याद करना एक जननायक को… (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदनमोहन उपाध्याय की पुण्यतिथि पर विशेष)

(वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी की कलम से)
बहुत हल्की सी याद है। वे एक खुली जीप में रानीखेत से द्वाराहाट आते-जाते थे। उनके बारे में बहुत सारी कहानियां। बहुत सारे मिथक। किंवदंतियां। द्वाराहाट-रानीखेत या कह सकते हैं पूरे पाली पछांऊ के लिये वे एक युग पुरुष थे। अजेय योद्धा। निर्भीक नायक। जनता के लिये लड़ने वाला नेता। द्वाराहाट के स्याल्दे मेले में उन पर झोडा बन गया- ‘मदना मोहना त्येरि जै-जैकारी हो/त्वी ल्याछै स्कूल मदना त्वी ल्याछै गाड़ी।’ आजादी की लड़ाई के योद्धा मदन मोहन उपाध्याय हम बच्चों के लिए हमेशा कौतूहल का विषय रहे। बहुत सारी कहानियां उनके बारे में प्रचलित थी। हम बहुत गौर से उन कहानियों को सुनते। ये कहानियां गांव की महिलाओं से लेकर छोटे कस्बों तक किसी से भी सुनी जा सकती थी, किसी लोकगाथा की तरह। इन्हीं कहानियों से मदनमोहन उपाध्याय जी को हमने जाना। द्वाराहाट के बमनपुरी गांव से लेकर इलाहाबाद के आनंद भवन, अंग्रेजों की गिरफ्त से भागने वाले विद्रोही, मुंबई में गुप्त रेडियो के संचालन से लेकर आजाद भारत में उत्तर प्रदेश की विधानसभा में विपक्ष के उपनेता के रूप में उन्हें जानने-समझने का एक लंबा दौर है। प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदनमोहन उपाध्याय जी की आज पुण्यतिथि है। हम उन्हें श्रद्धापूर्वक अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
उन दिनों हमारे गांव पड़ोस में मदनमोहन उपाध्याय जी के बारे में एक कहानी प्रचलित थी- ‘एक बार मदनमोहन उपाध्याय जी को पकड़ने के लिये अंग्रेज पुलिस ने उनका घर चारों तरफ से घेर दिया। उपाध्याय जी घर के अंदर ही थे। बाहर निकलने का कोई रास्ता न देखकर उन्होंने धोती-पेटीकोट पहना और सिर पर डलिया रखकर अंग्रेज पुलिस के सामने ही भाग गये।’ इस तरह की बहुत सारी कहानियां उनके बारे में कही जाती थी। उन्हें लोग एक साहसी नेता के रूप में जानते थे। हम जब कालेज जाने लगे तो हमारे कुछ साथियों ने द्वाराहाट में उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें याद करना शुरू किया। मैं भी गगास से इस आयोजन में शामिल होने जाता। इस आयोजन में विपिन भट्ट, गणेश भट्ट, जगत रौतेला, प्रमोद साह आदि थे। फिर उपाध्याय जी को नये सिरे से जानना शुरू हुआ।
मेरे बडबाज्यू के साथ उनका निकट का रिश्ता था। हमारे घर में उनकी कुछ चिट्ठियों भी थी। मुझे उनके बारे में बहुत सारी बातें बडबाज्यू और बाद में बाबू से जानने को मिली। इंदिरा गांधी के अभिनन्दन में प्रकाशित ‘भारत वाणी’ में मदनमोहन उपाध्याय जी के एक लेख में ‘बानर सेना’ की स्थापना का जिक्र है। इसमें उनका लिखा देशभक्ति गीत है जो जुलूसों में गाया जाता था। और भी बहुत सारे स्त्रोत हैं उन्हें जानने के। मदन मोहन उपाध्याय जी का जन्म अल्मोडा जनपद के द्वाराहाट विकासखंड के बमनपुरी गांव में 25 अक्तूबर, 1910 में हुआ। उनके पिता का नाम जीवानंद उपाध्याय था। उन दिनों द्वाराहाट शिक्षा का महत्वपूर्ण केन्द्र था। जीवानंद उपाध्याय यहां के प्रतिष्ठित मिशन स्कूल में अध्यापक थे।
मदनमोहन उपाध्याय आठ भाई-बहन थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा द्वाराहाट में हुई। आगे की पढ़ाई नैनीताल में हुई। इसके बाद वे इलाहाबाद चले गये। उनके बड़े भाई शिवदत्त उपाध्याय मोतीलाल नेहरू के निजी सचिव थे। बाद में जवाहरलाल नेहरू के भी निजी सचिव रहे। वे इलाहाबाद के आनंद भवन में रहते थे। वहीं मदनमोहन जी भी रहने लगे। यहां उन्हें मदनमोहन मालवीय, सरदार बल्लभ भाई पटेल पटेल, जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं का सान्निध्य प्राप्त हुआ। जब वे इलाहाबाद गये तो उनकी उम्र मात्र बारह साल की थी। उन दिनों आनंद भवन आजादी के आन्दोलन का केन्द्र था, उपाध्याय जी के बाल मन मे इसका गहरे तक प्रभाव पड़ा। वे राष्ट्रीय आंदोलन को बहुत नजदीक से न केवल देख रहे थे, बल्कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उसमें शामिल भी हो रहे थे। इसी सक्रियता के चलते पहली बार सोलह वर्ष की उम्र में वे कमला नेहरू के साथ गिरफ्तार होकर नैनी जेल गये।
यहां से उनकी राष्ट्रीय आंदोलन में लगातार भागीदारी बढती गई। उपाध्याय जी 1936 में अपनी वकालत पूरी कर वापस रानीखेत आ गये और यहां सक्रिय रूप से कांग्रेस के साथ आजादी के आंदोलन में भाग लेने लगे। उनकी सक्रियता को देखते हुये कांग्रेस में उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाने लगी। वे रानीखेत छावनी परिषद के उपाध्यक्ष चुने गये। अल्मोड़ा जिला कांग्रेस कमेटी की ओर से उन्हें प्रांतीय कमेटी का प्रतिनिधि चुना गया। बाद में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के लिये चुने गये। यह वह दौर था जब कांग्रेस के अंदर समाजवादी विचार के युवा अलग पहचान बना रहे थे, जिनमें जयप्रकाश नारायण, अरुणा आसिफ, अच्युत पटवर्धन, राम मनोहर लोहिया आदि सक्रिय थे। पहाड़ के युवाओं का एक बड़ा तबका इनसे प्रभावित था। द्वाराहाट के उभ्याडी गांव में समाजवादियों का एक बड़ा सम्मेलन 28-29 अक्तूबर 1939 को हुआ। जिसे विमलानगर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इसमें आचार्य नरेन्द्र देव और सेठ दामोदर स्वरूप के अलावा बड़ी संख्या में देशभर के नेताओं ने भाग लिया। इस सम्मेलन के आयोजकों में मदनमोहन उपाध्याय, हरिदत्त कांडपाल और हरिदत्त मठपाल की मुख्य भूमिका रही। यह सम्मेलन यहां के युवाओं में राजनीतिक चेतना को बढाने वाला साबित हुआ।
इसके बाद मदनमोहन उपाध्याय जी की सक्रियता और बढ़ गयी। उन्हें हमेशा गरम दल का नेता माना जाता रहा। वे बहुत ऊर्जा के साथ जनता के बीच जाते। चालीस का दशक आते-जाते आंदोलन गति पकड़ने लगा। अंग्रेजी हुकूमत के लिये मदनमोहन उपाध्याय जी सिरदर्द बनने लगे। उन्हें गिरफ्तार कर एक साल की सजा सुना दी। वे एक साल तक गोविन्दबल्लभ पंत जी के साथ अल्मोड़ा जेल में रहे। जब 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ तो मदनमोहन उपाध्याय जैसे आंदोलनकारियों के तेवर भी उग्र होने लगे। पुलिस की लगातार उन पर नजर थी और उन्हें मासी से गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन मदनमोहन उपाध्याय जी ने अपना प्रतिकार जारी रखा। जब पुलिस उन्हें जेल ले जा रही थी तो नैनीताल के पास गेठिया में पुलिस को चकमा देकर वे फरार हो गये। यह बहुत बड़ी घटना थी। अंग्रेजों ने उन्हें जिन्दा या मुर्दा पकड़ने पर 1000 रुपये का इनाम घोषित किया।
पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद वे किसी तरह मुंबई पहुंचे। यहां उनकी मुलाकात जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसिफ अली और राममनोहर लोहिया जैसे नेताओं से हुई जो भूमिगत होकर आंदोलन चला रहे थे। इन लोगों ने मिलकर भूमिगत रहते हुये ‘आजाद हिन्द रेडियोज’ को स्थापना की। इस रेडियो के लिये मदनमोहन उपाध्याय जी ने रेडियो ट्रांसमीटर के संचालन का महत्वपूर्ण काम किया। अब तक वे पूरी तरह अंग्रेजों के निशाने पर थे। उन पर 1944 में डिफैंस आॅफ इंडिया एक्ट के तहत जज ने इंएथैसिया अर्थात उनकी अनुपस्थिति में कालापानी की सजा सुनाई। वर्ष 1945 में उन्हें मुंबई में 25 साल की सजा सुनाई गई। एक साल बाद गिरफ्तार कर उन्हें फिर अल्मोड़ा जेल में बंद कर दिया गया। जब देश में अंतरिम सरकार बनी तो सब कैदियों को छोड़ा जाने लगा। मदनमोहन उपाध्याय को भी अल्मोड़ा जेल से रिहा कर दिया गया। जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो उन्होंने रानीखेत में झंडा फहराकर नये युग का आगाज़ कराया।
आजादी के बाद मदनमोहन उपाध्याय जी जनता की सेवा करने के लिये ‘प्रजा सोशलिस्ट पार्टी’ में शामिल हुये। उन्होंने 1952 के पहले चुनाव में रानीखेत (उत्तरी) सीट से चुनाव लड़ा। वे उत्तर प्रदेश की विधानसभा के लिये चुने गये। विधानसभा में विपक्ष के उपनेता रहे। मदनमोहन उपाध्याय को एक निर्भीक और जनपक्षधर नेता के रूप में लोग याद करते हैं। उन्होंने हमेशा जनता की समस्याओं के समाधान को ही अपना राजनीतिक अभीष्ट माना। उस दौर में उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क आदि विकास कार्य कराये। उनकी पहचान एक जननेता के रूप में रही। उनका नेहरू परिवार से पारिवारिक संबंध होने के बावजूद कभी राजनीतिक विचारधारा में आड़े नहीं आया। उनके बड़े भाई शिवदत्त उपाध्याय तीन बार रीवा मध्यप्रदेश से सांसद और दो बार राज्यसभा के सांसद रहे। उन्होंने अपनी राजनीतिक पहुंच का भी इस्तेमाल नहीं किया। रानीखेत में 1 अगस्त, 1978 को उनका निधन हो गया।
(हमने क्रिएटिव उत्तराखंड-म्यर पहाड़ की ओर से उनका पोस्टर प्रकाशित किया था।)
संदर्भ:
1. मदनमोहन उपाध्याय जी के सुपुत्र हिमांशु उपाध्याय जी से बातचीत
2. फोटो साभार: हिमांशु उपाध्याय एवं ‘सरफरोशी की तमन्ना’, संपादक: डाॅ. शेखर पाठक

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