कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के वरिष्ठ नेता शुभेंदु अधिकारी ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तृणमूल विधायक के रूप में इस्तीफा दिया है. बंगाल विधानसभा की सदस्यता से शुभेंदु का इस्तीफा तृणमूल और ममता के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
इसी बीच भाजपा के सूत्रों ने संकेत दिया है कि शुभेंदु 18 दिसंबर को दिल्ली जाएंगे और भाजपा ब्रिगेड में शामिल हो सकते हैं. दूसरी संभावना जताई जा रही है कि शुभेंदु 19 दिसंबर को पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर में भाजपा से जुड़ने का आधिकारिक एलान कर सकते हैं, कयास लगाए जा रहे हैं कि इस कार्यक्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी भाग लेंगे.
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शुभेंदु भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही हैं वे पिछले कुछ दिनों से तृणमूल से नाराज चल रहे थे. ममता बनर्जी व कई अन्य वरिष्ठ तृणमूल नेताओं ने शुभेंदु से संवाद कायम करने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में दोनों के बीच दरार बढ़ती ही गई, और आज अंतत: शुभेंदु ने आज बंगाल विधानसभा से अलग हो गए.
2011 में तृणमूल कांग्रेस की ऐतिहासिक जीत के वे एक महत्वपूर्ण नायक रह चुके हैं. उन्होंने टीएमसी को नंदीग्राम आंदोलन का प्रमुख वक्ता बना दिया. हालांकि, अब वह खुद ही टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज बताए जा रहे हैं. वह अभिषेक बैनर्जी और प्रशांत किशोर दोनों की दखलंदाजी को सही नहीं मानते हैं.
नंदीग्राम सीट से विधायक 49 वर्षीय अधिकारी ने मंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही अपनी ‘जेड प्लस’ सुरक्षा वापस कर दी. सरकारी आवास भी छोड़ दिया है.
कांथी पी.के कॉलेज से स्नातक शुभेंदु अधिकारी ने छात्र जीवन में ही राजनीति में कदम रखा. 1989 में छात्र परिषद के प्रतिनिधि चुने गए. इसके बाद वह 36 साल की उम्र में पहली बार वर्ष 2006 में कांथी दक्षिण सीट से विधायक निर्वाचित हुए. इसी साल वह कांथी नगर पालिका के चेयरमैन भी बने.
सक्रिय राजनीति के दौरान शुभेंदु वर्ष 2009 और 2014 में तुमलुक लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए. वर्ष 2016 उन्होंने नंदीग्राम विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की, जिसके बाद उन्हें ममता सरकार में मंत्री बनाया गया था.
शुभेंदु के सियासी कद को ऊंचाई प्रदान करने में पूर्वी मिदनापुर के वर्ष 2007 के नंदीग्राम आंदोलन ने बड़ी भूमिका निभाई. ममता बनर्जी के नेतृत्व में हुए नंदीग्राम आंदोलन के शुभेंदु ‘शिल्पी’ रहे. इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उन्होंने ‘भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी’ के बैनर तले आंदोलन खड़ा किया. आंदोलनकारियों की पुलिस और माकपा कैडरों के साथ खूनी झड़प हुई. पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर की गई गोलीबारी में कई लोगों की मौत के बाद आंदोलन और उग्र हो गया, जिससे तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार को झुकना पड़ा.