पीठसैंण में राजनाथ सिंह के स्वागत की तैयारियां जोरों पर

पौड़ी/पीठसैंण (नेटवर्क 10 संवाददाता)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह एक अक्टूबर को पेशावर कांड के नायक एवं स्वाधीनता संग्राम सेनानी वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के पैतृक गांव पीठसैंण पौड़ी गढ़वाल आयेंगे। उनके स्वागत को लेकर पीठसैंण में तैयारियां जोरों पर है। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की पुण्य तिथि पर केन्द्रीय रक्षा मंत्री उनकी स्मृति में मूर्ति का अनावरण एवं स्मारक का लोकार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित करेंगे। इसके साथ ही राजनाथ सिंह शहीद सैनिकों के परिजनों एवं वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के परिजनों को भी सम्मानित करेंगे। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट, गढ़वाल सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सहित स्थानीय जनप्रतिनिधि भी कार्यक्रम में शिरकत करेंगे।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह देश की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीर शहीदों के परिजनों एवं वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली के परिजनों को भी सम्मानित करेंगे। सैनिक सम्मान को लेकर लेकर स्थानीय लोगों भारी उत्साह है जिसको लेकर तैयारियां जोरों पर चल रही है। केन्द्रीय रक्षा मंत्री के स्वागत में उत्तराखंड के ख्याति प्राप्त लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी अपनी टीम के साथ सांस्कृतिक प्रस्तुति देंगे।

कार्यक्रम में सहकारिता विभाग के अंतर्गत संचालित दीनदयाल उपाध्याय योजना के तहत महिला समूहों को रूपये पांच लाख तक के ब्याज मुक्त ऋण के चौक भी वितरित किये जायेंगे। साथ ही क्षेत्रीय विकास के लिए समर्पित राठ विकास अभिकरण के तत्वाधान में क्षेत्र की ग्रामीण महिलाओं को घस्यारी किट का वितरण किया जायेगा। डॉ. रावत ने बताया कि ग्रामीण महिलाओं की रोजमर्रा की आवश्यताओं को देखते हुए घसियारी किट दो कुदाल, दो दारांती, रस्सी, एक टिफिन बॉक्ट, पानी की बोतल और एक किट बैग दिया जा रहा है, ताकि ग्रामीण महिलाएं अपनी आवश्यकतानुसार इनका इस्तेमाल कर सकें।

कौन थे ‘गढ़वाली’ वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली

कौन थे ‘गढ़वाली’ वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसम्बर, 1891 ई० में पीठसैंण के निकट रोणैसेर ग्राम (पौड़ी गढ़वाल) के एक साधारण कृषक जथली सिंह के घर में हुआ था। उन्होंनें प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव के आस-पास के गाँवों में ही अर्जित की और 11 सितम्बर 1914 को लैंसडौन छावनी में 2/36 गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट में भर्ती हो गये। सन् 1926 ई० में महात्मा गांधी के कुमाऊँ में आगमन पर वह गांधी जी से मिलने बागेश्वर गये और गांधी जी के हाथ से टोपी लेकर पहनी और उसकी कीमत चुकाने का प्रण किया।

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान पेशावर में जब पठान लोग आंदोलन कर रहे थे तब अंग्रेज अफसर रिकेट ने हुक्म दिया, “गढ़वाली श्री राउण्ड फायर”, अर्थात् गढ़वाली तीन राउण्ड गोली चलाओ। हवलदार चन्द्रसिंह रिकेट की बायीं ओर खड़े थे। उन्होंने रिकेट के हुक्म के तुरन्त बाद हुक्म दिया, “गढ़वाली सीज फायर” अर्थात् गढ़वा ली गोली मत चलाओ। सैनिकों ने चन्द्रसिंह का ही हुक्म माना और जुलूस की ओर बन्दूकें नीचे जमीन पर खड़ी कर दी। चन्द्रसिंह ने रिकेट से कहा “हम निहत्थों पर गोली नहीं चलाते।” इसके पश्चात् साठ गढ़वालियों पर बगावत का आरोप लगाया गया। 12 जून, 1930 ई० की रात को चन्द्रसिंह एवटाबाद जेल में भेज दिये गये। जेल से रिहा होने के पश्चात गढ़वाली स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। 1948 ई० में उन्होंनें टिहरी आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1 अक्टूबर 1979 को चन्द्रसिंह गढ़वाली का लम्बी बिमारी के बाद देहान्त हो गया।

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