैं।

आकंड़ों की मानें तो उत्तराखंड राज्य में 3.17 लाख हेक्टेयर भूमि बंजर है। यहां सिंचाई के साधन न होने, बंदरों, सुअर व अन्य जंगली जानवरों के कारण सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन बढ़ा है। पेशे से आर्किटेक्ट गौरव और नम्रता भांग की मदद से रामबाण औषधियां, साबुन, लुगदी के बैग, पर्स आदि बाजार में उतार चुके हैं। पिछले दिनो वे भांग पर आधारित अपने उत्पादों को लेकर आईआईएम के उत्तिष्ठा-2019 में भी शिरकत की। वो उत्पादों की ऑनलाइन मार्केटिंग भी करते हैं। गौरव ने बताया कि गांवों में रोजगार पैदा करने के लिए एक लाख से 10 लाख में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई जा सकती है। पॉलिथीन से मुक्ति के लिए भांग के पौधे अहम हो सकती है। इसके रेशे से बायो प्लास्टिक तैयार किया जा सकता है। इससे बनी पॉलिथीन या बोतल फेंक देने पर महज छह घंटे में नष्ट हो जाती है। उन्होंने बताया कि अभी भांग के रेशे से तैयार उत्पादों की कास्ट थोड़ा ज्यादा है। वृहद स्तर पर इसका उद्योग लगाया जाए तो काफी इसके उत्पाद सस्ते और पर्यावरण के लिहाज से अनुकूल भी होंगे। उन्होंने बताया कि इस समय ऋषिकेश में भांग के रेशे से तैयार टीशर्ट, बैग, ट्राउजर आदि नेपाल से आयात हो रहा है। यह प्रदेश में ही तैयार होने लगे तो बेहद सहूलियत होगी।

दंपत्ति की मानें तो भांग के बारे में लोगों को जानकारी कम हैं। इस तरफ भी ध्यान देना जरूरी है। इसके बीज निकालने वाले तेल को एनाया कहा जाता है जिसका मतलब होता है केयर। इससे कई औषधियां बनती हैं। इसका उपयोग खाद्य तेल के रूप में भी कर सकते हैं। वहीं यह जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार तेल जोड़ों के दर्द, स्पाइनल पैन, सिरोसिज जैसे असाध्य बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके पौधे की लुगदी से साबुन भी तैयार किया जा रहा है। भांग के रेशे से ही नोटबुक भी बन सकती है। भांग के रेशे से धागा बनाकर हस्तशिल्प कारीगरों की ओर से बैग, पर्स, कंडी या अन्य उपयोग की वस्तुएं बनाई जा रही है।

भांग से निर्मित उत्पादों को सात से आठ बार तक रिसाइकिल किया जा सकता है। नम्रता और गौरव अब भांग से ईट बनाने की तरफ काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि जल्द ही भांग के पौधों से बनी ईंटों से बनाए घर और स्टे होम नजर आएंगे। इसके अलावा पहाड़ों में यह रोजगार के मौके भी प्रदान करेगा। बता दें कि भांग पर रिसर्च अभी तक सिर्फ विदेशों में ही होती रही है लेकिन बदलते दौर के साथ अब उत्तराखंड के युवा भी भांग की उपयोगिता को समझने लगे हैं। यही कारण है कि अब इसे लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ने लगी है। गौरव और नम्रता जैसे युवा सोच के लोग अगर उत्तराखण्ड में भांग पर काम करने के लिए आगे आयेंगे तो यकीनन इस राज्य में ना सिर्फ रोजगार के अवसर पैदा होंगे बल्कि भांग एक ग्लोबल कारोबार के रूप में अपनी जड़ें मजबूत कर सकता है।

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