Shardiya Navratri 2022:  नवरात्रि के दूसरे दिन होती है मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा

Navratri 2022 2nd Day Maa Brahmacharini Puja: शारदीय नवरात्रि शुरू हो चुके हैं और आज नवरात्रि का दूसरा दिन है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है -नौ रातें। इन नौ रातों और दस दिन के दौरान,शक्ति देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवां दिन दशहरा मनाया जाता है। माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी का हैं। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या हैं। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी हैं-वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद,तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता हैं।

इनकी पूजा करने से व्यक्ति के अंदर जप-तप की शक्ति बढ़ती है। मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों को संदेश देती हैं कि परिश्रम से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। कहा जाता है कि नारद जी के उपदेश से मां ब्रह्मचारिणी ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसलिए इन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है। मां ब्रह्मचारिणी कई हजार वर्षों तक जमीन पर गिरे बेलपत्रों को खाकर भगवान शंकर की आराधना करती रहीं और बाद में उन्होंने पत्तों को खाना भी छोड़ दिया, जिससे उनका एक नाम अपर्णा भी पड़ा।

इस तरह करें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा

मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को आपने कलश में आमंत्रित किया है। उन्हें पंचामृत स्नान दूध, दही, घृत, मेवे और शहद से स्नान कराएं। इसके बाद इन पर फूल, अक्षत, रोली, चंदन का भोग लगाएं। इसके बाद पान, सुपारी और कुछ दक्षिणा रखकर पंडित को दान करें। इसके बाद अपने हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करते हुए बार-बार मंत्र का उच्चारण करें। इसके बाद मां ब्रह्मचारिणी को सिर्फ लाल रंग का ही फूल चढ़ाए साथ ही कमल से बना हुआ ही माला पहनाएं। मां को चीनी का भोग लगाएं। ऐसा करने से मां जल्द ही प्रसन्न होती है। इसके बाद भगवान शिव जी की पूजा करें और फिर ब्रह्मा जी के नाम से जल, फूल, अक्षत आदि हाथ में लेकर ‘ऊं ब्रह्मणे नम:’ कहते हुए इसे भूमि पर रखें।

 स्तुति मंत्र
1. या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

 

 

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