(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल की कलम से)
कोटद्वार। रेत बजरी के खनन से होने वाली तबाही का अनुमान लगाना है तो कोटद्वार में सिद्धबली मंदिर के नीचे पुल के पास एक नज़र मार लीजिये. पचास मीटर से कम एरिये में पांच पोकलैंड मशीनें धकापेल खनन में लगीं हैं. ऐसी ही हरकतों के कारण तीन साल पहले कोडिया का रेलपुल बह गया था. जितना इज़ाज़त है उससे कहीं ज़्यादा खनन हो रहा है.
रेत ढुलान के लिए रास्ता दिया गया है ताकि विशाल ट्रक शहर के बाहर बाहर निकल जायें. लेकिन गैरकानूनी खनन वाला रेत ट्रैक्टरों में भरकर शहर के भीतर चोर रास्तों से यहाँ वहां ले जाया जा रहा है.
मेरे घर के सामने से ही हर रोज़ सुबह चार पांच बजे से ही ट्रैक्टरों की आवाजाही शुरू हो जाती है. लगता है किसी शहर में नहीं किसी खदान के इर्द गिर्द रह रहे हैं. शोर तो होता ही है, गलियां भी उखड़ती हैं और रेत उड़ता बिखरता है सो अलग.
सबसे बड़ी बात ये है कि एक पोकलैंड मशीन कम से कम सौ मज़दूरों को बेरोज़गार करती है.
लॉकडाउन के लिए कोने कोने में पुलिस तैनात है. फिर ये ट्रेक्टर कैसे चल रहे हैं….
उत्तराखंड सरकार और प्रशासन की ऊपर-नीचे की असली कमाई रेत और दारू से ही होती है. दोनों खुल गए हैं. वो तो ठीक है ….पर सारी भरपाई हफ्ते भर में कर देनी है क्या….?…ट्रैक्टरों को तो रोको भाई…
बाहर पुलिस नहीं घूमने देती, घर के सामने चोरी के माल वाले ट्रैक्टरों ने धमाल मचाया हुआ है…अजीब लॉकडाउन है यार…
हम घर में बंद हैं, रेत चोरों की चांदी कट रही है….