देहरादून: उत्तराखंड में सीमांत से लेकर तराई के इलाकों का हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों का अपना एक पुराना इतिहास है. सीमांत इलाकों में पिथौरागढ़, मुनस्यारी, उत्तरकाशी में पारंपरिक बुनकरों और शिल्पकारों द्वारा बनाए जाने वाले उत्पाद आज अपनी एक अलग पहचान रखते हैं. घरों में इस्तेमाल होने वाले नेचुरल उत्पादों से बने शोपीस, बेहद डिमांड में रहने वाले सॉफ्ट-गर्म अंगुरा शॉल, ये सभी ऐसे उत्पाद हैं जिनके आज भी कई मुरीद हैं.
उत्तराखंड उद्योग विभाग से मिली जानकारी के अनुसार उत्तराखंड हस्तशिल्प और हथकरघा व्यवसाय से हजारों परिवारों की आजीविका जुड़ी है. उद्योग निदेशक सुधीर नौटियाल ने बताया कि 14 हजार बुनकर परिवारों में तकरीबन हर घर से 1 या 2 लोग ये काम करते हैं. इस तरह से प्रदेश में 24 हजार लोग इस काम को करते हैं. वहीं, शिल्पकारों में भी तकरीबन प्रदेश में 25 हजार शिल्पकार मौजूद हैं, जिनका की ये काम पैतृक है. इसी तरह से क्राफ्ट और हैंडलूम व्यवसाय से देवभूमि में तकरीबन 50 हजार लोग सीधे तौर से जुड़े हुए हैं.
लॉकडाउन में हुआ भारी नुकसान
उत्तराखंड के हस्तशिल्प और हथकरघा व्यवसाय पर कोविड-19 और लॉक डाउन का गहरा असर पड़ा है. बाजार बंद होने और डिमांड, सप्लाई न होने के कारण इसकी कमर टूट सी गई. इस दौरान इस व्यवसाय को सीधे तौर से प्रदर्शनीयों और मेलों से मिलने वाला लाभ भी नहीं मिल पाया. मगर लॉकडाउन खुलने के बाद धीरे-धीरे यह व्यवसाय पटरी पर आ रहा है. वहीं, पीएम मोदी के नारे और सरकारों के प्रयास के बाद इस क्षेत्र को नई रफ्तार मिली है. उत्तराखंड में भी राज्य सरकार इस क्षेत्र को मजबूत बनाने में जुटी है.
ऑनलाइन मार्केटिंग सहित तमाम संभावनाओं से बनाया जा रहा है आत्मनिर्भर
लॉकडाउन के बाद ऑनलाइन खरीदारी की डिमांड काफी बढ़ी. जिसके बाद हस्तशिल्प और हथकरघा व्यवसाय को भी इससे जोड़ा गया. उत्तराखंड उद्योग विभाग ने बताया कि उत्तराखंड के हैंडक्राफ्ट और हैंडलूम व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत के तहत तमाम तरह के फायदे व्यवसायियों को दिए जा रहे हैं. उद्योग निदेशक सुधीर नौटियाल ने कहा कि सरकार के निर्देश अनुसार वोकल फॉर लोकल सिद्धांत को अपनाते हुए सभी सरकारी खरीद में इन उत्पादों का इस्तेमाल किया जा रहा है. सरकारी सम्मान समारोह या फिर किसी भी तरह के विभागीय खरीद में प्रथम प्राथमिकता स्थानीय उत्पादों को दी जा रही है.
अंगुरा, ऐंपण सहित कई नए उत्पाद दे रहे उत्तराखंड को नई पहचान
उत्तराखंड के इतिहास और यहां की सभ्यता से संबंध रखने वाले कुछ ऐसे पुराने डिजाइन हैं जिन्हें यहां के डिजाइनरों ने आधुनिक रूप देकर क्राफ्ट तैयार किया है. ऐंपण कला उन्हीं में से एक है. ऐंपण को पहले अल्पना या फिर घरों में पूजा पाठ के दौरान बनाया जाता था. जिसे पंडित चौकियों पर आटे या फिर चौक से बनाया करते थे. इसी को उत्तराखंड के हैंडीक्राफ्ट डिजाइनरों द्वारा मॉडिफाई करके शोपीस के रूप में डेवलप किया गया है. जिसे आज के बाजारों में बेहद पसंद किया जा रहा है. आर्टिस्ट डिजाइनर अश्वनी ने बताया कि आजकल लोग ऐंपण को बेहद पसंद कर रहे हैं. वॉल डेकोरेशन के लिए इसका खासा इस्तेमाल किया जा रहा है.
कोरोना महामारी और लॉकडाउन से उत्तराखंड के हस्तशिल्प, हथकरघा और कुटीर उद्योग पर भी बुरा असर पड़ा, उसके बाद इन्हें पटरी पर लाना किसी चुनौती से कम नहीं था. मगर सरकार की कोशिशों, विभागीय तत्परता और इस व्यवसाय से जुड़े लोगों के जज्बे ने लगभग दम तोड़ चुके हस्तशिल्प, हथकरघा उद्योग को फिर से जीवंत कर दिया है. रही सही कसर बाजार के नये स्वरूप, डिमांड के नये तरीकों ने पूरी कर दी है. जिससे हस्तशिल्प और हथकरघा से बनने वाले उत्पाद वैश्विक हो गये हैं. लाइन बाजार व्यवस्था ने गांव, पहाड़ के कोने में बैठे बुनकरों को खुला बाजार दे दिया है. जिससे वे अपनी मेहनत, क्रिएटिविटी को अपने दामों पर जहां चाहे वहां बेच सकते हैं. जिसके कारण वे आत्मनिर्भर हो रहे हैं.