उत्तराखंड के 400 साल पुराने ताम्र कारोबार को मिला GI Tag

देहरादून: उत्तराखंड के लोगों और शिल्पकारों के लिए अच्छी खबर है। उत्तराखंड के 400 साल पुराने तांबे के कारोबार को जीआई टैग (GI Tag) मिला है। यह जानकारी सीएम धामी ने खुद ट्वीट कर दी है। जीआई टैग मिलने से जहां तांबे के बर्तनों की डिमांड बढ़ेगी वहीं उत्पदकों की भी स्थिति भी सुधरेगी।

मुख्यमंत्री धामी ने आज सुबह ट्वीट करते हुए लिखा कि ताम्र उत्पाद को जीआई टैग यानी भैगोलिक संकेतक प्राप्त होने से ताम्र उत्पादों की मांग बढ़ने के साथ साथ उत्पादकों को भी आर्थिक रूप से मजबूती प्राप्त होगी।

क्या है जीआइ टैग

जिओग्राफिकल इंडिकेटर (जीआई) टैग एक प्रकार का लेबल है। इसके माध्यम से किसी उत्पाद को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। जीआई टैग से इस बात की सुरक्षा प्रदान की जाती है कि जो उत्पाद जिस भौगोलिक क्षेत्र में पैदा होता है, उसके नाम की नकल कोई अन्य व्यक्ति, संस्था या देश नहीं कर सकता। स्थानीय उत्पादों की ब्रांडिंग में जीआइ टैग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

400 साल पुराना अल्मोड़ा का ताम्र कारोबार

बता दें कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा के तांबे के बर्तनों की देश के साथ विदेशों में भी डिमांड है। इसीलिए अल्मोड़ा को ताम्र नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां का तांबा कारोबार करीब 400 साल पुराना माना जाता है। हालांकि धीरे-धीरे सरकारों की उदासीनता के कारण आज यह व्यवसाय सिमट चुका था। परन्तु अल्मोड़ा ताम्र व्यवसाय को आज भी काराखाना बाजार में स्थित अनोखे लाल व हरिकिशन नामक दुकान ने जिंदा रखा है। यह दुकान विगत 60 सालों से स्थानीय शिल्पियों के बनाए तांबे के बर्तनों को बाजार उपलब्ध करा रहे हैं।

अल्मोड़ा के ताम्र पात्रों की खासियत

तांबे का पानी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। अल्मोड़ा में हस्तनिर्मित तांबे के बर्तन शुद्ध तांबे के होते हैं। जिनको कारीगर पिघलाकर हथौड़े से पीट-पीटकर बनाते हैं। दीपावली के समय में तांबे के बर्तनों की काफी डिमांड रहती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *