उत्तरकाशी। कोरोना काल में लाल चावल की मांग बढ़ गई है। कारण साफ है कि सफेद चावल के मुकाबले लाल चावल में जिंक सात गुना, आयरन छह गुना, फाइबर चार गुना अधिक होता है। इतना ही नहीं इसमें प्रचुर मात्रा में रोग प्रतिरोधक बढ़ाने वाले तत्वों का भंडार भी है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी की रवांई घाटी में लाल चावल का एक सीजन में साढ़े पांच हजार मीट्रिक टन का उत्पादन होता है, जो खेतों से ही बिक जाता है। रवांई के लाल चावल को नई पहचान देने की तैयारी भी चल रही है। कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विभाग वर्ष 2016 से इसे जीआई (ज्योग्रोफिकल इंडिकेशन) टैग दिलाने का प्रयास कर रहा है, जिसकी कार्यवाही अब अंतिम चरण में हैं। इससे उत्पाद एक ब्रांड बन जाएगा और मूल्य के साथ ही उत्पादन में बढ़ोतरी को भी कई तरह के कार्य हो पाएंगे। इसके अलावा किसानों के नाम से बीज भी पेटेंट हो जाएगा।
उत्तरकाशी जनपद के रवांई घाटी में लाल धान प्रमुख रूप से रामा सिरांई और कमल सिरांई क्षेत्र में होता है। इन दोनों पट्टियों में साढ़े पांच हजार मीट्रीक टन से अधिक लाल धान का उत्पादन होता है। इसके अलावा मोरी ब्लाक की गडूगाड़ पट्टी और नौगांव ब्लाक में भी लाल चावल का उत्पादन होता है। लाल चावल में पौष्टिकता के साथ-साथ औषधीय गुण भी व्यापक मात्रा में पाए जाते हैं, जिससे ये स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। लाल चावल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही कैंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद है।
कई राज्यों में है लाल चावल की अच्छी-खासी मांग
उत्तरकाशी महाविद्यालय के वनस्पति विज्ञान के प्रो. महेंद्र पाल परमार कहते हैं कि लाल धान (जिसे स्थानीय भाषा में चरधान कहते हैं) में एंटी कैंसर रोधी क्षमता पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है। लाल चावल मधुमेह और कैंसर रोगियों के लिए रामबाण है। चरधान चावल का सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही ब्लड प्रेशर भी नियंत्रित रहता है। इस चावल के उपयोग को देखते हुए उत्तराखंड के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, दिल्ली सहित अन्य राज्यों में भी इसकी अच्छी-खासी मांग है।
ये चावल हिमालय पर्वत, दक्षिण तिब्बत, भूटान और दक्षिण भारत में ही मिलता है। इसमें विटामिन बी, फाइबर, जिंक, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, सैलीनियम और दूसरे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। मोरी और पुरोला क्षेत्र में करीब 2500 हेक्टेयर भूमि पर लाल धान की खेती होती है। लाल चावल की बाजार में कीमत 100 से 120 रुपये प्रति किलो है। पुरोला क्षेत्र में तो खेतों से ही ये चावल बिक जाता है।
रवांई क्षेत्र में लालधान की रोपाई को लेकर खास परंपरा है। रोपाई के लिए स्थानीय देवता दिन निश्चित करते हैं। इसमें सामूहिकता की भवना भी दिखती है। ग्रामीण सुबह से शाम तक खेतों में रोपाई करते हैं। सामूहिक रोपाई की प्रथा यहां बहुत पुरानी है। सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार ढोल की ताल के साथ ग्रामीण खेत में पहुंचते हैं। फिर परम्परागत वाद्य यंत्र ढोल-दमाऊ की धुन पर पौध रोपाई करते हैं। इस प्रथा को जीवित रखने वाले ग्रामीण रोपाई के समय जीतू बगड़वाल के जागर भी लगाते हैं। इसी तरह की परंपरा लाल धान की कटाई को लेकर भी है।
चरक संहिता में भी है उल्लेख
कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ के प्रभारी अधिकारी डॉ. पंकज नौटियाल ने बताया कि सफेद चावल में जिंक 0.5 मिग्रा/100ग्राम, फाइवर 0.6 ग्राम/100 ग्राम, प्रोटीन 6.8ग्राम/100ग्राम, आयरन 1.2 मिग्रा/100 ग्राम, जबकि लाल चावल में आयरन 5.5 मिग्रा/100 ग्राम और जिंक 4.0 मिग्रा/100 ग्राम, प्रोटीन 8.0 ग्राम/100 ग्राम, फाइवर 3.0 ग्राम/100 ग्राम तक पाया जाते हैं।