आर्टिफिशल इंटेलीजेंस से लेकर प्राचीन चिकित्सा पद्धति पर हुई चर्चा

देहरादून: स्वच्छ, स्वस्थ और समृद्धि को लेकर उमा इंटरटेनमेंट एंड एडवरटाइजिंग द्वारा “मंथन” अध्याय-1 कार्यक्रम का आयोजन देहरादून में किया गया है। इस दौरान उत्तराखंड हेल्थ सिस्टम डेवलमेंट परियोजना और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के काम के तहत उत्तराखंड स्वास्थ्य संगमम् कार्यक्रम को लेकर वक्ताओं ने आर्टिफिशल इंटेलीजेंस से लेकर प्राचीन चिकित्सा पद्धति पर चर्चा की है।

मंथन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रमुख सचिव आर० के० सुधांशु ने कहा कि स्वास्थ्य, स्वच्छता और समृद्धि को लेकर जो यहां मंथन हुआ है यही आज के लिए महत्वपूर्ण है। चिकित्सा सुविधा के साथ साथ आयुष को भी हमे महत्व देना होगा। क्योंकि आज प्राचीन उपचार का भी आवश्यकता हो रही है। इसलिए विकास के साथ साथ प्राचीन चिकित्सा पद्धति को भी हमे जोड़ना विकसित चिकित्सा से जोड़ना होगा।

हमारे ग्रंथों में धर्म, मोक्ष और काम को लेकर बात की गई है, यहीं से एलोपैथी का उद्भव होता है। उन्होंने कहा कि समृद्धि तभी आएगी जब स्वच्छ रहेंगे। इसीके बाद अच्छी स्वास्थ्य की कल्पना की जा सकती है। इन दोनों के ठीक होने से समृद्धि अपने आप आएगी। उन्होंने आज के बढ़ते ई कचरा पर चिंता^ जताई, पर सरकार इसके लिए कार्य कर रही है। सरकार ई कचरा के व्यवस्थित रिसाइकिल करने की योजना बना रही है। जिसका सफल उदाहरण केदारनाथ में किया गया है। अतः प्लास्टिक को रिफंड को लेकर राज्य के लिए एक नीति बनाई जा रही है जो जल्दी ही सामने आने वाली है।

कार्यक्रम में विशिष्ठ अथिति आर. राजेश कुमार, सचिव स्वास्थ्य ने कहा कि एक कहानी को सच में बदलने के लिए सालों लग जाते है। इसलिए कहानी ऐसी हो जो सजग हो, स्वस्थ हो और समृद्धि की ओर आगे बढ़ रही हो। उन्होंने एआई को लेकर चिंता भी जताई और आज की आवश्यकता भी बताई। चिकित्सा सुरक्षा के लिए क्या एआई विश्वसनीय है यह आज भी प्रश्नचिन्ह है। कहा कि ए आई और रोबोट से मानवसंसाधन को कोई नुकसान न हो, हमे इस ओर आगे बढ़ाना होगा, विशेषकर स्वास्थ्य चिकित्सा के प्रति।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में ए एन एम को विशेष सुविधा दी जा रही है, आशा कार्यकर्ताओं को भी एक खास प्रशिक्षण दिया गया है। यानी स्वास्थ्य के अंतिम कर्मचारी को भी व्यवस्थित चिकित्सा की सामान्य जानकारी हो इसके लिए कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि AI को आर्टिफिशल इंटेलीजेंस नहीं होना चाहिए बल्कि असिस्टेंट इंटेलिजेंस होना चाहिए।

पद्मश्री डॉ० आर० के० जैन ने कहा है कि बीमारी को कम करने के लिए हमे सजग रहना है। इसके लिए पहले हमें दूषित पानी से बचना होगा। ताकि सीधे 50 प्रतिशत बीमारी से बचा जा सकता है। खांसी, छींक आदि के संक्रमण से बीमारी फैलती है इससे बचने के लिए स्वयं को सजग रहना है।

उमा कंपनी कि सीएमडी स्वाति रावल ने इंटरटेनमेंट एंड एडवरटाइजिंग कंपनी के कार्यों की जानकारी दी है। कहा कि पर्यावरण और स्वास्थ्य विभाग की विकास यात्रा में यह सहभागी है। उत्तराखंड सरकार के साथ काम करना हमारी कंपनी के लिए सम्मान की बात है उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अंकुर कंसल उपस्थित थे और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने स्टॉल के माध्यम से अपना काम प्रदर्शित भी किया है।

कार्यक्रम में परियोजना निदेशक स्वास्थ्य बिपुल कुमार ने बताया कि विश्व बैंक के सहायता से विभिन्न अस्पतालों का उच्चीकरण किया गया है। इसके तहत राज्य के चार चिकित्सालय को उचीकरण किया गया है। जिसमें टिहरी, पौड़ी, रामनगर, अल्मोड़ा पिथौरागढ़ सम्मिलित है। इन अस्पतालों में स्वास्थ्य से संबंधित संयंत्रों को लेकर सुधार कार्य किए गए हैं। सिटी स्किन मशीन भी लगाई गई है। जबकि परियोजना के तहत रामनगर, पौड़ी, टिहरी कलस्टर में मोबाइल बैन भी चलाई जा रही है। जो गांव गांव में अच्छी स्वस्थ सेवाएं दे रहे है।

जबकि इन तीन कलस्टरों में नौ अस्पताल पीपीपी मोड पर चलाए जा रहे है।पांच सुदूर क्षेत्र के अस्पताल को सुदृढ़ किया गया है। इधर NAPH के तहत – दूरस्थ क्षेत्र में विशेष स्वास्थ्य कर्मियों की पूर्ति की गई है। राज्य के 400 पीएचसी को चार मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधिकारी के साथ जोड़ा गया है। 10 अस्पतालों में आईसीयू आदि के बेहतरीन कार्य किए जा रहे हैं। उन्होंने यह भी बताया कि स्वास्थ्यकर्मियों को समय समय पर प्रशिक्षण दिया गया है। आपदा के समय सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य की होती है को कैसे त्वरित लाभ दिया जाए इसके लिए उन्होंने पिछले वर्ष 2526 हेल्थ वर्करो को स्थानीय स्तर पर प्रशिक्षित किया है।

एड्स कंट्रोल सोसायटी के एडिशनल डायरेक्टर डॉ० अमित शुक्ल ने कहा कि स्वास्थ्य में कुछ बहुत ऐसी समस्याएं है जिन पर हम सार्वजनिक रूप से बात नहीं कर सकते है जैसे एड्स आदि। इसके लिए उन्होंने तीन स्तर पर कार्य किया है कि कम से कम लोगों में यह बीमारी हो, सही समय पर दवाईयां पहुंचाई जाए और सामाजिक भ्रांतियों को दूर करने के लिए लगातार जागरूकता अभियान चलाया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि एड्स कंट्रोल सोसायटी का प्रयास रहता है कि वे 95 प्रतिशत लोगों तक पहुंच बना पाए है ताकि इस तरह की बीमारियों से लड़ा जा सके। इस बीमारी के संवेदनशील क्षेत्र है गर्भवती महिला, ट्रक ड्राइवर और नशा करने वाले लोग या अनैतिक यौन संबंध। इसलिए वे जागरूकता अभियान को विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों, विलियंट्री कार्यकर्ताओं के सहयोग से ऐसे संवेदनशील क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलते है।

कह सकते हैं कि इस अभियान के तहत उन्होंने उपचार के लिए दवाईयां भी बांटी तो लगभा 12 हजार लोगो तक पहुंच भी बनाई यानी इतने ही लोगों को एड्स जैसी बीमारी ने प्रभावित भी किया होगा। उन्होंने जानकारी साझा करते हुए कहा कि 1992 से लेकर अब तक इस अभियान ने कुल जनसंख्या में से 80 से 85 प्रतिशत लोगों तक पहुंच बना पाई है, जिसे वे आगामी समय में 95 फीसदी लोगों तक ले जाना चाहते है। हालांकि आज एड्स को रोकने के लिए सुविधा है, दवा है, प्रचार प्रसार है पर ड्रग्स व अन्य नशा आदि ने इस घातक बीमारी को ज्यादा बढ़ा दिया है। उत्तराखंड में इसके सबसे अधिक मामले उधमसिंह नगर, देहरादून, हल्द्वानी हरिद्वार में मिलते है। इसलिए एड्स कंट्रोल सोसायटी ने ऐसे मरीजों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कॉन्सलिंग की व्यवस्था भी की है ताकि लोगों को मादक पदार्थों के सेवन करने से छुड़ाया जा सके।

स्वास्थ्य शिक्षा के अतिरिक्त निदेशक डा० अजेंद्र बिष्ट ने कहा कि लगातार विभिन्न विभागों और अन्य सामाजिक संगठनों के साथ स्वास्थ्य शिक्षा के लिए प्रसार का कार्य किया जाता है। कोविड के दौरान हेल्थ से जुड़े कार्यकर्ताओं के साथ लगातार कार्य किया गया है। जिसमें मेडिकल कॉलेज, हेल्थ सेंटर, नर्सिंग सेंटर आदि के साथ कार्य किया गया है। इस दौरान उनके साथ 2837 चिकित्सक जुड़े है। राज्य को 1455 स्टाफ नर्सिंग की आवश्यकता है। जिसके लिए त्वरित कार्रवाई गतिमान है। स्वास्थ्य केंद्रों को व्यवस्थित और तकनीकी से जोड़ने के लिए कई अन्य शैक्षिक कार्य किए जा रहे है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, डिजिटल भुगतान आदि की सुविधा की गई है। साथ साथ स्वास्थ्य केंद्रों के ढांचागत विकास, कर्मचारियों की उचित व्यवस्था के लिए लगातार कार्य किया जा रहा है।

उत्तराखंड स्वास्थ्य प्राधिकरण आयुष्मान के निदेशक डा० बी एस टोलिया ने कहा कि राज्य में आयुष्मान योजना से लोगों को काफी सुविधा मिल रही है। उन्होंने जानकारी साझा करते हुए कहा कि अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना अब 70 साल से ऊपर के लोगो के लिए भी कार्य कर रही है। जबकि सड़क दुर्घटना के लिए इस योजना में अलग से प्राविधान किया गया है। जिसमें डेढ़ लाख का उपचार अमुक दुर्घटन होने वाले को मिलेगा ही। इधर राज्य में अब तक 65 प्रतिशत लोगों का आयुष्मान कार्ड बन चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि तीन पहाड़ी जनपदो में आयुष्मान कार्ड के अंतर्गत कोई प्राइवेट अस्पताल नहीं है। यदि देखा जाए तो विभिन्न अस्पतालों में प्रतिदिन 1000 से भी अधिक मरीजो का आयुष्मान कार्ड के अंतर्गत उपचार किया जाता है। इसके लिए राज्य में 53 अस्पतालो को आयुष्मान योजना के अंतर्गत अनुबंधित किया गया है। मरीजों के उपचार में आयुष्मान कार्ड बहुत मदद कर रहा है। वे इसका भुगतान संबधित अस्पताल को 7 दिन में कर देते है।आयुष्मान की सुविधा को व्यवस्थित बनाने के लिए आयुष्मान मित्र नियुक्त किए गए है जो स्टाफ की कमी पूरी कर रहे है। उन्होंने बताया कि भारत डिजिटल मिशन के तहत हेल्थ प्रोपेशनल की सूची बनाई जा रही है।

इस दौरान आयुष, आयुष्मान विभाग, एड्स कंट्रोल सोसायटी यानी स्वास्थ्य विभाग के सभी अन्य गतिविधि केंदों के प्रमुखों को
अच्छे कार्यों के लिए प्रशस्ति पत्र भी प्रदान किया गया है। इधर मंथन कार्यक्रम के साथ जुड़कर विकलांग शुभम जोशी ने अपने बैग बनाने आरंभ किए, और देहरादून शहर में बेचते है को भी इस कार्यक्रम में 21 हजार की धनराशि के साथ सम्मानित किया गया है।

cims कॉलेज के चेयरमैन ललित जोशी ने कहा कि वे सजग इंडिया के मिलकर नशा के खिलाफ एक अभियान चला रहे है। इस दौरान श्री जोशी ने नशा के विरुद्ध चलाया गया अभियान की एक गतिविधि रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है। वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डा० कुड़ियाल ने कहा कि हम कैसे बीमार होने से बचे इस ओर अब ध्यान देने की जरूरत है। हमे अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाना होगा। सहज जीवन जीने की तरफ बढ़ाना होगा। लोक दिखावा से बाहर आना होगा। आज एक खतरा नशा का और बढ़ गया है। नशा का यह रोग युवाओं में ज्यादा बढ़ रहा है। इस ओर सरकार को एक्शन प्लान बनाना होगा।

नारकोटिक्स विभाग के सुपरिटेंडेंट रणजीत सिंह ने बताया कि ड्रग्स ने युवाओं को अपने कब्जे में लेना आरंभ कर दिया है। युवा इसकी आदत में पड़ गए है। उन्होंने कहा कि पुराने नशेड़ी नए को इसलिए फंसाते है कि उन्हें खर्च चाहिए। नशा से कैसे छुटकारा पाया जाए इस पर विशेष कार्य योजना की आवश्यकता है। यह भी ढूंढना होगा कि आखिर यह ड्रग्स आया कहां से। कार्यक्रम में अनिल सती सहित स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कई छात्र छात्राएं उपस्थित रही है। जबकि कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ० जैनेश्वरी ने किया है।

 

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