राजनीति ही नहीं संसदीय ज्ञान में भी कोई सानी नहीं था इंदिरा हृदयेश का

देहरादून; नेता प्रतिपक्ष और उत्तराखंड कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा हृदयेश के निधन से कॉन्ग्रेस को बड़ा झटका लगा है। वह पार्टी की दि्ग्गज नेताओं में से एक थीं। वह दिल्ली में कांग्रेस संगठन की बैठक में शामिल होने गईं थीं। जहां रविवार की सुबह उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई। इसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां उनका निधन हो गया। कुछ समय पहले ही नेता प्रतिपक्ष कोरोना से उबरीं थीं और उनकी हार्ट संबंधी सर्जरी भी हुई थी। उनके बेटे सुमित भी दिल्ली पहुंच रहे हैं। उनके शव को उत्तराखंड ले जाने की तैयारी हो रही है।
इंदिरा हृदयेश लगभग 80 वर्ष की थीं और बीते करीब 47 सालों से राजनीति में सक्रिय थीं। वह कांग्रेस की पूर्ववर्ती राज्य सरकारों में कैबिनेट मंत्री रही थीं। उत्तर प्रदेश के समट से राजनीति में सक्रिय कांग्रेस की वरिष्ठ नेता इंदिरा वर्ष 1974 से लगातार चार बार विधानपरिषद सदस्य रहीं है। राज्य गठन के बाद 2002 में इन्होंने पहली बार चुनाव हल्द्वानी से लड़ा औहर भाजपा के दिग्गज नेता बंशीधर भगत को पटखनी दी। एनडी तिवारी के नेतृत्व वाली सरकार में वित्त, लोनिवि एवं संसदीय कार्य जैसे विभागों को संभाला। 2007 में बंशीधर भगत ने उन्हें मात दी। 2012 में भाजपा की रेनू अधिकारी को हराकर वह पांच साल सरकार में नंबर दो की हैसियत में रहीं और वर्तमान में उत्तराखंड की विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं। उन्हें संसदीय नियमों का विद्वान माना जाता था। उनके संसदीय नियम कानूनों और परंपराओं की जानकारी की विरोधी भी तारीफ करते थे।
इंदिरा हृदयेश की निधन पर सूंपर्ण राजनीतिक जगत में शोक व्याप्त है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उनके निधन पर दुख प्रकट किया है। पूर्व सीएम त्रिवेन्द्र ने अपने ट्विटर के जरिए उनको श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने लिखा है : अभी-अभी कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री डॉक्टर इंदिरा हृदयेश जी के निधन का दुःखद समाचार मिलकर मन अत्यंत दुखी है। इन्दिरा बहिन जी ने अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कई पदों को सुशोभित किया और विधायिका के कार्य में पारंगत हासिल की। बहिन जी का जाना मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है।”

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