(वरिष्ठ पत्रकार पंकज शुक्ला की कलम से)
विधायक अमनमणि त्रिपाठी अपने दस साथियों के साथ गाड़ियों का काफिला लेकर इस लॉकडाउन में उत्तराखंड गया। वहां मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सबसे ख़ास अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश से मिला। ओम प्रकाश जैसे वरिष्ठतम अफसर ने अमनमणि समेत 11 लोगों को पहले बदरीनाथ और फिर केदारनाथ जाने की अनुमति के लिए संस्तुति पत्र जारी कर दिया, जिसकी कॉपी देहरादून से लेकर पूरे दौरे में पड़ने वाले जनपदों के जिलाधिकारियों को भी भेजी गयी। शासन के इतने बड़े अफसर के निर्देश पर डीएम देहरादून ने पास जारी कर दिया।
सबसे ज्यादा कमाल की बात ये रही कि ओम प्रकाश जी ने हत्याभियुक्त और अमनमणि के साथियों के लिए संस्तुति योगी आदित्य नाथ के दिवंगत पिता के पितृ कर्म के नाम पर दी। कितना जबरदस्त दबाव था या उनके दिमाग में यह सवाल ही नहीं उठा कि पितृ कर्म के नाम पर योगी जी का कोई बंधु-बांधव भी है इन 11 लोगों में। और फिर अमनमणि कौन होता है योगी जी के पिता के लिए पितृ कर्म करने वाला। एक और आश्चर्यजनक बात यह भी रही कि बदरीनाथ धाम के तो कपाट भी अभी नहीं खुले हैं, फिर वहां जाने की इजाज़त क्यों ?
बहरहाल, वो तो कर्णप्रयाग में एक एसडीएम ने अमनमणि की धौंस में आने से इनकार कर दिया और अमनमणि द्वारा पुलिस-प्रशासन के अफसरों से बदसलूकी की वजह से मामला उछल गया। महामारी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। हालांकि, निजी मुचलके पर सभी रिहा कर दिए गए। ज़ाहिर है अपने दिवंगत पिता के नाम पर फर्जीवाड़े से योगी जी बुरी तरह कुपित हो गए।
कोरोना महामारी के दृष्टिगत वो खुद अपने पूर्व आश्रम के पिता के अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हुए थे, और दूसरी तरफ अमनमणि उनके पिता के पितृ कर्म के नाम पर साथियों समेत सैर-सपाटा कर रहा है। फिलहाल, उत्तर प्रदेश की सीमा में घुसते ही अमनमणि देर शाम साथियों समेत गिरफ़्तार कर लिया गया है। मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से दिन में ही साफ कर दिया गया था कि अमनमणि अपनी हरकत के लिए खुद जिम्मेदार है, योगी जी से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि योगी जी के परिजनों ने भी दिन में साफ़ कर दिया कि अमनमणि से हमारा कोई मतलब नहीं है।
सवाल ये है कि एसीएस ओम प्रकाश के खिलाफ क्या उत्तराखंड के सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत कार्रवाई करेंगे ? खबर है कि ओम प्रकाश ने सारा दोष डीएम देहरादून के सर मढ़ दिया है। उनका कहना है कि मैंने अनुमति दी तो क्या , डीएम को तो पास जारी नहीं करना चाहिए था। क्या गजब तर्क है, माननीय ओमप्रकाश जी आपकी अनुमति बाकायदा उत्तराखंड शासन के लेटर हेड पर जारी हुई है। कोई पर्ची लिख कर आपने नहीं दे दी थी अमनमणि को कि जाओ बेटा इसे दिखा देना। मतलब जिलाधिकारी आपका वो शासकीय पत्र फाड़कर फ़ेंक देता।
इतने बड़े अधिकारी होकर आपने एक दबंग विधायक के लिए हर सीमा लांघ दी और आपका अधीनस्थ डीएम मर्दानगी और कर्तव्यनिष्ठा दिखाता आपके हिसाब से। कि अरे ओमप्रकाश जी तो दिन में ऐसे बीस पत्र लिखते रहते हैं, इसका मतलब ये थोड़ी है सबको गंभीरता से लिया जाए। अरे उत्तराखंड शासन के पत्र का कोई मतलब है या नहीं ? कमाल है आपने ये तक समझने कि जहमत नहीं उठाई कि योगी जैसे मुख्यमंत्री के पिताके नाम पर अनुमति किस आधार पर दे दूं। या सब ऐसे ही चलता है।