प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को गुजरात और राजस्थान में दो आयुर्वेद संस्थानों का उद्घाटन किया. पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना काल में आयुर्वेद की परंपरा ने देश में फायदा किया है, कोरोना काल में हल्दी समेत अन्य चीजों ने इम्युनिटी बूस्टर का काम किया है. उन्होंने कहा, “कोरोना काल में आज दुनिया आयुर्वेद को लेकर कुछ नया जानना चाहती है और इस बारे में रिसर्च कर रही है. देश में वैक्सीन पर ट्रायल चल रहा है, साथ ही दुनिया के करीब सौ से अधिक स्थानों पर आयुर्वेद की औषधि को लेकर रिसर्च चल रही है.”
उन्होंने कहा कि कोरोना काल में पूरी दुनिया में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है. बीते साल की तुलना में इस साल सितंबर में आयुर्वेदिक उत्पादों का निर्यात करीब डेढ गुना बढ़ा है. मसालों के निर्यात में भी काफी बढ़ोतरी दर्ज हुई हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा, “कोरोना से मुकाबले के लिए जब कोई प्रभावी तरीका नहीं था तो भारत के घर-घर में हल्दी, काढ़ा, दूध जैसे अनेक इंम्यूनिटी बूस्टर जैसे उपाय बहुत काम आए. इतनी बड़ी जनसंख्या वाला हमारा देश अगर आज संभली हुई स्थिति में है तो उसमें हमारी इस परंपरा का बहुत बड़ा योगदान है.”
पीएम मोदी ने कहा, “आज एक तरफ भारत जहां वैक्सीन की टेस्टिंग कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ कोविड से लड़ने के लिए आयुर्वेदिक रिसर्च पर भी International Collaboration को तेजी से बढ़ा रहा है. इस समय 100 से ज्यादा स्थानों पर रिसर्च चल रही है.”
उन्होंने कहा कि इसी साल संसद के मानसून सत्र में दो ऐतिहासिक आयोग भी बनाए गए हैं. भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए राष्ट्रीय आयोग और राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत की मेडिकल एजुकेशन में इंटीग्रेशन की एप्रोच को प्रोत्साहित किया गया है.
उन्होंने कहा कि 21वीं सदी का भारत अब टुकड़ों में नहीं, Holistic तरीके से सोचता है. हेल्थ से जुड़ी चुनौतियों को भी अब holistic अप्रोच के साथ उसी तरीके से ही सुलझाया जा रहा है. आज देश में सस्ते और प्रभावी इलाज के साथ साथ Preventive हेल्थकेयर वेलनेश पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है.
पीएम मोदी ने कहा, “मुझे विश्वास है कि हमारे साझा प्रयासों से आयुष ही नहीं बल्कि आरोग्य का हमारा पूरा सिस्टम एक बड़े बदलाव का साक्षी बनेगा. कहते हैं कि जब कद बढ़ता है तो दायित्व भी बढ़ता है. आज जब इन 2 महत्वपूर्ण संस्थानो का कद बढ़ा है, तो मेरा एक आग्रह भी है- अब आप सब पर ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने की जिम्मेदारी है जो इंटरनेशल प्रैक्टिस के अनुकूल और वैज्ञानिक मानकों के अनुरूप हो.”
उन्होंने कहा कि ये हमेशा से स्थापित सत्य रहा है कि भारत के पास आरोग्य से जुड़ी कितनी बड़ी विरासत है. लेकिन ये भी उतना ही सही है कि ये ज्ञान ज्यादातर किताबों में, शास्त्रों में रहा है और थोड़ा-बहुत दादी-नानी के नुस्खों में. इस ज्ञान को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार विकसित किया जाना आवश्यक है.