लिपुलेख सड़क को लेकर भारत और नेपाल के बीच बढ़ा तनाव

देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। सूबे के पिथौरागढ़ में बनी लिपुलेख सड़क के उद्घाटन के बाद भारत-नेपाल सीमा पर तनाव बढ़ गया है। एक दिन पहले नेपाल ने सीमा पर जहां सैनिकों की तैनाती के संकेत दिए, वहीं पड़ोसी देश अब उत्तराखंड के छांगरू में स्थानी छावनी निर्माण की योजना बनाता दिख रहा है।

12 साल की मेहनत के बाद चीन सीमा को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण लिपुलेख सड़क बनने के बाद नेपाल ने विरोध भी जताया है। पड़ोसी देश पहले भी लिपुलेख और कालापानी को अपना बताते हुए सड़क निर्माण पर तीखा विरोध जताता रहा है।

वहीं अब जबकि सड़क निर्माण पूरा होता दिख रहा है, तो नेपाल भारत से लगे इस इलाके में अपनी चैकसी बढ़ा दी है। कुछ रोज पहले ही नेपाल ने भारत से सटे छांगरू में स्थाई तौर पर बॉर्डर आउट पोस्ट खोला था। अब जानकारी मिल रही है कि नेपाल इस इलाके को जल्द ही सैनिक छावनी में तब्दील करने जा रहा है। इस छावनी में 160 सैनिकों की तैनाती स्थाई तौर पर होनी है। यह छावनी इंटरनेशनल बॉर्डर से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थापित होगी।

लिपुलेख सड़क के उद्घाटन के बाद से ही इस इलाके में नेपाल की सक्रियता में तेजी देखने को मिली है। 8 मई को लिपुलेख सड़क का उद्घाटन होने के बाद 9 मई को ही नेपाल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इंद्रजीत राई हेलिकॉप्टर से कालापानी और छांगरू पहुंच गए थे और 13 मई को बीओपी खोलकर रवाना हुए। बताया जा रहा है कि नेपाल फिलहाल 9 करोड़ की लागत से छावनी बनाने की योजना बना रहा है।

छावनी बनने के बाद उच्च हिमालयी इलाके में नेपाली सैनिकों की साल भर मौजूदगी रहेगी। असल में लिपुलेख सड़क का उद्घाटन होने के बाद नेपाल ने कड़ा विरोध जताया हैनेपाल सरकार का दावा है कि कालापानी और लिपुलेख उसका हिस्सा है और भारत ने नेपाल के भू-भाग में जबरन सड़क का निर्माण किया है। जबकि सच्चाई ये है कि ये दोनों इलाके सुगौली संधि के बाद से ही भारत के पास है। जिस कालापानी पर नेपाल दावा जता रहा है, वहां 1962 के बाद से ही भारतीय जवानों की तैनाती है।

यही नहीं, 1962 में हुए बंदोबस्त के मुताबिक कालापानी गर्व्यांग गांव का तोक है, जिसके अभिलेख भी धारचूला राजस्व विभाग के पास मौजूद हैं। लिपुलेख सड़क को लेकर नेपाल की बौखलाहट के पीछे चीनी साजिश भी नजर आ रही है।

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