(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)
-आखिर जूनियर नौकरशाह आशीष पर इतना बोझ क्यों?
– दून के डीएम, एमडीडीए के वीसी और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के सीईओ हैं आशीष
– नियुक्ति कार्मिक लेकिन सिक्का चलता है एसीएस ओमप्रकाश और राधिका झा का
देहरादून। 2007 से लेकर 2012 बैच के आईएएस अफसरों में त्रिवेंद्र सरकार 2011 बैच के आईएएस डा. आशीष श्रीवास्तव पर क्यों मेहरबान है? क्या वो मुख्यमंत्री के अपर सचिव रहते हुए सीएम त्रिवेंद्र रावत के लाडले अफसर हैं? या वो सभी जूनियर नौकरशाहों में सबसे अधिक योग्य हैं कि उन्हें प्रदेश की अस्थायी राजधानी यानी देहरादून के तीन अहम पदों पर सुशोभित कर दिया गया। एमडीडीए के वीसी और देहरादून स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्ट के सीईओ की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंप दी गई? यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर क्यों?
देहरादून के डीएम सी रविशंकर का सरकार ने महज छह महीने से भी कम समय में तबादला कर दिया। सी रविशंकर को एक सुलझा हुआ और ईमानदार अधिकारी के तौर पर जाना जाता है। वो सैनिक स्कूल के छात्र रहे हैं तो स्वाभाविक है कि अनुशासित भी हैं। राजनीति और नौकरशाही के गठजोड़ में ऐसे अफसरों से सब बचते हैं। सर्वविदित हैं कि उत्तराखंड की आईएएस लाॅबी में मौजूदा समय में दो ही सीनियर अफसरों की चलती है, एसीएस ओमप्रकाश और राधिका झा की।
दोनों ही नौकरशाहों की त्रिवेंद्र सरकार में तूती बोल रही है। दोनों ही नौकरशाह विवादित हैं। यह तय माना जा रहा है कि जून में मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह अपना चार्ज एसीएस ओमप्रकाश को ही सौंपेंगेे। यानी प्रदेश को तमाम विवादों से घिरे ओमप्रकाश को ही मुख्य सचिव के तौर पर झेलना होगा। तो क्या माना जाए कि एसीएस ओमप्रकाश अपनी फील्डिंग सजा रहे हैं? ओमप्रकाश और आशीष श्रीवास्तव की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं।
सियासी सूत्रों के अनुसार अपर सचिव आशीष श्रीवास्तव को तीनों पोस्ट निधारित रणनीति के तहत प्रदान की गई हैं। एमडीडीए और स्मार्ट सिटी दोनों ही मलाईदार पोस्ट हैं। एमडीडीए देहरादून की जनता के लिए एक सफेद हाथी साबित हो रहा है लेकिन मसूरी और देहरादून के सभी प्रोजेक्टों और भवन नक्शों की फुल पावर यही निहित है। एमडीडीए को प्रदेश में हो रहे भ्रष्टाचार की ऐसी नदी कहा जाता है कि जिस पर आज तक कोई बांध नहीं बना। यहां एक पावरफुल आर्किटेक्ट की लाॅबी है।
यानी जितने भी सरकारी, गैरसरकारी और निजी प्रोजेक्ट, रिहाशियी या कामर्सियल भवन बनते हैं, उनके नक्शे एक आर्किटेक्ट लाॅबी को सौंपे जाते हैं। बताया जाता है कि बीके सिंह आर्किटेक्ट और बिहारी महासभा का सीए रितेश चैधरी जो एसीएस ओमप्रकाश के खासमखास हैं, अधिकांश प्रोजेक्ट इन्ही को मिलते हैं। यानी सब कुछ तय है।
सूत्रों का कहना है कि यह आर्किटेक्ट लाॅबी मेयर सुनील उनियाल गामा के फाइनेंसर है। सूत्रों के अनुसार यह लाॅबी नगर निगम की जमीनों को खुर्द-बिर्दु करना, खरीद-फरोख्त करना भी इसमें शामिल है। जहां सह्रसधारा में सैनिक धाम बनने जा रहा है वो जमीन भी किस्मत से बच गयी। वरना यह जमीन भी ठिकाने लग जाती।
सवाल किसी के भी मन में कौंध सकता है कि जब प्रदेश में कई नौकरशाह जिनमें सीएम के निकटस्थ दीपेंद्र चैधरी जैसे नौकरशाहों के पास कोई जिम्मेदारी नहीं है तो फिर आशीष श्रीवास्तव को इतनी बड़ी और अहम तीन जिम्मेदारियां क्यों? कोरोना से जंग चल रही है, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट शुरू हो गया है, शहर में कंस्ट्रक्शन शुरू हो गया है यानी बिल्डरों के नक्शे पास करने का समय है।
आपदा का बड़ा फंड आया है। लेकिन हाईकोर्ट के उस निर्णय का क्या, जिसमें कहा गया था, कि दून की सड़कों को अतिक्रमण मुक्त किया जाएं। यह अभियान क्यों दम तोड़ गया? कुछ लोगों के ही घर, दुकान और संस्थान ही तोड़ेे गये तो क्यों अन्य छोड़ दिये गये। देहरादून की प्रमुख सड़कें क्यों जिक-जाॅक बनकर रह गयी हैं। इस पर अगली रिपोर्ट जल्द।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। नेटवर्क 10 टीवी का उनसे सहमत होने का संबंध नही है)