विश्लेषण:… तो क्या त्रिवेंद्र सरकार का रिमोट एसीएस ओमप्रकाश के हाथ में है?

(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)
– आखिर सिंगटाली रिजार्ट का उद्घाटन करने क्यों पहुंचे सीएम?
– दिल्ली की पार्टी राजीव साबरा का है क्या ओमप्रकाश कनेक्शन?

भूमिका
सिंगटाली भूमि खरीद-फरोख्त हमारे प्रदेश में नेता-नौकरशाह और भूमाफिया बड़े गठजोड़ की एक छोटी सी कहानी भर है। ऐसे किस्सों की भरमार है। सिंगटाली के इस प्रकरण से मैं आपको बताना चाहता हूूं कि हमारे नेता किस तरह से प्रदेश को नुकसान पहुंचाते हैं और मीडिया भी मैनेज कर लिया जाता है। सिंगटाली में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा किये उद्घाटन पर मेनस्ट्रीम मीडिया चुप्पी साध लेता है। यूकेडी के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी होती है, उस पर भी एक शब्द नहीं। नेता-नौकरशाह-माफिया और मीडिया का यही गठजोड़ हमारे प्रदेश को दीमक की तर्ज पर खत्म कर रहा है।

कहानी यहां से शुरू
20 मार्च 2020। देश में कोरोना वायरस तेजी से फैल रहा था। पीएम नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को ऐतिहासिक एक दिन का लाॅकडाउन किया था। इससे पहले हमारे सीएम त्रिवेंद्र रावत 10 मार्च को ही आदेशित कर चुके थे कि अब किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम में 50 से अधिक लोगों की गैदरिंग नहीं होगी। लेकिन अगले ही दिन म्यूजियम का निमंत्रण पत्र मीडिया के पास पहुंच जाता है कि सीएम इसका उद्घाटन करेंगे और ठीक 20 मार्च को वो ऋषिकेश के निकट सिंगटाली गांव पहंुच जाते हैं। यहां 200-250 लोग और सौ से भी अधिक पुलिसकर्मी एकत्रित होते हैं। सीएम अपने ही आदेश को स्वयं ही तोड़ देते हैं। ऐसा क्या जरूरी था कि सीएम को यहां आना पड़ा। वो भी जनता के एक बड़े प्रोजेक्ट पर पानी फिरा कर।

क्या है सिंगटाली की अनियमितता?
जिस स्थान पर यह रिजार्ट बन रहा है वहां सिंगटाली-व्यासघाट मोटरमार्ग के तहत पुल निर्मित होना था। इस पुल के लिए विश्व बैंक ने धनराशि भी स्वीकृत कर ली थी। यदि ये पुल बन जाता तो गढ़वाल और कुमाऊं के बीच की दूरी घट जाती, लेकिन त्रिवेंद्र सरकार ने इस रिजाॅर्ट मालिक को लाभ पहुंचाने के लिए स्वीकृत पुल प्रोजेक्ट को दरकिनार कर यहां की बजाए तीन किलोमीटर आगे का शासनादेश कर दिया गया। सूत्रों का कहना है कि विश्व बैंक से अब इस नये शासनादेश के बाद यह धनराशि नहीं मिलेेगी साथ ही 27 किलोमीटर का मार्ग का फेरा भी बढ़ जाएगा। यानी एक रिजाॅर्ट के लिए प्रदेश सरकार को करोड़ों की चपत तो लगी ही है साथ ही यात्रियों को लंबी दूरी भी तय करनी होगी।

स्टर्डिया बनाम सिंगटाली-एक जैसी समानता
अब कहानी के ट्विस्ट की बात करते हैं। दो घटनाएं एक जैसी हैं। पहली स्टर्डिया भूमि घोटाला और दूसरा सिंगटाली भूमि घोटाला। दोनों में एक समानता ये भी भाजपा के शासनकाल में 2006 से 2010 के बीच हुई । दोनों की फाइल एक दिन में ही चपरासी से लेकर मंत्री पास कर देते हैं। सीएलयू भी हो जाता है। और यह नियम भी लागू नहीं होता कि गैर-प्रवासी तत्कालीन नियम 250 वर्ग गज से अधिक भूमि नहीं खरीद सकता। सिंगटाली के किसानों से दिल्ली के शेख सराय निवासी राजीव सावरा के नाम वर्ष 1413 फसली के खतोनी में 1.1838 हेक्टयर भूमि दर्ज की गई है।

खतोनी के काॅलम 7.12 में खातेदार के नाम पर तीन स्थानीय खातेदारो के भू-खण्डो का अन्तरण दिनांक 01 मार्च 2006 को दर्ज की गयी है। खतौनी की प्रविष्टियांे के अनुसार कुल 55 खेतों की 1.171 हैक्टेयर भूमि है। यह फसली भूमि थी, लेकिन गैर प्रवासी को किस तरह से इतनी बड़ी भूमि बेच दी गई और रिजाॅर्ट के लिए लैंड यूज चेंज करने में किसकी भूमिका थी, उसका इशारा मौजूदा एसीएस ओमप्रकाश की ओर है। सूत्रों का कहना है कि एसीएस जनरल खंडूड़ी पर भ्रष्टाचार की कालिख लगाने वाले नौकरशाह प्रभात कुमार सारंगी के भी राइट हैंड माने जाते थे। सूत्र बताते हैं कि निशंक सरकार में त्रिवेंद्र रावत जब ढैंचा बीज प्रकरण में फंसे तो कृषि सचिव ओमप्रकाश ही थे।

सूत्र बताते हैं कि खेती की जमीन का व्यवसायिक उपयोग करने की अनुमति देने में भी ओमप्रकाश का हाथ है। यह भी कहा जाता है कि सीएम त्रिवेंद्र रावत से म्यूजियम और रिजार्ट का उद्घाटन करने के लिए एसीएस ओमप्रकाश प्रेशर ही था । विवादित भूमि और एनजीटी के गंगा किनारे 100 मीटर की परिधि के नाम्र्स का इस तरह से धज्जियां उड़ाकर उद्घाटन समारोह को यादगार बना दिया गया। दरअसल, यह एक उदाहरण मात्र है। उत्तराखंड में भूमाफिया और भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने में नौकरशाहों के एक गुट जिम्मेदार रहा है। इसका खुलासा भी आने वाली कड़ियों में किया जाएगा।

नोट:- मैंने पार्ट एक में कहा था कि कोरोना वारियर पर लिखूंगा। जरूर लिखूंगा, साथ ही सवाल है कि दून के डीएम आशीष श्रीवास्तव को दो जिम्मेदारी क्यों? एमडीडीए के वीसी भी वही है और स्मार्ट सिटी के सीईओ भी। आखिर क्या मामला है कि हरिद्वार के ईमानदार डीएम दीपक रावत को तो मेलाधिकारी बना दिया और वहां डीएम कोई और बिठा दिया गया। जबकि देहरादून में आशीष श्रीवास्तव पर तीन बड़ी और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। क्या कारण है। सब मलाईदार पोस्ट हैं। जल्द ही इस पर।

(उक्त विचार और भाषा पूर्णतः लेखक के हैं और इनसे नेटवर्क 10 की सहमति का कोई संबंध नहीं है।)

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