चमोली। उत्तराखंड के चमोली जिले में ऋषिगंगा पर बनी झील को बरसात से पहले खाली करना बेहद जरूरी है वरना ये किसी बड़ी तबाही का कारण बन सकती है। भले ही झील से रिसाव हो रहा है और अभी खतरे की कोई बात नहीं है, लेकिन इसे बरसात से पहले खाली करना जरूरी है। ग्लेशियर वैज्ञानिकों का कहना है कि अच्छी बात ये है कि झील से लगातार रिसाव हो रहा है। इससे झील का जल स्तर बढ़ेगा नहीं। अभी सर्दी की वजह से पानी भी ठंडा है और ठंड से मिट्टी व पत्थरों का ढ़ेर भी सॉलिड हो गया है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि बरसात के दौरान झील का जल स्तर तो बढ़ेगा ही मलबे में भी कटान हो सकता है। इससे झील कमजोर पड़ जाएगी और पानी फोर्स के साथ झील को तोड़ सकता है। बरसात के समय वैसे ही नदियों में जल स्तर अधिक रहता है और यदि झील भी टूट गई तो यह पानी काफी बड़ी तबाही ला सकता है। ग्लेशियर और इससे बनने वाली झीलों के आंकलन और अध्ययन के लिए एक स्थाई मैकनिज्म की जरूरत है। जो पूरी गंभीरता के साथ ही काम करे। जलवायु परिवर्तन या गर्मी बढ़ने की वजह से ग्लेशियर कमजोर हो रहे हैं और इस वजह से बाढ़ का खतरा लगातार बढ़ रहा है। आपदा प्रबंधन तंत्र के तहत इस काम को बेहद गंभीरता से किए जाने की जरूरत है। क्योंकि ग्लेशियर या उसमें बनी झील से आई आपदा केवल उत्तराखंड को नहीं बल्कि पूरे देश को प्रभावित करेगी।