उत्तराखंड के मखमली बुग्यालों का अस्तित्व संकट में है। मवेशियों का अनियंत्रित चुगान और जड़ी-बूटियों का अवैज्ञानिक दोहन आनेवाले समय में इन बुग्यालों का वजूद खत्म कर सकता है। लगभग नौ साल पहले यह खुलासा जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान (एचआरडीआई) और वन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई शोध रिपोर्ट ‘रेंडम मैपिंग एक्सरसाइज(आरएमई) में हुआ था लेकिन अभी तक बुग्यालों को बचाने के कोई ठोस प्रयास शुरू नहीं किए गए हैं। इतना जरूर है कि हाईकोर्ट के सख्त रूख के बाद बुग्यालों में मानव की दखल पर अंकुश लगा है। रिपोर्ट में चिंता जताई गई थी कि बुग्यालों में घास और औषधीय पादपों की कई प्रजातियां तेजी से कम हो रही हैं।
उत्तराखंड के गढ़वाल हिमायल में हिमशिखरों की तलहटी में टिंबर लाइन (पेड़ों का उगना) समाप्त हो जाती है और मखमली घास के मैदान शुरू हो जाते हैं, जिन्हें बुग्याल कहा जाता है। बुग्याल आमतौर पर आठ से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। शीतकाल में ये बुग्याल बर्फ से लकदक रहते हैं, जिससे प्राकृतिक सौंदर्य और निखरकर सामने आता है। इन बुग्यालों में मखमली घास के साथ औषधीय पादपों की 250 से 300 तक प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से अधिकांश दुर्लभ हैं। पिछले कुछ दशकों में बुग्यालों में मानवीय दखल बढ़ा है, जिसका प्रतिकूल प्रभाव यहां की वनस्पति पर पड़ रहा है। वर्ष 2010 में जड़ी- बूटी एवं विकास संस्थान गोपेश्वर और वन विभाग ने स्थानीय बुग्यालों पर एक रेंडम मैपिंग एक्सरसाइज की थी, जिसकी रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। रिपोर्ट के अनुसार नंदा देवी, फूलों की घाटी, गंगोत्री राष्ट्रीय पार्क और कुछ वन पंचायतों को छोड़कर कई बुग्यालों में स्थानीय तथा घुमंतू चरवाहे मवेशियों को चराने और जड़ी-बूटियां ढूंढऩे जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड के बुग्यालों में करीब डेढ़ लाख भेड़- बकरियां और करीब दस हजार गाय-भैंस व घोड़े-खच्चर चरते हैं। नतीजतन, बुग्याल में वनस्पतियों का आवरण घटने के साथ खरपतवारों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, जिसका बुग्यालों के वजूद पर बुरा असर पड़ रहा है। जड़ी बूटी शोध एवं विकास संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विजय प्रसाद भट्ट का कहना है कि इन दो कारणों से बुग्याल में अतीश, कटुकी, जटामासी, वनककड़ी, मीठा, सालमपंजा, सुगन्धा आदि प्रजातियों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। बुग्यालों में मवेशियों के चुगान से भूस्खलन का खतरा भी बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि बुग्यालों के संरक्षण के लिए ठोस प्रयास करने होंगे।
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उत्तराखंड के प्रमुख बुग्याल –
1. पलंग गाड़, छियालेख-गब्र्याल, कालापानी, नाबी, ढांग, लीपूलेख, नम्पा, कुटी, सेला यांगती ज्योलिंग कॉग
(इन बुग्यालों में भेड़, बकरियों और भैंसों की कुल संख्या लगभग 15550 है)
2. चोरहोती, कालाजोवार, नीती, तिमर सेन, गोथिंग, ग्यालडुंग, ढामनपयार, मलारी
(इन बुग्यालों में भेड़, बकरियों और भैंसों की कुल संख्या लगभग 14450 है)
3. सुंदर ढुंगा, पिण्डारी, कफनी, नामिक (इन बुग्यालों में भेड़, बकरियों और भैंसों की कुल संख्या लगभग 8550 है)
4. धरांसी, सरसो पातल, भिटारतोनी वेदनी औली, रूपकुंड (इन बुग्यालों में भेड़, बकरियों और भैंसों की कुल संख्या लगभग 4550 है)
5. सतोपंथ, ढानू पयार, सेमखरक, देववन, नीलकंठआधार, खीरोंघाटी, फूलों की घाटी, राजखर्क, कागभुसण्डी (इन बुग्यालों में भेड़, बकरियों और भैंसों की कुल संख्या लगभग 5250 है)
6. रूद्रनाथ, तुंगनाथ, विसूरी ताल, मनिनी, खाम, मदमहेश्वर, केदारनाथ, वासुकीताल (इन बुग्यालों में भेड़, बकरियों और भैंसों की कुल संख्या लगभग 11430 है)