देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। उत्तराखंड में कोरोना से स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। लगातार आंकड़े बढ़ रहे हैं। दरअसल उत्तराखंड में जांच की रफ्तार बेहद ढीली है। प्रवासी लगातार प्रदेश में लौट रहे हैं और उनकी जांच नाम मात्र की हो रही है। पहाड़ी इलाकों में तो हालात और भी बुरे हैं।
उत्तराखंड में हालाता सबसे ज्यादा खराब प्रवासियों के लौटने की वजह से ही बने हैं। बाहरी राज्यों से बड़ी संख्या में लौट रहे प्रवासियों के कारण अब उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र भी खतरे की जद में हैं। अभी तक कोरोना मुक्त रहे जनपद उत्तरकाशी में संक्रमण की दस्तक इसका संकेत भी दे चुकी है। लेकिन, सरकारी तंत्र है कि नींद से जागने को तैयार ही नहीं। मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पहाड़ में जांच की रफ्तार अभी भी बहुत धीमी है।
सरकार ने जांच केंद्र तो बढ़ाए हैं लेकिन यहां सैंपलिंग कम हो रही है। कुछ दिन पहले श्रीनगर मेडिकल कॉलेज की लैब में कोरोना की जांच शुरू होने के बाद भी जांच व सैंपलिंग का दायरा जस का तस है। यही नहीं, प्रदेश में प्रतिदिन की जा रही औसत जांच की संख्या भी फिर घट गई है। एकबारगी यह आंकड़ा प्रतिदिन 350 जांच तक आता दिख रहा था। लेकिन, बढ़ते मामलों के बीच अब यह घटकर 250 जांच प्रतिदिन तक पहुंच गया है। जबकि कोरोना की आशंका को खत्म करने के लिए ज्यादा से ज्यादा जांच ही एकमात्र विकल्प है।
अभी तक उत्तराखंड वापसी के लिए दो लाख से ज्यादा लोग पंजीकरण कर चुके हैं। जिनमें 56,672 वापस लौट भी चुके हैं। वहीं एक जनपद से दूसरे जनपद में भी 56 हजार से अधिक लोगों की आवाजाही हुई है। ऐसे में भाविष्य की आशंकाओं को खत्म करने के लिए टेस्ट की संख्या बढ़ानी ही होगी, वरना कोरोना से पार पाने की दिशा में बढ़ रहे उत्तराखंड में फिर भयावह स्थिति पैदा हो सकती है।