चीन और रूस के साथ लगातार बिगड़ते रिश्ते और वैश्विक स्तर बढ़ते इनके खतरे को देखते हुए अमेरिका एक बार फिर परमाणु बम बनाने में जुट गया है. अमेरिका अगले 10 सालों में इस प्रोजेक्ट पर करीब 70 हजार करोड़ रु. खर्च करने की तैयारी में है. एटम बमों का औद्योगिक उत्पादन साउथ कैरोलिना में सवाना नदीं के किनारे मौजूद एक फैक्ट्री और न्यू मेक्सिको के लॉस एलमोस की एक फैक्ट्री में किया जाएगा. हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने ब्लूमबर्ग के हवाले से खबर प्रकाशित की है कि इस प्रोजेक्ट पर कुल 70 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे. जब अमेरिका और रूस के बीच कोल्ड वॉर चल रहा था तब सवाना नदी की फैक्ट्री अमेरिकी परमाणु हथियारों के लिए ट्रिटियम और प्लूटोनियम का उत्पादन करती थी.
2 लाख एकड़ में फैली इस फैक्ट्री में हजारों लोग काम करते थए. अब यहां 3.70 करोड़ गैलन रेडियोएक्टिव तरल कचरा जमा हो चुका है. 30 साल बाद अब फिर से यहां पर एटम बम बनाए जाएंगे. अमेरिकी संस्था द नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन (NNSA) ही परमाणु हथियार बनाती है. संस्था के अनुसार मौजूदा परमाणु हथियार काफी पुराने हो चुके हैं. उन्हें अब बदलना चाहिए. नई टेक्नोलॉजी से बनाने पर वो ज्यादा सुरक्षित रहेंगे. NNSA लगातार अपने पुराने बमों को अपग्रेड करती रहती है. 2018 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस योजना को अपनी मंजूरी दे दी थी. जिसके बाद इस जगह पर 80 गड्ढे हर साल तैयार किए जाएंगे. इसमें 50 साउथ कैरोलिना में और 30 न्यू मेक्सिको में होंगे. इन गड्ढों में प्लूटोनियम के फुटबॉल जैसे गोले बनाए जाएंगे. यही परमाणु हथियारों को ट्रिगर करते हैं.
साउथ कैरोलिना और न्यू मेक्सिको के लोगों को डर है कि अगर फैक्ट्री शुरू हुई तो लोग रेडियोएक्टिविटी यानी रेडिएशन की चपेट में आ जाएंगे. हालांकि ओबामा सरकार के समय भी यहां परमाणु हथियारों के निर्माण पर सहमति जताई थी. वैश्विक मामलों के एक्सपर्ट स्टीफन यंग का कहना है कि ये योजना न सिर्फ खर्चीली है, बल्कि खतरनाक भी है. फैक्ट्री के पास रहने वाले 70 वर्षीय पिट लाबर्ज ने कहा कि अभी तक ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला है कि नई टेक्नोलॉजी सुरक्षित होगी.
NNSA का मानना है कि अमेरिका इस काम को नहीं रोक सकता. काम में देरी से न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में आएगी बल्कि औद्योगिक उत्पादन का खर्च भी बढ़ जाएगा. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक अमेरिका के पास 7550 परमाणु हथियार हैं. उसने 1750 बमों को मिसाइलों और बमवर्षक विमानों में तैनात कर रखा है. इसमें से 150 यूरोप में तैनात हैं. ताकि रूस पर नजर रखी जा सके. रूस के पास 6,375 और चीन के 320 एटम बम हैं.