नेचुरल वाटर रिसोर्स को पुनर्जीवित करने की तैयारी करने में है उत्तराखंड सरकार

देहरादून: देश के अन्य हिस्सों की तरह उत्तराखंड में भी सूखती जलधाराएं चिंता का सबब बनने लगी हैं. वर्ष 2018 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले डेढ़ सौ सालों में उत्तराखंड में 360 जलधाराओं में 300 या तो सूख चुकी हैं, या फिर सूखने के कगार पर हैं. न सिर्फ ग्लेशियरों से निकलने वाली जलधाराएं, बल्कि नदियों को जीवन देने वाले प्राकृतिक जलस्रोत भी सूख रहे हैं.

उत्तराखंड में वाटर पॉलिसी

सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता मुकेश मोहन ने बताया कि प्रदेश के जो नेचुरल वाटर रिसोर्सेज हैं, उन्हें संरक्षित किया जाए. इसके लिए पिछले साल वाटर पॉलिसी भी बनाई गई थी. इसके लिए प्रदेश के कई झीलें बनाने का डीपीआर बनाया जा चुका है. क्योंकि अगर झीलों में पानी रहेगी तो इससे पानी का संरक्षण होगा. इसके साथ ही नदियों को संरक्षित करने की कवायद में भी काम किया जा रहा है. नदियों को संरक्षित करने के लिए पेड़ लगाने, ट्रेंचेज बनाने, गुल बनाने काम किया जा रहा है.

नेचुरल स्प्रिंग होंगे पुनर्जीवित

उत्तराखंड के नेचुरल स्प्रिंग्स के अध्ययन कराने के लिए सर्वे ऑफ इंडिया से प्रपोजल भी लिया गया है. जिसमे टिहरी जिले के नेचुरल वाटर रिसोर्सेस का सर्वे केंद्र सरकार करा रही है. जिसमें सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड और सर्वे ऑफ इंडिया की मदद से अध्ययन कराया जा रहा है. बाकी इससे अलग जिलों के लिए 30 करोड़ का पैकेज भी केंद्र सरकार ने दिया है. जिस पर अध्ययन कराने के लिए नेचुरल स्प्रिंग की जानकारी एकत्र की जाएगी और फिर उसका अध्ययन किया जाएगा. अध्ययन के रिजल्ट से उन्हें बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें. जैसे ही सभी स्प्रिंग्स की स्टडी रिपोर्ट आ जाएगी, उसके बाद जिलेवार प्रपोजल तैयार किया जाएगा.

पर्वतीय क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों से नहीं हो रहा जल प्रदूषित

सिंचाई के प्रमुख अभियंता ने बताया कि पानी की डिमांड बढ़ने से प्राकृतिक जलस्रोत सूख रहे हैं. पहाड़ के नेचुरल वाटर रिसोर्सेज प्रदूषित ना हो, इसके लिए सिंचाई विभाग लगातार कार्य कर रहा है. उत्तराखंड सरकार नेचुरल वॉटर रिसोर्सेस को संरक्षित करने के लिए औद्योगिक इकाइयों को नदी-नालों में कचरा नहीं बहाने का आदेश दिया है. हालांकि इस ओर एनजीटी ने भी सख्ती से कदम बढ़ाए हैं.

भूजल अध्ययन के लिए लगाए जाएंगे टेलीमेट्री उपकरण

उत्तराखंड सरकार प्रदेश में जल संरक्षण, भूजल रिचार्ज, झील निर्माण समेत अन्य कामों के लिए डीपीआर तैयार करने में जुटी हुई है. सरकार की तरफ से इस काम के लिए 2 करोड़ रुपए जारी भी किए जा चुके हैं. इस दौरान खैरना बैराज, नैनीताल के डीपीआर की स्वीकृति केंद्र सरकार से प्राप्त हो चुका है. इसके साथ ही प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में भूजल में आ रहे बदलाव का अध्ययन करने के लिए उधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और पौड़ी के मैदानी क्षेत्रों में 66 स्थानों पर टेलीमेट्री उपकरण (डिजिटल वाटर लेवल रिकॉर्डर) लगाए जाएंगे.

दूषित पानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारण

देहरादून के चिकित्सक डॉ. विपुल कंडवाल ने बताया कि पहाड़ों से नीचे आ रहे मलबा और फैक्ट्रियों की वेस्ट मैटेरियल से नेचुरल रिसोर्सेज दूषित हो रहे हैं. ऐसे में दूषित पानी पीने से डायरिया, टायफाइड, पीलिया आदि बीमारियां हो जाती हैं. लिहाजा इन बीमारियों से बचने के लिए लोगों को स्वच्छ पानी पीना चाहिए. ऐसे में लोगों को एहतियातन पानी को उबाल कर पीना चाहिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *