चम्पावत : चंपावत जिले में एक करोड़ खर्च करने के बाद भी राजकीय पॉलीटेक्निक लोहाघाट के महिला छात्रावास का भवन आधा अधूरा पड़ा है। छह साल पूर्व भवन की पहली मंजिल बनकर तैयार हो गई थी लेकिन तब से अब तक न तो दरवाजे लग पाए हैं और न ही खिड़कियां। आलम यह है कि बंदर व लंगूर भवन के अंदर घुसकर उछलकूद कर रहे हैं।
छात्रावास भवन का निर्माण पूरा न होने का खामियाजा दूर दराज से पढऩे आई छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है। वर्तमान में कॉलेज में 144 छात्राएं पंजीकृत हैं, जो किराए के मकानों में रहने को मजबूर है। कार्यदायी संस्था पेयजल निर्माण निगम ने वर्ष 2008 में भवन निर्माण का काम अपने हाथ में लिया जिसे वर्ष 2014 में उसे पूरा कर लिया गया। लेकिन आज तक न तो भवन की डेटिंग पेटिंग हुई है और न ही दरवाजे व खिड़कियां लग पाई हैं। निर्माण पूरा न होने से कॉलेज प्रशासन ने भवन को अपने अधीन नहीं लिया है। अब हालत यहां तक पहुंच गई है कि भवन के आस-पास झाडिय़ां भी उग आई हैं।
संस्थान के प्रधानाचार्य आर चंद्रा ने बताया कि कार्यदायी संस्था पेयजल निर्माण निगम ने बजट के अभाव में दरवाजे व खिड़कियां लगाने का काम रोक दिया। वर्ष 2016 में कार्यदायी संस्था ने शेष कार्य के लिए 52.58 लाख रुपये का नया आगणन शासन को भेजा लेकिन सरकार की ओर से धनराशि स्वीकृत नहीं की गई। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि छात्रावास न होने से कॉलेज में अध्ययनरत छात्राओं को मजबूरन किराए के भवनों में रहना पड़ रहा है।
इधर छात्राएं इसे कॉलेज प्रशासन की लापरवाही मानती हैं। अल्मोड़ा की छात्रा हिमानी शर्मा, तनुजा पंत, चम्पावत की छात्रा अंजलि राय, संध्या चतुर्वेदी, बागेश्वर की छात्रा अनीता सिंह, रिया जोशी ने बताया कि वे मंहगा किराया देकर प्राईवेट मकानों में रह रही हैं। कॉलेज प्रशासन गंभीर होता तो छात्रावास के अधूरे कार्य को पूरा होने में इतना लंबा समय नहीं लगता।
राजकीय पॉलीटेक्निक लोहाघाट के प्रधानाचार्य आर चंद्रा ने बताया कि वर्ष 2015 में महिला छात्रावास के भवन का निर्माण कार्य पूरा हो गया था। बजट की कमी के कारण दरवाजे व खिड़कियां लगाने का काम कार्यदायी संस्था ने रोक दिया। कॉलेज प्रशासन की ओर से कई बार तकनीकि शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर बजट की मांग की जा चुकी है। कार्यदायी संस्था ने भी बजट की मांग की है। छात्रावास न होने से छात्राओं को परेशान होना पड़ रहा है।
बिजली का पोल शिफ्ट करने में लगा दिए दो साल
सिस्टम की लापरवाही शुरू से ही छात्रावास के भवन निर्माण में बाधक बनी रही। वर्ष 2008 में कार्य अपने हाथ में लेने के बाद कार्यदायी संस्था को परिसर में लगे एक अदद बिजली के पोल को हटवाने में ही दो साल लग गए। संस्था धीमे कार्य की वजह से कई बार विवादों के घेरे में भी आई।
जनप्रतिनिधियों ने भी डाल रखी है कान में रूई
छात्रावास के भवन का निर्माण लटकने के पीछे जनप्रतिनिधियों की उदासीनता भी कम जिम्मेदार नहीं है। छह साल से किसी भी प्रतिनिधि ने इस बात का संज्ञान नहीं लिया। जनप्रतिनिधि प्रशासन पर दबाव बनाते या फिर शासन में इस बात को रखते तो संभवत: यह स्थिति नहीं आती। शिक्षा उन्नयन समिति के अध्यक्ष आरपी ओली का कहना है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि जिले में शिक्षा के विकास के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं।