अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी केंद्र बना उत्तराखंड सरकार का जनपयोगी संस्थान

देहरादून : अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आज भारत विश्व में एक स्थापित शक्ति के रूप में पहचान रखता है। भारत के वैज्ञानिकों के इस अमूल्य योगदान के कारण आज देश की जनता को इसका लाभ विभिन्न क्षेत्रों में मिल रहा है । उत्तराखंड इस मामले में भाग्यशाली है कि यहां के दूरदर्शी राजनीतिक नेतृत्व की बदौलत राज्य को विभिन्न क्षेत्रों में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ मिलने लगा है, जिसकी गौरव गाथा उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र (यूसैक) देहरादून लगातार कह रहा है। यूसैक अंतरिक्ष में स्थापित भारतीय उपग्रहों के माध्यम से और अपने विशेषज्ञों की मदद से उत्तराखंड की तीसरी आंख बनकर सदैव प्रदेश को बहुमूल्य सेवाएं दे रहा है। इसका प्रत्यक्ष लाभ अंतत: उत्तराखंड के आम जन को मिल रहा है। बीते तीन सालों का उदाहरण लेकर इन दावों की पुष्टि की जा सकती है। ताजातरीन उदाहरण कोरोना महामारी का है। यूसैक ने महामारी के दौरान जियोस्पेशियल एप विकसित किया जिससे देहरादून जिला प्रशासन को कंटेनमेंट जोनों के निर्धारण में बहुत मदद मिली।

चूंकि उत्तराखंड आपदा प्रभावित क्षेत्र है ऐसे में यूसैक आपदा से पहले और आपदा के दौरान उसके प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसका ज्वलंत उदाहरण केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण के दौरान देखा जा सकता है। जहां यूसैक ने केदार घाटी के संबंध में महत्वपूर्ण पारिस्थितिकीय और भूगर्भीय डेटा शासन को उपलब्ध करवाया बल्कि विभिन्न वैज्ञानिक संगठनों के साथ समन्वय भी बनाया। यही नहीं यूसैक के निदेशक भूवैज्ञानिक डॉ महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट केदारघाटी पुनर्निर्माण के लिए विशेषज्ञ के रूप में नामित हैं। इसके अलावा केदारनाथ यात्रा मार्ग के आपदा संभावित क्षेत्रों का सर्वे कर पीडब्ल्यूडी के माध्यम से महत्पूर्ण इनपुट दिए गए गए हैं। केदारनाथ यात्रा के प्राचीन पैदल यात्रा मार्ग की वनस्पति और जैव विविधता की मैपिंग की गई है तो वहीं प्रस्तावित नए यात्रा मार्ग की प्रारंभिक सर्वेक्षण रिपोर्ट भी तैयार की गई है।

यूसैक के निदेशक डॉ महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट के नेतृत्व में सिर्फ केदार घाटी ही नहीं यूसैक की विशेषज्ञता प्रदेश के अछूते आध्यात्मिक स्थलों की खोज और उनके संबंधित शोध आदि में भी हो रहा है। इस संदर्भ में पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में 10 चूने के पत्थर की गुफाओं की जांच शामिल है जो यूसैक ने की है। इससे प्रदेश में नए धार्मिक पर्यटन के अवसरों में वृद्धि हो सकेगी। आधुनिक समय के हिसाब से सटीक और सरल मानचित्रण करने के लिहाज से भी यूसैक की उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं।

मुख्यमंत्री जी के कुशल निर्देशन में हाल के वर्षों में यूसैक ने पहली बार उत्तराखंड के सभी 13 जिलों की मूलभूत सुविधाओं और संपत्तियों का टु दा स्केल मानचित्र तैयार किया तथा सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा भी इस टु दा स्केल मानचित्र को सराहा गया है। कुंभ मेला 2021 की व्यवस्थाओं में प्रशासन की महत्वपूर्ण मदद करते हुए संपूर्ण कुंभ क्षेत्र हरिद्वार का व्यापक भू-डेटाबेस तैयार किया जा रहा है। इसके अलावा सैटेलाइट डेटा और जमीनी सर्वे से मिले आंकड़ों की मदद से कुंभ क्षेत्र का बेस मैप बनाकर मेला प्रशासन को सौंप दिया है। इससे विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन को व्यवसथित रूप से संपन्न कराने में प्रशासन को मदद मिलेगी।  –  डॉ महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट, निदेशक

प्रदेश के विकास कार्यों के सर्वेक्षण को भी यूसैक ने काफी सरल और सटीक बना दिया है। उल्लेखनीय है कि सड़क मार्गों के विकास के लिए सरकार छोटी सड़कों से लेकर ऑलवेदर जैसी सड़कें बनाने में जुटी है । इस काम में भी यूसैक अहम भूमिका निभा रहा है। जहां आठ जिलों के जीआईएस आधारित रोड मानचित्र भी यूसैक ने तैयार कर सरकार सौंप दिया है। वहीं नई व प्रस्तावित ऑलवेदर रोड़ पोंटा साहिब से बड़कोट और कोटद्वार से श्रीनगर का मैप भी तैयार किया गया है । ऋषिकेश-यमुनोत्री ऑलवैदर रोड़ में चंबा के पास बन रही सुरंग से आस पास गांवों के मकानों को हो रहे नुकसान का आंकलन पूरा कर सर्वेक्षण रिपोर्ट की गई है

बात प्राकृतिक संसाधनों की करें तो उतराखंड के प्राकृतिक संसाधन यहां के बहुमूल्य पूंजी हैं अत: इनका अध्ययन, प्रबंधन और संरक्षण बेहद जरूरी मसले हैं। राहत की बात है कि यूसैक यहां भी अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दे रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के ड्रीम प्रोजेक्ट जल संसाधन के क्षेत्र में पिछले तीन वर्षों में यूसैक ने कुमायूं और गढ़वाल की अनेक बड़ी नदी घाटी क्षेत्रों के हिमाच्छादित क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है। पौड़ी जिले की नयार, थल, रामगंगा आदि और चमोली के गैरसैंण में प्रस्तावित 10 झीलों की टैक्निकल रिपोर्ट और बाकी जरूरी सर्वेक्षण यूसैक ने सम्पन्न कर सिंचाई विभाग को सौंप दिए हैं। इसके अलावा प्रदेश के वेटलैंड्स और पानी की गुणवत्ता से संबंधित मानचित्र भी तैयार कर सिंचाई विभाग को सौंपे जा चुके हैं।

बात खेती किसानी की। उत्तराखंड का मैदानी इलाका अनाज का कटोरा है तो पहाड़ फलों की डलिया। यह प्रदेश की आर्थिकी का भी महत्वपूर्ण जरिया है लिहाज़ा इसके प्रबंधन और सर्वेक्षण में भी महती भूमिका है, और यहां भी यूसैक अपनी प्रभावी उपस्थिति उपलब्ध करा रहा है। यूसैक लगातार कृषि विभाग के माध्यम से प्रदेश के गन्ना उत्पादक और गेहूं उत्पादक क्षेत्रों से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करवा रहा है। हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर के कुछ गांवों की कृषि भूमि की मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों की जीआईएस मैपिंग कृषि विभाग को उपलब्ध कराई गई है।

वन संपदा के सर्वेक्षण और संरक्षण में भी यूसैक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रदेश की वन भूमि के प्रबंधन और संरक्षण के लिए जरूरी वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध करा रहा है। साथ ही बुग्यालों में मृदा क्षरण, अध्य्यन और उपचार के लिए भी कार्यरत है। उत्तराखंड के वनों को वनाग्नि से हर साल काफी नुकासान होता है। इस संबंध में प्रदेश के वनाग्नि प्रभावित क्षेत्र की विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है। इससे वनाग्नि के प्रभावी नियंत्रण के लिए योजनाएं बनाने में मदद मिल सकेगी। यही नहीं जैव विविधता संरक्षण के क्षेत्र में भी यूसैक की क्षमताओं का उपयोग प्रभावी रूप में हो रहा है। प्रदेश में पाई जाने वाली संकटापन्न और दुर्लभ वनस्पतियों की उपलब्धता का भी पता लगाया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी यूसैक की विशेषज्ञा काम आ रही है। यूसैक उत्तराखंड के शिक्षा विभाग के मैपिंग इन्फारमेशन पोर्टल को होस्ट कर रहा है।

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