पौड़ी (अनिल बहुगुणा)।
-परगना बारहस्यूं के मिरचोडा गांव ने बनाया कोरन्टाईन मॉडल
-रेड, ग्रीन और ऑरेंज ज़ोन से आ रहे लोगो को इसी तरह से रखा जा रहा है अलग अलग
-इस तरह के मॉडल को अपनाया जा सकता है अन्य गांव में भी
वैश्विक महामारी से जहाँ प्रदेश भर में गांवों को पहुँच रहे लोगों को कोरन्टीन करना जिला प्रशाशन के लिये सिरदर्द बना हुआ है वहीं पौड़ी गढ़वाल जनपद के परगना बारहस्यू के असवालसियू पट्टी के मिरचोड़ा गांव के प्रधान ने गांव वालों के साथ मिल कर एक कोरन्टीन मॉडल तैयार किया है। गांव के लोगों ने प्रधान वीरेंद्रलाल और उप प्रधान मालती असवाल के साथ मिल कर एक ऐसे कोरन्टीन सेंटर बनाये है जिसमें अभी तक कोई बिबाद नहीं हुआ।
इस गांव में स्वास्थ्य उपकेंद्र, प्रथमिक स्कूल, संकुल भवन, लंबे समय से बंद घरों के साथ ही उन घरों को भी कोरन्टीन सेंटर में बदल दिया है जिन लोगों ने अपने पुराने घर छोड़ कर नये घर सड़क के किनारे बना लिये है। गांव के ग्रामीणों ने तय किया है कि रेड ज़ोन से आने वाले लोगों को जूनियर हाईस्कूल के एक भवन में रखा जायेगा। इलाज़ के लिये बाहर गये और अब वापस लौटे लोगों को स्वास्थ्य उप केंद्र में कोरन्टीन किया जायेगा उनकी मदद के लिये एक युवा को तीमारदारी के लिये उन्हीं के साथ कोरन्टीन अवधि तक के लिये रखा जायेगा और ये भी उनकी कोरन्टीन अवधि तक वहीं कोरन्टीन रहेगा।
ऐसे लोग जो अपने मकानों पर ताला लगा कर वर्षों पूर्व गांव से चले गये थे और अब महामारी के डर से वापस आये है को उन्हीं के घरों में कोरन्टीन किया जायेगा, उनके खाने और पानी की ब्यवस्था गांव के लोग उस घर के पास ही करेंगे। इन लोगो के पानी के नल पर जाने और घर से निकले पर सख्त पावंदी है।
ग्रीन और ऑरेंज ज़ोन से आने वाले युवा उम्र के लड़कों को प्रथमिक विद्यालय में कोरन्टीन किया जा रहा है। ग्रामीणों ने ये भी तय किया है कि और अन्य लोग जो गांव वापस आना चाहते है उनको 3 दिन पूर्व गांव के प्रधान को इत्तला करना होगा। उनके लिये जूनियर हाईस्कूल के दूसरे भवन में कोरन्टीन करने की ब्यवस्था की गई है। ग्रामीणों ने उन पुराने घरों को खोलने की अनुमति उन भवन मालिकों से ले ली है जो या तो अब अपने गांव में नहीं रहते या उन्होंने अपने लिये नये घर बना लिये है।
इस गांव में कोरन्टीन के लिये भी रेड, ऑरेंज और ग्रीन का वर्गीकरण किया गया है, इन जोनों से आने वाले बहारी लोगों को इसी हिसाब से कोरन्टीन किया जा रहा है। कोरन्टीन किये जाने वाले लोगों के लिये खाने और पानी की ब्यवस्था उन्हीं के रिस्तेदारों और भाई बंधो द्वारा ही उस राशन से की जा रही है जो ग्रामीणों को चार माह के लिये मिला है या जो अतरिक्त जिला प्रशाशन द्वारा मुहैया करवाया जायेगा। इन सब कोरन्टीन होने वाले प्रवासियों के लिये गांव के लोग ही खाना पका रहे है। इन ग्रामीणों की परेशानी तो एक ही है कि कोरन्टीन अवधि पूरी करने के बाद इनका मेडिकल परीक्षण कैसे हो पायेगा ताकि उनको अपने घरों में जाने की इजाज़त दी जा सके।