उमेश कुमार ! दम है तो सामने आ… खुली चुनौती है तुझको

उमेश कुमार। फिर वही नाम जो खुद को पत्रकार बताकर पहाड़ियों को इमोशनल ब्लैकमेल कर रहा है। हालांकि ये कोशिश न कभी पहले किसी की कामयाब हुई और न होगी (ये मेरा विश्वास है)। ये बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं खुद पहाड़ी हूं और पहाड़ी मानसिकता, पहाड़ी स्वाभिमान, पहाड़ी शक्ति और पहाड़ी बुद्धि को जानता-समझता हूं। मैंने जो इससे पहले लिखा था उस पर उमेश कुमार की प्रतिक्रिया फेसबुक पर ही दिखी। मैं फेसबुक पर न उमेश कुमार का मित्र हूं और न ही फेसबुक पर ज्यादा एक्टिव रहता हूं। मुझे उमेश कुमार की प्रतिक्रिया लिखे हुए कुछ स्क्रीन शॉट्स मेरे मोबाइल पर देखने को मिले।

उमेश कुमार ने फेसबुक पर लिखा कि एक और विज्ञापन की चाह रखने वाला पैदा हुआ, मुझे पहाड़ियत सिखाएंगे ये, इनसे न हो सकेगा। अरे, उमेश कुमार। पहले अपनी हिंदी देख ले। खैर, मैं तुमको पहाड़ियत ही नहीं, उत्तराखंडियत भी सिखा दूंगा, पर तुम सीखोगे? मैं तुम्हें पत्रकारिता भी सिखाऊंगा, पर सीखोगे? हां कहो, और सीखो। पहाड़ियत भी, उत्तराखंडियत भी और पत्रकारिता भी।

तुमने लिखा है कि एक और विज्ञापन की चाह रखने वाला आया। ये बता दो कि अजय ढौंडियाल को कहां विज्ञापन दोगे। अगर तुमने पत्रकारिता की पढ़ाई की है तो विज्ञापन का व्यवस्थापन भी पढ़ा होगा। अजय ढौंडियाल के पास विज्ञापन मांगने के लिए कौन सी जगह है। क्या अजय ढौंडियाल का अपना कोई न्यूज पोर्टल, न्यूज चैनल, अखबार, मैगजीन है? मेरे पास मेरा शरीर है बस। चिपका पाएगा मेरे शरीर के कोने कोने पर विज्ञापन?

सुन रे तथाकथित पत्रकार। मैं इनसान हूं। पत्रकार हूं। मेरे पास मेरे शब्द हैं, मेरा विचार है। मेरे पास मेरे मालिकाना हक का कोई ऐसा प्लेटफॉर्म नहीं है जहां मैं विज्ञापन छापूं या चलाऊं।

साफ है कि तुझे हर विचार, हर शब्द विज्ञापन के लिए लगता है। विज्ञापन का सीधा अर्थ है धन पाना। यानि तेरा मकसद सिर्फ धन पाना रहा है और तू हर किसी के शब्दों को और विचारों को धन से तौलता है। तुझे सब अपने जैसे नजर आते हैं। तू सबको विज्ञापन से ही तौलता है। तेरा तराजू सिर्फ पैसे तौलता है। पहाड़ियत पर गलती मत कर। पहाड़ियत को विज्ञापन यानि पैसे पर मत तौल।

हां, यहां तेरा विज्ञापन का मतलब भी सरकारी विज्ञापन से है। मैं सरकार का आदमी नहीं हूं। मुझे सरकार नहीं पालती-पोसती रे। ये जरूर है कि तू अब तक सरकारों से पाला-पोसता आ रहा है। अब तेरे मुंह का ग्रास छोटा हुआ तो बौखला रहा है। अभी भी बेबाक कह रहा हूं कि तुझे जेल में डालने और तुझे सबक सिखाने का दम मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ने दिखाया। क्योंकि उन्होंने तेरे मंसूबे भांप लिए थे और उसे ये नागवार गुजरा कि तुझे पहाड़ के लोगों की मेहनत की कमाई दे दे। तुझे अब तक के सियासतदां यही कमाई देते आ रहे थे। पहाड़ के लोगों का पैसा तेरी तिजोरी के लिए नहीं है।

सुन उमेश। बाज आ जा। वरना झेल। आ खुला खेल कर। देहरादून के परेड मैदान में आ। लेते हैं तेरा साक्षात्काऱ। तूने अपने फेसबुक पर एक पहाड़ी से अपना साक्षात्कार कराया। आ खुल के दे ना साक्षात्कार। मैं ही नहीं, कई पत्रकार हैं तेरे इंतजार में। पर तू तो सबको सरकारी विज्ञापनों से तौलता है। पत्रकार बनता है ना। आ जा। खुली चुनौती है तुझको। सवालों का जवाब देने आ। फेसबुक पर लाइव कर लेना।

(वरिष्ठ पत्रकार  डॉ अजय ढौंडियाल के ब्लॉग से साभार )

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