(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की कलम से)
किसी को न मानना हो न माने, पर कोरोना के मामले में अब तक हर कदम पर देरी हुयी है …
१) लॉकडाउन लगाने में कम से कम बीस/ पचीस दिन की देरी हुयी
२) राहत पैकेज भी देर से बना
३) प्रवासी मज़दूरों के लिए रेलगाड़ियों की व्यवस्था में एक माह से ज़्यादा की देरी हुयी
इस लापरवाही का सबसे बड़ा खामियाज़ा मज़दूरों को भुगतना पड़ा.
नुक्सान छोटे दुकानदारों और छोटे उद्योगों को भी हुआ ( बड़े उद्योग फिर भी झेल लेंगे).
अब देर नहीं होनी चाहिए।
सारे देश में लॉकडाउन पूरी तरह हटे (६५ साल से अधिक के लोगों और क्रोनिक बीमारी वालों पर जो प्रतिबन्ध हैं वो न हटें).
हरेक व्यापारिक/ औद्योगिक /सरकारी प्रतिष्ठान अपने हिसाब से जितना हो सके सोशल डिस्टैन्सिंग करे . (इस सम्बन्ध में गाइडलाइन बने जिसका अनुपालन जिला स्तर पर सुनिश्चित किया जाय)
कोरोना की जांच का कार्य पहले से भी तेज हो .
हरेक बड़ा प्रतिष्ठान अपने यहाँ कोरोना से बचाव और क्वारंटीन की व्यवस्था करे
और सबसे बड़ी बात :
छोटे व्यापारियों और छोटी/ मझोली उत्पादक इकाइयों को सस्ती दरों पर ऋण तत्काल दिया जाये..
मनेरगा और ऐसी अन्य योजनाओं के तहत ग्रामीण इलाकों और कस्बों की अर्थव्यवस्था में जितना हो सके उतना पैसा पंप किया जाये ताकि बाजार में मांग बढे..
अपन का अर्थशास्त्र से कोई लेना देना नहीं है लेकिन इधर उधर विशेषज्ञों को जितना पढ़ा और सुना है उससे लगता है कि अब लॉकडाउन बढ़ने का कोई औचित्य नहीं है..अब इस महामारी से सीधे टकराना है और अर्थव्यवस्था को संभालना है..(वैसे, जिन्हें फैसला लेना है वो कौन सा पढ़े लिखे हैं – आरबीआई गवर्नर हिस्ट्री वाले हैं, वित्तमंत्री का ज्ञान सबको पता है. मोदी जी ने जो अर्थशास्त्री जोड़ तोड़ के जमा किये थे वो सब एक एक करके बाय बाय कर चुके हैं. इसलिए रणनीति सरकार से बाहर के जानकार लोगों की सलाह से ही बनानी होगी )
और जानकार लोग इस विषय पर खुलकर लिखने लगे हैं…. पर पढ़ने वाला भी तो होना चाहिए।