देहरादून: कोई विधायक अगर लगातार क्षेत्र में रहेगा, वहीं प्रवास करेगा तो आखिर अधिकारियों को दिक्कत क्या है? दिक्कत ये हो सकती है कि विधायक कभी भी जनता के किसी काम पर तलब कर देगा। विधायक के सामने जनता की कोई भी छोटी बड़ी समस्या आएगी तो विधायक अफसर को बुला लेगा, चाहे वो DM हो या पटवारी। शायद इसीलिए ये अफसर नहीं चाहते कि विधायक क्षेत्र में रहे।
उत्तराखंड की जनता हमेशा यही कहती रही है कि हमारा राज्य हिमाचल जैसा हो। हिमाचल में हर विधायक अपने गृह क्षेत्र में प्रवास करता है। वो अपने ही विधानसभा क्षेत्र में आवास लेकर रहता है और जनता की समस्या सुनता है, विकास कराता है।
उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र से चुने गए विधायक किशोर उपाध्याय पहले ऐसे विधायक हैं जिन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को निवेदन किया कि मुझे मेरे गृह क्षेत्र टेहरी में आवास मुहैया कराया जाय और राजधानी देहरादून में आवंटित आवास को निरस्त कर दिया जाय। विधायक किशोर उपाध्याय के इस निवेदन पर 2 महीने बाद राज्य संपत्ति विभाग की तरफ से टेहरी के जिलाधिकारी को आदेश दिया गया कि विधायक के लिए सरकारी आवास मुहैय्या कराया जाय लेकिन जिलाधिकारी अब एक महीने तक कुछ नहीं कर पाए हैं। आखिर क्यों ?
आपको बता दें कि खानपुर से निर्दलीय विधायक को रुड़की में आवास दिया गया है। ये पहली बार नहीं है, इससे पहले मंत्री प्रेम चंद अग्रवाल को तो देहरादून समेत उनके गृह क्षेत्र ऋषिकेश में भी सरकारी आवास दिया गया था। खानपुर के पूर्व विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन को भी उनके क्षेत्र में आवास आवंटित किया गया था। फिर किशोर उपाध्याय को क्यों नहीं?
किशोर उपाध्याय पूर्व कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। लगातार पर्वतीय सरोकारों की ही बात उठाते हैं। वो पहाड़ में अपने विधानसभा क्षेत्र में ही प्रवास कर घर गाँव और गाँव की ही जनता और उनके लिए ही काम करना चाहते हैं तो फिर इसमें बुरा क्या है? टेहरी के जिलाधिकारी को चाहिये की वो जल्द विधायक के लिए सरकारी आवास की व्यवस्था करें। जनता का सेवक जनता के बीच रहना चाहता है और आप रोक रहे हैं। आखिर क्यों?
-इसको दुर्भाग्य कहा जाना चाहिए पहाड़ का। एक विधायक अपने क्षेत्र में रहकर काम करना चाहता और जनता के बीच रहकर हर बात सुनना चाहता है, लेकिन उसको वहां आवास नहीं द्विया जा रहा है। हिमाचल में सभी विधायक अपने अपने गृह क्षेत्र में रहते हैं।।उत्तराखंड में मुख्यमन्त्री ने मंत्रियों की ड्यूटी लगाई है कि वो पहाड़ के गांव में प्रवास करें, लेकिन अधिकारी नहीं चाहते कि ऐसा हो। इस पर जनता को मुखर होना होगा। किशोर उपाध्याय जैसे विधायक नज़ीर हैं, दूसरे विधायक भी आवाज़ उठाएं और अपने गृह क्षेत्र में प्रवास करें।
डॉ अजय ढोंडियाल, वरिष्ठ पत्रकार
-इस अस्थायी राजधानी देहरादून में एक साल में बमुश्किल 20 दिन भी विधानसभा सत्र नहीं होता तो यहां विधायक का काम क्या है? किशोर उपाध्याय जी ने अनुकरणीय पहल की। उनकी इस पहल का अनुसरण सभी विधायकों को करना चाहिए। विधायकों को अपने ही गृह क्षेत्र में रहना चाहिए जनता के बीच। ये तो हद है कि किसी विधायक को क्षेत्र में आवास दे दिया और एक पहाड़ के विधायक को नहीं दे रहे हैं।
-जय सिंह रावत, वरिष्ठ पत्रकार
-एक राज्य आन्दोलनकारी जो विधायक बना, मंत्री बना और एक पार्टी का अध्यक्ष बना, आज उसको दरकिनार किया जा रहा है। वर्तमान में राज्य आंदोलनकारी रहे किशोर जी विधायक हैं, पहाड़ में ही अपने क्षेत्र में जनता के बीच रहना चाहते हैं तो क्यों नहीं दिया जा रहा है आवास? अब क्या आवास के लिए भी आंदोलन लड़ना होगा हमको? उमेश कुमार को देहरादून के साथ साथ रुड़की में आवास दिया गया है, क्यों? किशोर जी को क्यों नहीं?
-भावना पांडेय, राज्य आंदोलनकारी
– किशोर उपाध्याय का कदम एक उदाहरण है। उन्होंने अपने गृह क्षेत्र में ही रहने की इच्छा जताई और उनके लिए सरकारी आदेह के बाद भी जिलाधिकारी आवास नहीं मुहैय्या करा रहे हैं, ये है। विधायक क्षेत्र में 24 घंटे रहेगा तो अधिकारी मनमानी कैसे करेंगे। इस पर मुख्यमत्री को संज्ञान लेना चाहिए।
– प्रो. जगमोहन, शिक्षाविद
– ये तो शर्मनाक है। पहाड़ का एक विधायक राजधानी में आवंटित सरकारी आवास को नकार कर अपने क्षेत्र में आवास की मांग कर रहा है और जिलाधिकारी ही आवास देने में हीलाहवाली कर रहा है। साफ है कि जिलाधिकारी ये नहीं चाहता कि विधायक क्षेत्र में रहे। दुर्भाग्य है पहाड़ का।
– कमलेश देवी, समाजसेवी एवं पूर्व प्रधान
जिस उत्तराखंड के पहाड़ से लगातार पलायन हो रहा है और वहां का एक विधायक राजधानी देहरादून में न रहकर अपने विधायकी क्षेत्र टीहरी में रहना चाहता है ताकि वह अपने क्षेत्र का विकास कर पाए और अपनी जनता के बीच रह पाए फिर भी उसको देहरादून में ही रहने के लिए विवश किया जा रहा है। आखिर ऐसा क्या है कि विधायक को टिहरी में आवास नहीं दिया जा रहा है। विधायक जी को तुरंत सर्किट हाउस तो दे सकते हैं।
-पवन नौटियाल, पत्रकार एवं समाजसेवी