देहरादून (नेटवर्क 10 टीवी संवाददाता)। उत्तराखंडी संस्कृति और कला जगत के लिए एक बेहद दुखद खबर है। उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकगायक और गीतकार जीत सिंह नेगी जी नही रहे। एक हफ्ते के भीतर कला जगत का दूसरा बड़ा सितारा सिधार गया। इस से पहले उत्तराखंड रत्न और प्रसिद्ध जनकवि लोकगायक हीरा सिंह राणा का निधन हो गया था।
जीत सिंह नेगी लंबे वक्त से अस्वस्थ थे। उन्होंने रविवार को अपने देहरादून स्थित आवास पर आखिरी सांस ली। जीत सिंह नेगी की उम्र 95 वर्ष थी। उनका जन्म 1925 में पौड़ी में हुआ था।
जीत सिंह नेगी के गीत तू होली बीरा, काली रतब्योन, बोल बौराणी क्या तेरो नौं च, दर्जी दीदा आदि बेहद प्रसिद्ध गीतों में से थे। उन्होंने आकाशवाणी से कई लोकप्रिय गीत गाये। 1960 और 70 के दशक के वे लोकप्रिय गायक रहे। जीत सिंह नेगी के भूले बिसरे गीतों को बाद में नरेंद्र सिंह नेगी ने भी स्वर देकर एक कैसेट में पिरोया था।
लोककलाकारों ने यों दी श्रद्धांजलि
-जीत सिंह नेगी जी मेरे गुरु थे। मैंने उनके गीतों से ही गीत गाने की प्रेरणा ली। दर्जी दीदा वाला गीत में बचपन से ही स्कूल में गाती थी और आज भी लोग इस गीत को सुनने के लिए फरमाइश करते हैं। लोककला के एक युग का अंत हो गया है। भगवान पुण्यात्मा को अपने चरणों मे स्थान दे। संगीता ढोण्डियाल, लोकगायिका
-जीत सिंह नेगी जी आकाशवाणी के संभवतः पहले गढ़वाली लोकगायक थे। हमारे परिजन उनके बारे में हमे बताते रहे हैं। बाद में मैं खुद उनसे परिचित हुआ। नेगी जी से हमारा बहुत लगाव रहा। उनसे हैम लोकगीतों और लोकगायकी के बीते युग का ज्ञान लेते थे। वो बताते थे कि उनके पहले गीत बम्बई में स्पूल में रिकॉर्ड हुए थे। तब वो गीत ग्रामोफ़ोन पर बजा करते थे। महान कलाकार के साथ लोकगायकी के एक युग का अवसान हो गया है। डाक्टर अजय ढोण्डियाल, लोकगायक
-जीतसिंह नेगी लोकसंस्कृति के नायक थे। हमें गर्व है कि हमें उनका सानिध्य मिला। लोकगायकी की जितनी बारीकियां वो जानते थे वो शायद ही कोई दूसरा कलाकार जानता हो। नेगी जी के गीतों में पहाड़ का दर्द था। पहाड़ की नारी का कठिन जीवन जिस तरह उन्होंने अपने गीतों में वर्णित किया वो सदा याद रहेगा। उनके गीत युगों तक पहाड़ में गूंजेंगे। में ऐसी महा आत्मा को नमन करता हूँ। प्रीतम भरतवाण, जागर सम्राट
-जीत सिंह नेगी जी ने ही अपने गीतों से पहाड़ के लोगों को लोकगीतों से पहली बार परिचय कराया। उनके गीत रेडियो के माध्यम से घर घर बजते थे। हमारे माँ पिताजी उनके गीत सुना करते थे। बचपन से हम भी वही गीत सुनते आए। हमारा सौभाग्य है कि नेगी जी की संगत का हमको भी मौका मिला। आज उनके जाने से पूरा कला जगत शोकाकुल है। मैं भी उनको अपना गुरु मानता रहा हूँ। उनको कोटि कोटि नमन। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। अनिल बिष्ट, लोकगायक
-जीत सिंह नेगी जी हमारी लोककला संस्कृति के लेजेंड थे। वे उत्तराखंड के पहले लोकगायक के तौर पर जाने जाते थे। उनके गीतों में पहाड़ का सम्पूर्ण लोक समाया हुआ था। उनके जाने से पहाड़ को एक बड़ी क्षति हुई है जिसको पूरा नहीं किया जा सकता। उस महान आत्मा को मेरा शत शत नमन। शिव दत्त पंत, लोकगायक
-जीत सिंह नेगी जी उत्तराखंड लोक संगीत जगत के नींव धारक थे। उनके जाने से एक युग का अंत हो गया है। भगवान उनकी आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दे और उनके परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दे। देवराज रंगीला, संगीतकार