नैनीताल: हाईकोर्ट से उत्तराखंड सरकार को बड़ा झटका लगा है. हाईकोर्ट ने स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड के इस संबंध में लिए गए फैसले पर रोक लगा दी है। साथ ही केंद्र, राज्य सरकार समेत जैव विविधता बोर्ड, स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं. पिछले दिनों भी हाईकोर्ट ने इस मामले में 80 पर्यावरण प्रेमियों के पत्र का संज्ञान लेते हुए पक्षकारों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है.
24 नवम्बर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिये शिवालिक एलिफेंट रिजर्व को डिनोटिफाई करने का निर्णय लिया गया था. हवाला दिया गया कि राज्य में विकास परियोजनाएं इसके चलते प्रभावित हो रही हैं. देहरादून निवासी रेनू पॉल ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि देश में 1993 से प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत 11 एलिफेंट रिजर्व नोटिफाइड किए गए थे. जिसमें शिवालिक एलिफेंट रिजर्व प्रमुख था. लगभग 6 जिलों में फैले इस एलीफेंट रिजर्व को सरकार के द्वारा डिनोटिफाइड करने का आदेश जारी किया गया है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि 6 जिलों में फैले एलीफेंट रिजर्व को खत्म करने से हाथियों के अस्तित्व पर संकट गहरा जाएगा. लिहाजा राज्य सरकार के इस आदेश पर रोक लगाई जाए. याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के तीन जजों की खंडपीठ भी हाथियों को संरक्षण के लिए पहले ही अपना एक आदेश सुना चुकी है. बावजूद इसके उत्तराखंड में एलिफेंट कॉरिडोर को खत्म किया जा रहा है.
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने मामले में सुनवाई करते हुए राज्य वन्य जीव बोर्ड के फैसले पर रोक लगा दी. प्रोजेक्ट एलिफेंट के तहत राज्य सरकार ने 2002 में शिवालिक एलिफेंट रिजर्व की अधिसूचना जारी की थी , जिसमें कुल 14 एलिफेंट कॉरिडोर हैं, जिसका राज्य में क्षेत्रफल 5200 वर्ग किलोमीटर है.
शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व है क्या?
शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व उत्तराखंड में विशाल हाथियों का इकलौता अभ्यारण्य है. ये एशियाई हाथियों का घर है, जो अफ्रीकन हाथियों के बाद धरती के दूसरे सबसे विशालकाय हाथी होते हैं. उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब पांच हजार वर्ग किलोमीटर का है.