हल्द्वानी (नेटवर्क 10 संवाददाता)। कोरोना काल में उपनल संविदाकर्मियों को नौकरी से निकाले जाने पर संगठन ने गहरी नाराजगी जताई है। संगठन का कहना है कि एक तरफ तो सरकार कई आदेश पारित कर चुकी है जिसमें कहा गया है कि प्राइवेट कंपनियां किसी को भी नौकरी से न निकालें और दूसरी तरफ उसके ही विभागों में कार्यरत करीब 100 उपनल संविदा कर्मियों को नौकरी से निकाला जा चुका है।
संगठन का कहना है कि ये कर्मचारी अब जाएं तो जाएं कहां। संगठन की तरफ से कहा गया है कि संविदा कर्मियों को नियमित करने की लड़ाई चल रही है। मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में है और ऐसे में सरकार उनको निकाल रही है।
शनिवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हुई संगठन की बैठक में वक्ताओं ने कहा कि उपनल कर्मियों को दो माह का वेतन तक नहीं मिला है, ऐसे में उन्हें नौकरी से हटाया जाना मानवीय दृष्टिकोण से गलत है। कोरोना महामारी के इस संकट काल में मानसिक परेशानी से जूझना पड़ रहा है।
प्रदेश महामंत्री मनोज जोशी ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा इस कोरोना काल मे किसी भी कर्मचारी को नौकरी से न हटाये जाने से सबंधित कई आदेश जारी किए हैं। उपनल कर्मचारियों के नियमितीकरण से संबंधित प्रकरण सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इसके बावजूद कोरोना महामारी के दौरान जिला न्यायालय कार्यालय देहरादून से 40, नगर निगम रुद्रपुर से छह व अन्य विभागों से करीब 50 उपनल कर्मियों को नौकरी से निकाला जा चुका है। कार्यकारी सदस्य पीएस धामी ने कहा कि सरकार के अधीन आने वाले विभाग ही सरकार के आदेशों की अवहेलना पर उतर आए हैं।
दूसरी तरफ संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष पूरन भट्ट ने कहा की मुख्यमंत्री ने राज्य स्थापना दिवस पर उपनल व पीआरडी कर्मचारियों का वेतन बढ़ाने का वादा किया था लेकिन केवल पीआरडी कर्मचारियों का ही वेतन बढ़ाया गया। प्रदेश अध्यक्ष रमेश शर्मा ने कहा कि कई विभागों से हटाए गए उपनल कर्मी व उनका परिवार मानसिक व आॢथक संकट झेल रहा है। बैठक में वक्ताओं ने हटाए गए कर्मचारियों की पुन: बहानी की मांग उठाई। साथ ही मुख्यमंत्री को पत्र भी भेजा।