देहरादून (नेटवर्क 10 संवाददाता)। क्या आपको पता है कि भगवान बद्रीविशाल का अभिषेक एक अलग तरीके से किया जाता है। इसमें गाड़ू घड़ा का बेहद महत्व है। और क्या आप गाड़ू घड़ा के बारे में जानते हैं। गाड़ू घढ़े का महत्व भगवान बद्रीविशाल के कपाट खुलने की प्रक्रिया के साथ ही शुरू हो जाता है। गाड़ू घड़ा से ही कपाट खुलने की प्रक्रिया शुरू होती है। आज हम आपको ये पूरी प्रक्रिया बताते हैं।
राजपरिवार की सुहागिनें पिरोती हैं तेल
दरअसल भगवान बद्रीनाथ का अभिषेक इसी गाड़ू घड़े के तेल से किया जाता है। ये तेल टिहरी जिले के नरेंद्रनगर राजमहल में पिरोये गए तिलों से निकाला जाता है। ये तेल राजमहल में ही निकाला जाता है। इसे पीले वस्त्रों में सुसज्जित राजपरिवार से जुड़ी सुहागिनें निकालती हैं।इस दौरान सुहागिनें व्रत धारण कर पीले रंग के कपड़े से मुंह व सिर ढककर रखती हैं। तेल निकालने के बाद उसे एक घड़े में भरा जाता है, जिसे गाडू घड़ा कहते हैं। इसके बाद गाडू घड़ा (तेल कलश) यात्रा बदरीनाथ धाम के लिए प्रस्थान करती है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार बसंत पंचमी पर नरेंद्रनगर राजमहल में राजपुरोहित महाराजा की जन्म कुंडली देखकर भगवान बदरी विशाल के कपाट खोलने की तिथि और मुहूर्त निकालते हैं। इसी दिन तेल पिरोने की तिथि भी तय होती है।
ऐसे शुरू होती है यात्रा
ये तेल कलश चमोली के डिम्मर गांव स्थित श्री लक्ष्मी-नारायण मंदिर में रखा जाता है। गांव में पहुंचने पर तेल कलश की पूजा-अर्चना होती है। बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से चार दिन पूर्व तेल कलश को डिम्मर गांव से जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर लाया जाता है। अगले दिन नृसिंह मंदिर से बदरीनाथ के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी की अगुआई में तेल कलश के साथ आदि शंकराचार्य की गद्दी रात्रि विश्राम के लिए योग-ध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर पहुंचती है। अगले दिन यात्रा बदरीनाथ धाम के लिए रवाना होती है। इसमें गरुड़जी, देवताओं के खजांची कुबेरजी व भगवान नारायण के बालसखा उद्धवजी की डोलियां शामिल होती हैं। परंपरा के अनुसार ब्रह्ममुहूर्त में बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाते हैं।