भारत-चीन सीमा पर स्थित नेलांग-जाडुंग के लिए 40 सदस्यीय दल रवाना

उत्तरकाशी: भारत-चीन सीमा पर चल रहे गतिरोध के बीच 40 लोगों का दल उत्तरकाशी से सटी भारत-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा के नेलांग-जाडुंग सहित गड़तांग गली के दीदार के लिए रवाना हुआ है. इसमें कुछ पर्यटकों सहित उत्तरकाशी जनपद मुख्यालय सहित नेलांग-जाडुंग से विस्थापित जाड़ समुदाय के बगोरी गांव के ग्रामीण शामिल हैं. यह स्थानीय लोग और पर्यटक रविवार को 17 वीं सदी में बनी भारत-तिब्बत व्यापार की यादों को संजोए हुए करीब 150 मीटर लम्बी खड़ी चट्टानों पर बनी गड़तांग गली की सीढ़ियों का दीदार करने के बाद नेलांग और जाडुंग गांव के लिए रवाना होंगे. जहां पर जाड़ समुदाय के लोग अपनी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करेंगे.

विश्व पर्यटन दिवस के अवसर पर अनघा माउंटेन एसोसिएशन सहित वेयर ईगल डेयर और जिला होटल एसोसिएशन के सयुंक्त तत्वाधान भारत-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित नेलांग-जाडुंग और गड़तांग गली घूमने और उसे पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित करने के लिए कोरोना काल और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर चल रहे गतिरोध के बीच कार्यक्रम का आयोजन किया गया. अंतरराष्ट्रीय सीमा के गांव के दीदार के लिए 40 सदस्यीय दल को सीओ उत्तरकाशी पुलिस दीवान सिंह मेहता ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. इस कार्यक्रम को तीनों एसोसिएशन ने 2014 में शुरू किया था. उसके बाद ही नेलांग घाटी तक पर्यटकों के लिए प्रदेश सरकार ने खोला था.

अनघा माउंटेन एसोसिएशन के संयोजक अजय पूरी ने बताया कि गड़तांग गली में एक अनूठी इंजीनियरिंग का नमूना है, साथ ही यह भारत-चीन तिब्बत व्यापार का मुख्य मार्ग रहा है. नेलांग-जाडुंग गांव से वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय वहां के जाड़ समुदाय के ग्रामीणों को हर्षिल घाटी के बगोरी गांव में विस्थापित किया गया था.

इस कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर एक बार फिर जाड़ समुदाय की संस्कृति अपनी छटा बिखरेगी. वेयर ईगल डेयर के तिलक सोनी ने बताया कि कैलेंडर ईयर के तहत हर वर्ष इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. हमारा प्रयास है कि सीमांत क्षेत्र में पर्यटन के नए और हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को विकसित किया जाए.

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