नैनीताल. (नेटवर्क 10 संवाददाता ): कहते हैं सड़क विकास का आइना होती है और बिना सड़कों के विकास संभव नहीं. सड़क परिवहन ने भारत के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है. लेकिन नैनीताल के भीमताल ब्लॉक का रौखड़ गांव आजतक सड़क से नहीं जुड़ पाया है. ये हालत उस 21वीं सदी में है, जहां एक्सप्रेस-वे पर दौड़ने की बात की जाती है.
रौखड़ गांव के लोगों बरसों के सड़क का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन आजतक ग्रामीणों को एक अदद सड़क तक नसीब नहीं हो पाई है. बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा की बात करना तो यहां के लिए बेमानी होगी. ग्रामीणों ने हर चौखट पर अपनी फरियाद रखी, सर्वे और आश्वासन भी मिला, लेकिन फिर वन कानून का अड़ंगा लगा दिया गया. ग्रामीणों की उम्मीद फिर टूट गई. सड़क का सपना एक बार नहीं बल्कि कई बार ग्रामीणों ने अपनी आंखों में देखा, लेकिन हर बार उन्हें मायूसी ही हाथ लगी.
73 साल के राजन सिंह जीना कहते हैं कि उन्हें अपनी पेंशन लेने के लिए नैनीताल जाना पड़ता है, लेकिन सड़क नहीं होने की वजह से पिछले 10 सालों से नैनीताल नहीं गए हैं. अगर सड़क होती तो सरपट गाड़ी में बैठकर पेंशन लेने जाते, उनकी ये परेशानी उनके चेहरे पर साफ देखी जा सकती है. गांव में यदि कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है उसे भी चारपाई पर बांधकर या फिर डोली के सहारे अस्पताल तक पहुंचाया जाता है.
राजन सिंह ने बताया कि सड़क जलाल गांव तक है और उसके बाद रौखड़ गांव तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को करीब चार किलोमीटर का मुश्किलों भरा सफर तय करना पड़ता है. गांव में मटर, गोभी, आलू , प्याज, बैंगन, हरी मिर्च, हल्दी, अदरक, गडेरी, ककड़ी, आम, लीची, अमरूद, केला और नींबू का उत्पादन होता है. लेकिन सड़क नहीं होने के कारण उन्हें सब्जियों और फलों को मंडी तक ले जाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.
पलायन बढ़ा
सड़क न होने के कारण ग्रामीण अब धीरे-धीरे पलायन कर रहे है. घनघोर जंगल से घिरे इस गांव में जंगली जानवरों का भी आतंक है. गांव में पेयजल और बिजली की समस्या तो नहीं, लेकिन संचार की दिक्कत रहती है. स्थानीय विधायक हर बार सड़क का वादा तो करते हैं, लेकिन केंद्रीय वन मंत्रालय बार-बार सड़क निर्माण पर अड़ंगा लगा देता है. इस बार भी रोकड़ गांव की सड़क निर्माण के प्रस्ताव पर 7 आपत्तियां लगी हैं. दो वन प्रभागों में आपसी तालमेल न होना रौखड़ गांव तक सड़क पहुंचाने में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है. गांव के कई बुजुर्ग इसी उम्मीद में बैठे हैं कि एक दिन उनके गांव में सड़क पहुंचेगी और वे गाड़ी में बैठकर अपने गांव आएंगे. वे दिन कब आएगा इसके बारे में कोई नहीं जानता है.