वो पहाड़ का सम्माननीय ‘हितैषी’ अचानक बीमार हो चला है। वो अपने समर्थकों से अपील कर रहा है कि कोई भी गलत और अभद्र टिप्पणी सोशल मीडिया पर न करे। बीमारी का जिक्र भी होता तो इलाज में हम भी मदद कर पाते, लेकिन हम ऐसे में सिर्फ आपके शीघ्र स्वस्थ होने की ही कामना कर सकते हैं। रही बात आपके अपने ‘फौजियों’ को दीक्षा और शिक्षा देने की बात तो यहां सबको ये बताना जरूरी हो जाता है कि थोड़ा याद कीजिये या फिर इस तथाकथित पत्रकार और ‘पहाड़ हितैषी’ की सोशल मीडिया की पुरानी टिप्पणियां छानिये। ये अपने समर्थकों से बुरा भला और गालियां ही दिलवाता रहा है। और शान से छाती चौड़ी कर कहता रहा है कि देखो मेरे समर्थकों की लिस्ट। आखिर अचानक बुद्धि में ये बदलाव क्यों आया? पहाड़ के पत्रकारों और सिर्फ मुख्यमंत्री को गालियां देने वाला अब कैसे गालियों से तौबा कर रहा है और गाली देने वाली फौज को अनुशासन में रहने की दीक्षा देने लगा है? इसके पीछे का मकसद भी जानो ‘फौजियों’।
पहाड़ के ‘सर्वहितैषी’ ने अपने सोशल एकाउंट की वॉल में लिखा है कि मेरी गिरफ्तारी पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है। सवाल ये की किस प्रदेश के उच्च न्यायालय ने ये रोक लगाई है? ये साफ ‘हितैषी’ ने क्यों नहीं किया है। अगर उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई गई है तो उसका लिखित आदेश भी होगा। तो क्यों ‘हितैषी’ ने उस आदेश की कॉपी अपनी सोशल मीडिया पोस्ट पर चस्पा क्यों नहीं की है? ये सवाल इसलिए क्योंकि ‘हितैषी’ को हमेशा हर प्रूफ चस्पा करने की आदत रही है।
जो ‘हितैषी’ छाती चौड़ी करके अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मुकदमों की लिस्ट अपनी सोशल मीडिया वॉल पर गर्व से चस्पा करता रहा हो वो अचानक ‘भीगी बिल्ली’ क्यों बन रहा है? क्यों छाती चौड़ी करके ये नहीं कहता कि उत्तराखंड में मेरे खिलाफ एक एयर आपराधिक और सरकार के खिलाफ षड्यंत्र का मुकदमा फ़र्ज़ हुआ है और मेरी तलाश की जा रही है? क्यों आत्मसमर्पण नही कर देता। क्यों अदालतों के दरवाजे खटखटा रहा है अग्रिम जमानत या गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिए?
अरे भई तुम तो पहाड़ और पहाड़ियों के सबसे बड़े ‘हितैषी’ हो ना, फिर क्यों नहीं गांधी की राह चलते? आओ करो अपने ‘अपराध’ पर नाज़ और शान से उठाओ हाथ हथकड़ी के लिए। तुम्हारे पीछे तो ‘पहाड़ की जनता’ है ना?