नैनीताल : कोरोना के कारण इस बार उत्तराखंड में कीड़ाजड़ी (Yarshagumba) यानी यारशागुंबा का चुगान नहीं हो सका। इससे स्थानीय लोगों की आजीविका चौपट होने के साथ में राज्य सरकार को भी राजस्व की बड़ी हानि हुई है। एक अनुमान के मुताबिक कीड़ा जड़ी का दोहन न होने से उत्तराखंड को 500 करोड़ से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है। दूसरी ओर चीन को इसका पूरा फायदा मिला है। वह कीड़ा जड़ी के कृतिम उत्पादन के जरिए बड़े मुनाफे की ओर बढ़ रहा है।
अप्रैल से कीड़ा जड़ी (Yarshagumba) के चुगान के लिए वन विभाग द्वारा लाइसेंस जारी किए जाने थे लेकिन लॉकडाउन ने सब कुछ बिगाड़ दिया। न रजिस्ट्रेशन हो पाए और न ही हिमालयी क्षेत्र में कीड़ा जड़ी का चुगान हो पाया। खासकर पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में यह बहुतायत में होती है। पिथौरागढ़ जिले में 37 और बागेश्वर जिले की छह वन पंचायतों द्वारा कीड़ा जड़ी का चुगान किया जाता है। इसके लिए सरकार लाइसेंस भी जारी करती है।
यहां लोग प्रतिवर्ष 500 किलो तक इसका चुगान करते हैं। जिससे करीब 500 करोड़ का प्रतिवर्ष कारोबार होता है। गत वर्षों में एक किलो कीड़ा जड़ी 8 से 10 लाख तक के दाम में बिकी है। सरकार को भी इससे बैैठे बिठाए अच्छा खासा राजस्व मिलता था। वन क्षेत्राधिकारी धारचूला सुनील कुमार के अनुसार इस बार कीड़ा जड़ी का चुगान नहीं हो पाया, लॉकडाउन की वजह से लाइसेंस जारी नहीं हो पाए और विपरीत मौसम भी एक कारण रहा कि लोग चुगान को नहीं आए।
आर्थिकी का बड़ा जरिया है कीड़ा जड़ी
कीड़ा जड़ी स्थानीय लोगों की आर्थिकी का एक बड़ा जरिया भी है। सीजन में कीड़ा जड़ी (Yarshagumba) के चुगान से एक परिवार दो से तीन लाख तक की आमदनी आसानी से कर लेता था। इसी कमाई से उनका सालभर का ख़र्चा निकलता है, लेकिन इस बार कोरोना ने सब कुछ तबाह कर डाला। कारोबारियों के अनुसार इस बार लॉकडाउन के चलते चुगान नहीं हो पाया और उन्हें लाखों का नुकसान उठाना पड़ा है। कोरोना के बाद मंदी जैसे हालात आने वाले साल में भी संकट बढ़ाने वाले हैं। खरीददार पैसा निवेश करने से डरेंगे और अगर ऐसा ही रहा तो लोग चुगान से दूर होते जाएंगे।
चीन के कृतिम बाजार को मिला फायदा
कीड़ा जड़ी (Yarshagumba) की दुनियाभर में मांग है और उत्तराखंड में इसका उत्पादन बहुतायत में होता है। चीन की पहली पसंद भी उत्तराखंड रहा है। वह हर साल उत्तराखंड से अधिक से अधिक माल उठा लेता है और बढ़ी हुई कीमत में उसे दूसरे देशों को बेचता है। बढ़ती मांग और अधिक कीमत के चलते चीन ने इसका बड़े पैमाने पर कृतिम उत्पादन भी शुरू किया है। इस बार उत्तराखंड, नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक जड़ी का दोहन न हो पाना चीन के कृतिम बाजार के लिए वरदान साबित हुआ है। चीन दूसरे देशों के सामने अपने कृतिम कीड़ा जड़ी का विकल्प पेश कर रहा है। इसकी कीमत प्राकृतिक जड़ से कम भी है और चीन का दावा है कि उसके कृतिम कीड़ा जड़ी में सारे गुण प्राकृतिक की तरह ही मौजूद हैं। चीन दूसरे देशों को इस बार बड़े पैमाने में अपनी कृतिम सप्लाई करने जा रहा है।
कीड़ा जड़ी के दोहन की नीति
वर्ष 2018 में राज्य सरकार ने कीड़ा जड़ी (Yarshagumba) के कारोबार को वैध घोषित कर दिया था। सरकार का उद्देश्य कीड़ा जड़ी के दोहन और संग्रहण को लीगल कर इसकी तस्करी को रोकने और स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ना था। जिसके तहत सरकार जड़ी खरीदने वाले व्यापारियों को पंजीकृत करती है। उत्तराखंड वन विकास निगम कीड़ा जड़ी एकत्रित करने के लिए लाइसेंस जारी करता है। 100 ग्राम जड़ी एकत्रित के लिए पंजीकरण शुल्क एक हजार रुपये रखा गया है। स्थानीय लोग बड़ी संख्या में लाइसेंस प्राप्त कर हिमालयी इलाकों में निकल जाते हैं। अप्रैल माह में इसका रजिस्ट्रेशन शुरू होता है और मई-जून में कीड़ा जड़ी का सर्वाधिक दोहन किया जाता है। दो महीने के आसपास स्थानीय लोग परिवार सहित वहीं कैंप लगाकर रहते और चुगान करते हैं। चुगान के बाद सरकार उनसे कीड़ा जड़ी खरीद लेती है।
बेशकीमती है कीड़ा जड़ी
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप से ताक़त बढ़ाने का काम करता है। खासकर यौनवर्धक दवाओं को बनाने में इसका प्रयोग लिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसकी भारी डिमांड है। शक्ति बढ़ाने में इसकी करामाती क्षमता के कारण चीन में इसकी मुंहमांगी क़ीमत मिलती है। यही कारण है कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में इसकी भारी तस्करी भी होती है। एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की कीड़ा जड़ी तस्करी के माध्यम से चीन और नेपाल में बेची जाती है। इसकी ख्याति का एक कारण यह भी है कि इसके इस्तेमाल के बाद खिलाड़ी डोपिंग टेस्ट में नहीं पकड़े जाते।