देहरादून (नेटवर्क 10 टीवी ब्यूरो)। आज शनिवार को प्रसिद्ध जनकवि, लोक गायक और गीतकार हीरा सिंह राणा का निधन हो गया। राणा जी को हिरदा के नाम से पुकारा जाता था। वो सही मायनों में उत्तराखंड की लोककला के हीरा थे जिसे आज उत्तराखंड ने खो दिया। उत्तराखंड की लोककला के लिए जीवनभर सब कुछ समर्पित करने वाले इस फकीर के जाने से पूरा कला जगत तो शोकाकुल है ही उनको चाहने वालों के भी आंसू नही थम रहे हैं।
राणा जी को उत्तराखंड के प्रसिद्ध कवियों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों ने यूं याद किया और अपनी श्रद्धांजलि दी।
नरेंद्र सिंह नेगी, प्रसिद्ध लोकगायक- हीरा सिंह राणा जी का जाना हमारी लोककला संस्कृति के लिए अपूरणीय क्षति है। वो इंसान सही मायनों में लोकसंस्कृति का पुजारी था। पूरा जीवन लोककला के लिए समर्पित कर दिया। जीवन भर एक फकीर की तरह रहे और फकीर की तरह ही चले गए। मेरा उन्हें शत शत प्रणाम।
पदमश्री प्रीतम भरतवाण, जागर सम्राट- राणा जी का विवरण शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता। वे उत्तराखंड की लोक कला संस्कृति के हीरा थे। वो थे तो हमारी कला समृद्ध थी, आज हमने बहुत कुछ खो दिया है। उनके जाने से हमारी लोककला संस्कृति का वृहद अध्याय समाप्त हो गया है।
डॉ.अजय ढोण्डियाल, लोकगायक- बस इतना ही जान पाया हूँ कि शायद सदियों में लोककला के क्षेत्र में पैदा होता होगा एक हीरा सिंह राणा। राणा जी लोकसंस्कृति लोककला के साधक थे। इसके लिए उन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया था। उनके लिए सबकुछ मातृभूमि की माटी ही था। उनके सामने देश दुनिया का हर सम्मान तुच्छ था। उस महात्मा को कोटि कोटि नमन।
शिव दत्त पंत, लोकगायक- राणा जी से ही हमने लोककला संस्कृति को जाना। उनके गीतों से ही गाना सीखा। हम जैसे कई लोककलाकार राणा जी की साधना से जन्मे हैं। राणा जी का व्यक्तित्व एक महात्मा की तरह था। सरल और निष्कपट जीवन शैली, मधुर गायन की तरह उनके हर शब्द में मधु होता था। जिंदगीभर अभाव में जिये एक साधु की तरह और वैसे ही चले गए। लोककला के इस महान साधक को मेरा शत शत नमन।
अतुल शर्मा, प्रसिद्ध जनकवि- उत्तराखंडियत का दूसरा नाम है हीरा सिंह राणा। उनकी कलम में, उनके कंठ के हर शब्द में उत्तराखंडियत थी। वे और उनके गीत जन्म जन्मांतर तक उत्तराखंड की माटी की खुश्बू में घुले मिले मिलेंगे। उत्तराखंड की हवाएं सदा राणा जी के गीत अपनी पीढ़ियों को सुनाती रहेंगी। मैं उस महान आत्मा को शत शत नमन करता हूं।
कल्पना चौहान, लोकगायिका- राणा जी उत्तराखंडी लोककला संस्कृति के सच्चे पुजारी थे। वो इसके वाहक भी थे। उनके कंठ में और कलम में सरस्वती विराजती थी। हम बचपन से उनके गीत सुनकर बड़े हुए। उनके गीतों से प्रेरणा पाकर हमें राह मिली। उनके गीतों को सुनकर आने वाली पीढियां भी लोक कला संस्कृति से जुड़ेगी। वो एक साधु की तरह थे। उनमें उत्तराखंड के दर्शन होते थे। में उनको कोटि कोटि प्रणाम करती हूँ।
मीना राणा, लोकगायिका- राणा जी का जाना उत्तराखंड की लोककला और संस्कृति के एक युग का अवसान है। मैं कहूंगी कि ये हमारी जन्मभूमि का गौरव रहा है कि उसने राणा जी को अपने अंचल में जन्म दिया। राणा जी ने अपनी मातृभूमि की साधना की। लोकसंस्कृति का ऐसा पुजारी सदियों में जन्म लेता है। आज वो चला गया। ये अपूरणीय क्षति है। उस महान आत्मा को भगवान मोक्ष दे। शत शत नमन।