बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की हो गिरफ्तारी…

(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)

– आपदा एक्ट के तहत कोरोना पर भ्रम फैलाना दंडनीय
– स्टडी का क्लीनिक ट्रायल हुआ ही नहीं, सवालों के घेरे में पतंजलि
– पहले पोस्ट पढें, अनावश्यक टिप्पणी न करें। मैं महज जानकारी दे रहा हूं।

मैं कई दिनों से यही बात लिख रहा हूं कि बाबा रामदेव का आयुर्वेदिक कारोबार गुणवत्ता के अभाव में बाजार में निरंतर गिर रहा है। इन कारणों का उल्लेख में बाद में विस्तार से करूंगा कि आखिर बाजार में पतंजलि उत्पाद कैसे पिट रहे हैं और क्या हैं कारण। फिलहाल मैं आपको डाउट टू अर्थ की रिपोर्ट दे रहा हूं। इस रिपोर्ट को पढ़िये और सोचिए कि उत्तरकाशी अपने घर लौटे एक युवा प्रवासी पर तो सरकार ने हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामला दर्ज कर लिया लेकिन बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने कोरोना मौके को अवसर में बदलने की कोशिश की है। आयुष मंत्रालय ही नहीं उत्तराखंड आयुर्वेदिक ड्रग्स लाइसेंस अथारिटी ने भी कहा है कि उन्हें खांसी-जुकाम की दवा बनाने का लाइसेंस दिया था कोरोना का नहीं। ऐसे में क्या बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण पर केस नहीं बनता? ये है रिपोर्ट।
आयुष मंत्रालय ने पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधि कोरोनिल के प्रचार पर रोक लगा दी है। मंत्रालय ने यह रोक 23 जून को पतंजलि के उस दावे के बाद लगाई जिसमें बताया जा रहा था कि कोविड-19 इन दो दवाओं (कोरोनिल और स्वशिर वटी) के प्रयोग से खत्म हो सकता है। मंत्रालय की रोक के बाद पतंजलि अब इन दवाओं का प्रचार नहीं कर पाएगा। पतंजलि की ओर से यह दावा किया गया है कि उनके द्वारा बनाई गई दो दवाओं कोरोनिल और स्वशिर वटी के इस्तेमाल से शुरुआती तीन दिनों में कोविड-19 के 65 फीसदी मरीजों को ठीक किया है और सातवें दिन तक सौ फीसदी मरीज स्वस्थ हुए हैं। दावा है कि यह क्लिनिकल केस स्टडी कई शहरों में की गई, जिनमें दिल्ली, मेरठ और अहमदाबाद प्रमुख शहर हैं। हालांकि यह क्लिनिकल ट्रायल जयपुर के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च (एनआईएमआर) में ही किया गया, इसे करवाने वाले अभिषेक शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया “कि यह सिर्फ पायलट स्टडी है।” उन्होंने कहा कि “उनकी जानकारी में अभी तक इसका ट्रायल सिर्फ जयपुर में किया गया है। अन्य जगहों पर ट्रायल किया जाना बाकी है।
पतंजलि की प्रेस कांफ्रेस में रामदेव ने इस दवा को पेश किया। उन्होंने कहा कि ट्रायल के रिजल्ट ‘पियर रिव्यूड जनरल’ में प्रकाशित होने के लिए भेजे गए हैं। हालांकि इन जनरल के बारे में अभिषेक शर्मा को जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि पहले हमें यह नतीजे क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया (सीटीआरआई) से साझा करने होंगे। इसके बाद ही क्लिनिकल ट्रायल के नतीजे किसी जनरल में पियर रिव्यू को भेजे जाएंगे। किसी भी क्लिनिकल ट्रायल को करने के लिए सीटीआरआई में पंजीकरण किया जाता है जो कि आईसीएमआर द्वारा संचालित है। यह ट्रायल के लिए अनुमति देती है। पतंजलि की दवा का ट्रायल सीटीआरआई में पंजीकृत है।
अभिषेक शर्मा ने बताया कि 45-45 मरीजों के दो समूहों को दो तरीके से यह दवा दी गई। पहले 45 मरीजों को यह दवा श्इनएक्टिव फॉर्मश् में दी गई जबकि अन्य 45 मरीजों को श्एक्टिव फॉर्मश् में दवा दी गई। तीन दिनों के बाद मरीजों के ठीक होने की दर एक्टिव फॉर्म में 69 फीसदी और इन एक्टिव फॉर्म में 50 फीसदी देखी गई। सातवें दिन के अंत में हमने पाया कि जिन मरीजों को दवा की एक्टिव फॉर्म दी गई वह सौ फीसदी स्वस्थ हो गए जबकि इन एक्टिव दवा वाले मरीज 65 फीसदी ही ठीक हुए थे।
पतंजलि द्वारा जारी वक्तव्य में यह दावा किया गया कि इस औषधि के प्रयोग से कोविड-19 के लक्षणों को प्रदर्शित करने वाले (सिम्टमेटिक) मरीज में कोविड-19 के लक्षण खत्म (एसिम्टमेटिक) हो जाते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि दवा के प्रयोग से सिम्पटमेटिक से एसिम्पमेटिक लक्षण प्रदर्शित हो जाने भर से क्या हम मरीज को वायरस मुक्त मान लेगें? इस सवाल के जवाब में अमर जेसानी (जो एक बायोएथिक्स के स्वतंत्र विशेषज्ञ हैं) का मानना है कि ऐसा नहीं माना जा सकता है, जब तक मरीजों पर कोरोना का आवश्यक टेस्ट न किया जाए।
तो क्या यह मंत्रालय के आदेश का उल्लंघन है? आयुष मंत्रालय बयान इंगित करता है कि पतंजलि ने उसे सूचित किए बिना दवा के प्रचार को आगे बढ़ाने का फैसला किया, यह कोविड दवाओं पर शोध के संबंध में 21 अप्रैल, 2020 को जारी मंत्रालय के आदेश का उल्लंघन था। आदेश में कहा गया कि प्रचार से आगे बढ़ने से पहले संगठनों को मंत्रालय को सूचित करना अनिवार्य है। इस बयान में 1 अप्रैल, 2020 के एक अन्य आदेश का भी संदर्भ दिया गया, जिसमें विशेष रूप से टीवी, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोविड-19 संबंधित किसी भी उपचार के झूठे दावों के प्रचार पर रोक लगाई गई थी। ऐसा करने से राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के दिशानिर्देशों के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। मंत्रालय ने अब पतंजलि को दवा के परीक्षण, परीक्षण के प्रोटोकॉल (परीक्षण के दौरान बरती गई सावधानियां) और सैंपल साइज के साथ ही परीक्षण के परिणामों सहित विवरण प्रस्तुत करने के लिए कहा है।
यह परीक्षण किस संस्थान द्वारा किया गया?
पतंजलि के अनुसार, ‘ रेंडामाइज कंट्रोल ट्रायल’ (आरसीटी) एनआईएमआर जयपुर में आयोजित किया गया था। यह एक निजी संस्थान है, जो 2009 में स्थापित किया गया था। इस संस्थान को औषधि परीक्षण (ड्रग ट्रायल) करने में किसी भी पूर्व अनुभव के बारे में इसकी वेबसाइट कुछ भी दावा नहीं करती है।सीटीआरआई को खंगालने पर पता चलता है कि अब तक इस संस्थान ने केवल दो बार दवा परीक्षणों के लिए पंजीकृत किया है। एक पंजीकरण अवसाद के इलाज की दवा के लिए है और दूसरा कोविड-19 की औषधि के लिए है। यह परीक्षण भी जून 2020 में पंजीकृत किया गया था। हालांकि,यह आरसीटी नहीं था, जिसमें गहन अनुसंधान शामिल है। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि इससे कई सवाल उठते हैं कि कोई व्यक्ति कैसे कोविड-19 का इलाज ढूंढ़ने जैसे दावे कर सकता है, इसे घंटों तक प्रचारित करें और बीमारी के बारे में और ज्यादा भ्रम पैदा करे।
ड्रग कंट्रोलर भी सवालों के घेरे में
जेसानी का कहना है कि भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीजीसीआई) कार्यालय को यह बताना होगा कि उत्तराखंड की शाखा ने किस आधार पर औषधि निर्माण की मंजूरी दी है? एक ओर पतंजलि आयुर्वेद द्वारा जारी बयान में रामदेव के हवाले से कहा गया है, सात दिनों के भीतर देश के हर जिले और ब्लॉक मुख्यालयों में पतंजलि स्टोरों में दवा उपलब्ध होगी। जबकि नियमानुसार बड़े पैमाने पर दवा बनाने और बेचने के लिए राज्य दवा नियंत्रक से अनुमति की आवश्यकता होती है। ऐसे में मात्र चिशेषज्ञ ही नहीं, बल्कि आयुष मंत्रालय ने भी उत्तराखंड के लाइसेंसिंग प्राधिकरण से विवरण मांगा है, जिसके आधार पर औषधि निर्माण की मंजूरी दी गई थी। जेसानी का कहना है कि “यदि पतंजलि आयुर्वेद ने राज्य दवा नियंत्रक को परिणाम प्रस्तुत किए हैं, तो उन परिणामों को सार्वजनिक करें। इसे छिपाया क्यों जाना चाहिए?

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