उत्तराखंड: पूर्व फौजी की कलाकारी बनी मिसाल, कहीं लुप्त न हो जाए पहाड़ों की काष्ठकला?

पौड़ी (नेटवर्क 10 संवाददाता)। एक ऐसा कलाकार जिसने पहाड़ के युवाओं के लिए एक मिसाल कायम की और अब उसे डर है कि कहीं ये कला खत्म न हो जाए। उसकी इच्छा है कि युवा इसे सीखें और स्वरोजगार के तौर पर इसे अपनाएं। इस कलाकार का नाम है अरविंद मुदगिल। अरविंद सेना से रिटायर हैं और काष्ठकला के माहिर हैं।

अरविंद ने पहाड़ की इस कला को संजोने का काम किया है। आपको बता दें कि अब पहाड़ में काष्ठकला के बहुत कम लोग बचे हैं जो इसे जानते हैं। अरविंद चाहते हैं कि युवा पीढ़ी इसे सीखे ताकि भविष्य में ये कला जीवित रहे। इस पूर्व सैनिक की बनाई कलाकृतियां न सिर्फ युवाओं को आकर्षित कर रही हैं, बल्कि उन्हें कुछ नया करने को भी प्रेरित कर रही हैं। पूर्व सैनिक का कहना है कि उनका मुख्य ध्येय युवाओं को पीढ़ियों से चली आ रही इस विधा से परिचित कराना है, जिससे इसे वह भविष्य का आधार बना सकें।

अरविंद मुदगिल पौड़ी में रहते हैं। जिला मुख्यालय की कोटद्वार रोड पर रहते हैं। अरविंद 1994 में सेना से रिटायर हुए। रिटायर होने के बाद वे पौड़ी लौट गए। अरविंद का कहना है, ‘मैंने देखा कि पहाड़ी क्षेत्रों की पहचान रही काष्ठ कला धीरे-धीरे दम तोड़ रही है। जबकि, एक दौर में शायद ही कोई घर रहा होगा, जहां काष्ठ निर्मित वस्तुएं न हों।’

अरविंद बताते हैं कि काष्ठ कला उन्हें बचपन से ही आकर्षित करती रही है, लेकिन सेवा में रहते अपने इस शौक को पूरा नहीं कर पाए। सेवानिवृत्ति के बाद उनके पास पर्याप्त वक्त था, सो उन्होंने अपने घर में ही शोरूम बनाकर सूखी लकड़ी और जड़ों पर कलाकृतियां उकेरने का कार्य शुरू किया। बताया कि वह अबतक एक हजार से अधिक कलाकृतियां बना चुके हैं। इनमें पहाड़ की संस्कृति को प्रतिबिंबित करती वस्तुएं, पेन स्टैंड, जीव-जंतु और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित आकृतियां शामिल हैं।

अरविंद कहते हैं कि कोशिश करो तो पहाड़ी क्षेत्रों में स्वरोजगार के साधनों की कमी नहीं है। उनकी बनाई कलाकृतियां भी रोजगार का आधार बन रही हैं। वह समय-समय पर विद्यालयों में जाकर बच्चों को यह विधा सीखने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे भविष्य को लेकर निश्चिंत हो सकें।

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