दिल्ली: जहरीली हवा से दिल्ली-एनसीआर का दम निकल रहा है. हर साल की तरह ही राजधानी इस बार भी हर दिन पहले से अधिक जहरीली होती जा रही है. हवा की कम रफ्तार, धूल और धुएं का असर इतना ज्यादा बढ़ा है कि दिल्ली धुंध से घिर गई है. लेकिन सरकारें बेपरवाह हैं. भले ही यहां साफ हवा की कमी है लेकिन सियासत भरपूर हो रही है. अब खुद को बचाने के लिए दिल्ली सरकार हमलावर हो रही है और पराली को पॉलिटिकल हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही. दिल्ली सरकार के मंत्री भी पूरी ताकत से अपनी असफलता छिपाने में लगे हैं. लेकिन इनका बहाना पराली के साथ थर्मल प्लांट भी है.
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन का कहना है कि दिल्ली के प्रदूषण में आसपास के थर्मल प्लांट का बड़ा योगदान है. दिल्ली सरकार का मानना है कि दिल्ली के आसपास के जितने पावर स्टेशन है वह प्रदूषण के नियमों का पालन नहीं कर रहे और इन प्लांट को बंद कर देना चाहिए. कुल 11 थर्मल प्लांट दिल्ली के आसपास चल रहे हैं, इन्हें बंद करने के लिए मैंने केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल को चिट्ठी लिखी है.
हालांकि सच तो ये है कि दुनिया की वायु गुणवत्ता सूचकांक रैंकिंग पर एयर विजुअल के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल भी दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था. पिछले साल दिल्ली की वायु गुणवत्ता ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. दिल्ली में 527 AQI दर्ज किया गया, जो कि दुनिया में सबसे खतरनाक माना गया. नौ दिनों तक लगातार यहीं खतरनाक स्थिति बनी रही थी. उस वक्त दिल्ली का प्रदूषण कोलकाता के मुकाबले दोगुना था.
दिल्ली में यही हालात हर साल होते हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन जो वायु प्रदूषण को लेकर हर साल 1600 शहरों में सर्वे करता है. दिल्ली उस लिस्ट में भी टॉप 10 में रहता है.
लोगों के फेफड़े हो रहे खराब
दिल्ली में वायु प्रदूषण की वजह से ही हर साल 22 लाख लोगों के फेफड़े प्रभावित होते हैं. ये महज आंकड़े नहीं, सच्चाई है कि सरकारें अपनी नाकामी छिपाने के लिए पराली का सियासी बहाना बनाती है. क्योंकि पदूषण को लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के दावे दिल्ली सरकार से अलग हैं. दिल्ली सरकार के दावों को खारिज करते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि वायु प्रदूषण कम करने के लिए 6 सालों में कई पहल की गई.
इस्टर्न और वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के निर्माण से हर दिन 60 हजार ट्रक अब दिल्ली में प्रवेश नहीं करते. यही नहीं केंद्र ने बदरपुर थर्मल प्लाट को भी बंद कर दिया है. किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए 1400 करोड़ रुपये की आधुनिक मशीन खरीदने के लिए दिए गए. इससे प्रदूषण में 15 से लेकर 20 फीसदी तक की कमी आई है. अगर केंद्र सरकार के ये दावे सच हैं तो वाकई पराली वाली पॉलिटिक्स देश के लिए अभिशाप है.
ये सच है कि वायु प्रदूषण सिर्फ दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत की नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है. इतनी बड़ी समस्या से लड़ने के लिए सभी सरकारों को साथ आना चाहिए. ईमानदारी से नीति बनानी चाहिए और उसे लागू करना चाहिए. जनता को भी जागरुक करना चाहिए. लेकिन इस सभी बातों के लिए सबसे पहले हमें पराली वाली पॉलिटिक्स बंद करनी होगी. उत्तर भारत के मुख्यमंत्रियों और भारत सरकार को खुद अपने और अपने परिवार के बारे में भी सोचना चाहिए. क्योंकि ये समस्या ऐसी है. जो रसूख वालों के यहां भी पहुंचती है. एक रिसर्च के मुताबिक वायु प्रदूषण देश का पांचवां सबसे बड़ा किलर यानी हत्यारा माना जाता है.
देश में वायु प्रदूषण से हर साल 12.5 लाख लोगों की मौत होती है. ये देश में HIV/AIDS, टीबी और मलेरिया से मरनेवालों लोगों से तीन गुना ज्यादा है और इसकी वजह सांस लेने वाली हवा की गुणवत्ता में कमी है जिसे हम AQI कहते हैं.
क्या है AQI
दरअसल AQI यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स का पैमाना शून्य से 500 के बीच मापा जाता है. 0 से 50 के बीच वायु गुणवत्ता सूचकांक को अच्छा माना जाता है. इस स्तर पर प्रदूषण का सबसे कम प्रभाव होता है. दूसरा है 51 से 100 जो संतोषजनक माना जाता है. इस स्थिति में पहले से बीमार को सांस लेने में तकलीफ होती है. तीसरा स्तर है 101 से 200 जो मध्यम या मॉडरेट माना जाता है.
इसमें फेफड़े, अस्थमा और हृदय रोगियों को बेचैनी होती है. चौथा स्टेज हैं. 201 से 300 AQI जिसे खराब माना जाता है. इस स्टेज में ज्यादातर लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. पांचवां स्टेज है 301 से 400 AQI. इस स्तर पर हवा को बेहद खराब माना जाता है. लंबे समय तक इस हवा में रहने पर सांस की बीमारी होती है. दिल्ली फिलहाल इसी स्थिति में है और आखिरी स्टेज है 401 से 500 AQI इसे खतरनाक कहा जाता है. इसमे स्वस्थ लोगों को भी नुकसान होता है.