अंब्रेला एक्ट से सिर्फ एक ही यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध रहेंगे डिग्री कॉलेज

राज्य में सरकारी सहायताप्राप्त अशासकीय डिग्री कॉलेजों समेत सभी संबद्ध कॉलेजों पर अंब्रेला एक्ट का शिकंजा रहेगा। ये कॉलेज अब मनमाने तरीके से विभिन्न विश्वविद्यालयों से पाठ्यक्रमों की संबद्धता नहीं ले सकेंगे। खास बात ये है कि एक से अधिक विश्वविद्यालयों से संबद्धता लेने की स्थिति में कॉलेजों को भवन, भूमि समेत सभी आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था अलग-अलग करनी होगी।

राज्य बनने के तकरीबन 20 साल बाद सरकारी विश्वविद्यालयों के एक ही अंब्रेला एक्ट के दायरे में आने का रास्ता साफ हो गया है। इससे संबंधित उत्तराखंड राज्य विश्वविद्यालय विधेयक को विधानसभा पारित कर चुकी हे। अब राजभवन की मुहर लगने के बाद उक्त विधेयक अंब्रेला एक्ट का रूप लेगा। प्रस्तावित एक्ट में पहली बार डिग्री कॉलेजों की संबद्धता को लेकर सख्त और स्पष्ट रुख भी अपनाया गया है। वर्तमान में अलग-अलग विश्वविद्यालयों से संबद्धता लेकर एक ही कॉलेज में अलग-अलग पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। मौजूदा एक्ट में इस व्यवस्था पर रोक लगाने के लिए प्रविधान नहीं था। नया कानून लागू होने के बाद कॉलेजों के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा। ऐसे में एक कॉलेज के लिए एक विश्वविद्यालय के अतिरिक्त अन्य विश्वविद्यालय से संबद्धता लेना कठिन हो जाएगा।

पांच साल बाद स्थायी संबद्धता

हालांकि, प्रस्तावित एक्ट में संबद्धता को लेकर कॉलेजों को होने वाली परेशानी का भी खास ख्याल रखा गया है। अब निरंतर पांच वर्षों की अवधि के लिए संबद्ध होने वाले कॉलेज को यूजीसी व अन्य नियामक निकायों और विश्वविद्यालय के मानक पूरा करने की स्थिति में स्थायी संबद्धता हासिल हो जाएगी। सिर्फ परिनियमों, अध्यादेशों और विनियमों के उल्लंघन की स्थिति में विश्वविद्यालय को संबद्धता वापस लेने का अधिकार होगा।

कॉलेज में प्रबंध तंत्र नहीं तो नियंत्रक होगा तैनात

प्रस्तावित एक्ट में अनानुदानित अशासकीय कॉलेज में प्रबंध तंत्र के अस्तित्व में नहीं रहने की स्थिति में राज्य सरकार को वहां प्राधिकृत नियंत्रक नियुक्त करने की शक्ति दी गई है। प्रबंध तंत्र का विधिसम्मत गठन होने तक प्राधिकृत नियंत्रक कार्य कर सकेंगे। प्रस्तावित एक्ट में प्रविधान है कि राज्य सरकार संबद्ध कॉलेजों के निरीक्षण, दंड और जुर्माने के लिए जरूरत पडऩे पर समय-समय नियम बना सकती है।

प्रशासक भी बन सकेंगे कुलपति

प्रदेश में सरकारी विश्वविद्यालयों में कुलपति पद के लिए विश्वविद्यालय अध्ययन क्षेत्र से जुड़े प्रशासक, वरिष्ठ वैज्ञानिक व उद्योग क्षेत्र के विशेषज्ञ भी आवेदन कर सकेंगे। उनके पास न्यूनतम दस वर्ष की सेवा का अनुभव होना चाहिए। प्रस्तावित विधेयक में कुलपति पद के लिए उक्त पात्रता राज्य विश्वविद्यालयों की अलग-अलग प्रकृति को देखते हुए की गई है। इनमें तकनीकी विश्वविद्यालय, कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, चिकित्सा शिक्षा विश्वविद्यालय, आयुर्वेद विश्वविद्यालय शामिल हैं।

पैनल को लेकर सरकार को दिए ज्यादा अधिकार

कुलपति की नियुक्ति के लिए गठित की जाने वाली सर्च कमेटी में तीन के बजाय पांच सदस्य होंगे। कमेटी में शामिल दो अतिरिक्त सदस्यों को सरकार नामित करेगी। सर्च कमेटी कुलपति पद के दावेदारों का पैनल बनाएगी, उसका अंतिम परीक्षण सरकार करेगी। इसके बाद ही इसे राजभवन भेजा जाएगा। सरकार सर्च कमेटी को एक बार पैनल दोबारा परीक्षण के लिए लौटा सकेगी। इसमें कुलपति की आयु सीमा 70 वर्ष तक बढ़ाई गई है।

रजिस्ट्रार पद के लिए समान योग्यता

राज्य विश्वविद्यालयों में अब कुलसचिव को लेकर विवाद नहीं होगा। इस पद के लिए सभी विश्वविद्यालयों में समान योग्यता लागू होगी। यह एक्ट लागू होने पर तकनीकी विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद के लिए बीटेक डिग्री की पात्रता की शर्त समाप्त होगी। कुलसचिव की नियुक्ति 50 फीसद सीधी भर्ती और 50 फीसद पदोन्नति से होगी। विश्वविद्यालय से कॉलेजों को दी जाने वाली संबद्धता के नियमों को भी कड़ा किया गया है।

डॉ धन सिंह रावत (उच्च शिक्षा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार) का कहना है कि राज्य विश्वविद्यालयों को 20 साल बाद अपना एक्ट देने के लिए सरकार ने अहम कदम उठाया है। इससे विश्वविद्यालयों के संचालन में प्रशासनिक और शैक्षणिक व्यवस्था में एकरूपता लाई जा सकेगी। इससे उच्च शिक्षा को गुणवत्तापरक बनाने में भी मदद मिलेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *