पिछले 10 सालों में टिहरी से इतना हुआ पलायन, रिपोर्ट के आंकड़े डराते हैं….

देहरादून (नेटवर्क 10 ब्यूरो)। आज बात करते हैं उत्तराखंड के सबसे मुद्दे की यानि पलायन की। पलायन के तहत आज हम बात करेंगे खास टिहरी जिले की। पलायन आयोग ने पलायन के संबंध में जो रिपोर्ट टिहरी जिले की पेश की है वो बहुत भयावह है। ये रिपोर्ट बताती है कि  पिछले 10 सालों में ही टिहरी जिले के 58 गांव पूरी तरह से ही खाली हो गए। इसके जिले के 71 ऐसे गांव हैं जहां की 50 प्रतिशत आबादी पलायन कर गई है। इसके मुताबिक करीब 90 हजार लोगों ने पलायन किया है। इनमें से 19 हजार लोग ऐसे हैं जो पूरी तरह से गांव छोड़कर चले गए हैं। बताया गया है कि इन लोगों के पलायन की सबसे बड़ी वजह रोजगार की तलाश है।

पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आई है वो ये है कि टिहरी जिले के 9 विकास खंडों में से पांच में जनसंख्या बढ़ने की बजाय कम हुई है। इन जिलों में दशकीय जनसंख्या वृद्धि दर ऋणात्मक पाई गई है। इसमें चंबा और देवप्रयाग जैसे विकासखंड भी शामिल हैं जो चार धामयात्रा से किसी न किसी रूप से जुड़े हुए हैं। जिले में अस्थायी पलायन अधिक है और यह सरकार को थोड़ी बहुत राहत दे सकता है। आपको बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक टिहरी जिले की कुल जनसंख्या 6 लाख 18 हजार है। इसमें से 3 लाख 38 हजार लोग ऐसे हैं जिनके पास कोई काम नहीं है। यानि टिहरी जिले से पलायन की सबसे बड़ी वजह उच्च बेरोजगारी दर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 52 प्रतिशत पलायन रोजगार की वजह से हुआ है।

पलायन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक टिहरी जिले में 399 ऐसे गांव हैं जहां लोगों को पानी लाने के लिए एक किलोमीटर से ज्यादा दूर पैदल जाना पड़ता है। इसके अलावा 660 गांव ऐसे हैं जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं हैं। टिहरी जिले से करीब 40 प्रतिशत लोगों ने राज्य के बाहर पलायन किया है। टिहरी के करीब 3 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो देश छोड़कर ही चले गए। यहां के करीब 18 प्रतिशत लोग गांव छोड़कर नजदीकी कस्बों की ओर चले गए।

अब जरा हम आपको पलायन आयोग की रिपोर्ट के कुछ और मुख्य बिंदु बताते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक टिहरी जिले के करीब साढ़े 71 हजार लोगों ने पिछले दस सालों में 934 ग्राम पंचायतों से अस्थायी रूप से पलायन किया। एक अच्छी बात ये है कि इन लोगों का अपने घरों से संपर्क बना हुआ है और ये लोग जिले की आर्थिकी में सीधा योगदान भी देते हैं। कारण ये कि ये लोग अपने घर पैसे भेजते रहते हैं। इसके अलावा करीब 19 हजार लोग ऐसे हैं जो स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं। इन्हें अब आप प्रवासी कह सकते हैं।

अब आपको टिहरी जिले के घोस्ट विलेजेज के बारे में बताते हैं। टिहरी जिले के भिलंगना में 4, चंबा में14, देव्रप्रयाग में10, जाखणीधार में 3, जौनपुर में 12, किर्तीनगर  में 2, नरेंद्रनगर में 3, थौलधार में 12 घोस्ट विलेज हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या उन गांवों की है जहां सड़क नहीं है। ऐसे घोस्ट विलेज जिले में 44 हैं। यहां आपको ये भी बता दें कि उत्तराखंड में घोस्ट विलेजजे की संख्या 734 है।

क्या कर रही है सरकार

अब बात करते हैं सरकार की कि वो क्या कुछ कर रही है ऐसे हालात से निपटने के लिए। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पलायन आयोग की रिपोर्ट की समीक्षा की। उनका कहना है कि ये हमारा लक्ष्य लोगों को उनके घर पर ही रोजगार देने का है। इसके लिए ये आकलन जरूर किया जाना चाहिए कि कितने लोग हैं जो वापस लौटे हैं और इनमें से कितने लोग प्रदेश में रहकर रोजगार करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री ने आदेश दिए हैं कि इसकी रिपोर्ट बनाई जाए कि किन क्षेत्रों में रोजगार की ज्यादा संभावनाएं हैं। स्थानीय उत्पादों को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके अलावा जमीन के मामलों में पति के साथ पत्नी का नाम भी दर्ज किया जाए ताकि गावों में महिलाओं को बैंक से आसानी से लोन दिया जा सके।

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