सेब की जड़ों को अपनी ‘जड़ों’ से जोड़ता बागवान

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश भट्ट की कलम से)

यह एक प्रेरक कहानी है। ऐसे बागवान की कहानी, जो इन दिनों सेब की जड़ों को अपनी जड़ों से जोड़ने की कोशिश में है। यह कहानी पहाड़ के बंजर खेतों का ‘हल’ है तो उजड़ते गांवों की उम्मीद। यह एक सुनहरे भविष्य का सपना है, उन कर्मवीरों के लिए मिसाल है, जो मंजिल तक पहुंचने के लिए न पगडंडियां ढूंढते हैं और न किसी बैसाखी का सहारा।

कहानी है उत्तराखंड मूल के हिमाचली बागवान विक्रम रावत की, जिनके जुनून और आधुनिक सोच ने उन्हें बैंकर से एक सफल बागवान की पहचान दिलायी। विक्रम हिमाचल प्रदेश में आधुनिक और एकीकृत बागवानी के पर्याय हैं। हिमाचल स्थित उनका क्लासन फार्म आज एकीकृत बागवानी का सफल माडल है। क्लासन फार्म मार्डन एप्पल फार्मिंग में एक विश्वसनीय नाम है। जो न सिर्फ सेब की रूट स्टाक फार्मिंग पर काम कर रहा है, बल्कि सेब की मार्डन फार्मिंग के लिए कंसल्टेंसी भी देता है और अपनी नर्सरी से रूट स्टाक भी उपलब्ध कराता है।

विक्रम रावत का क्लासन फार्म और नर्सरी आज बडे़ कारोबार में तब्दील हो चुका है। बाग, बगीचे, बागवानी में नाम विक्रम रावत को विरासत में नहीं मिला, यह सब उन्होंने अपने दम पर खड़ा किया। यह उनकी डेढ़ दशक की मेहनत का परिणाम है। जिस वक्त हिमाचल के विश्वविद्यालयों में कोई हाई डेंसिटी फार्मिंग की सही से जानकारी तक देने वाला नहीं था तब विक्रम रावत ने अपने स्तर पर ही इंटरनेट और दूसरे माध्यमों से जानकारियां जुटाकर हाई डेंसिटी फार्मिंग शुरू की। (फोटो के बाद पढ़ें)

हिमाचल ग्रामीण बैंक में सेवाएं देते हुए उन्हें लगता था कि किसान को परंपरागत बागवानी से पर्याप्त उत्पादन नहीं मिल रहा है। उन्हें पता था कि दूसरे सेब उत्पादक देशों में काफी पहले रूट स्टाक से सेब उत्पादन हो रहा है। इसलिए उन्होंने पहले सेब के रूट स्टाक मंगाकर किसानों को हाई डेंसटी फार्मिंग के लिए प्रेरित करने कोशिश की, और जब कामयाबी नहीं मिली तो खुद बागवानी करने की ठानी ।

इस काम में उन्हें हौसला मिला अपनी पत्नी से, उनकी पत्नी हिमाचल मूल की हैं। लिहाजा साल 2002 में उन्होंने अपनी पत्नी के नाम से मंडी जिले के करसोग इलाके में तकरीबन ढाई हेक्टेयर बंजर जमीन खरीदी। इस जमीन को साल 2003 से 2009 तक उनके परिवार ने दिन-रात मेहनत कर आबाद किया । अमेरिका से रूट स्टाक मंगाए और हाई डेंसिटी एप्पल फार्म तैयार किया। बकौल विक्रम रावत शुरूआत में गलतियां भी होती रहीं और उन्हें वह सुधारते भी चले गए, मगर न वह रूके और न पीछे मुड़कर देखा।

पूरे नौ साल लगे उन्हें क्लासन फार्म को शक्ल देने में, इस बीच कई बार लोगों ने हतोत्साहित करने की कोशिश की लेकिन उन्हें खुद पर पूरा भरोसा था। उसी भरोसे का नतीजा है कि आज ढाई हेक्टेयर के इस फार्म में हाईडेंसिंटी एप्पल की फार्मिंग के साथ ही चेरी, नाशपाती, बादाम आदि फलों का उत्पादन होता है।

एप्पल फार्मिंग के साथ ही विदेशी सब्जियां भी उगायी जाती हैं तो साथ में डेरी फार्मिंग भी होती है। क्लासन फार्म में एक फार्म स्टे के साथ ही देशी विदेशी नस्ल की गायें, बकरियां और मुर्गियां भी हैं। फार्म में रेन वाटर हार्वेसटिंग की व्यवस्था है तो वर्मी कंपोस्ट प्लांट और एक मिनी कोल्ड स्टोरेज भी। इस सबके अलावा जो सबसे अहम है वह है सेब की रूट स्टाक नर्सरी।

हिमाचल के मंडी जिले में स्थित क्लासन फार्म आज एक हाई डेंसिटी एप्पल फार्मिंग और इंटीग्रेटड फार्मिंग के लिए ट्रेनिंग और कंसल्टेंसी सेंटर बन चुका है। ईराक, ईरान और अफगानिस्तान आदि देशों से प्रगतिशील किसान यहां प्रशिक्षण लेने आते हैं । देश विदेश से लोग यहां फार्म देखने आते हैं। विक्रम रावत प्रगतिशील किसानों को सेब का उत्पादन कैसे बढ़ाएं, इसके ‘मंत्र’ बताते हैं।

क्लासन फार्म में सेब की 54 किस्में हैं, जिसमें से दो किस्म उनकी खुद की तैयार की हुई हैं। एक क्लासन और दूसरी उनके पौड़ी स्थित मूल गांव क्लूण के नाम पर। विक्रम रावत की दो बेटियां हैं दोनों ही अपने माता-पिता के साथ बागवानी में पूरा साथ देती हैं। बड़ी बेटी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुकी है और बागवानी ही करना चाहती है। विक्रम रावत बताते हैं क्लासन फार्म को माडल रूप में तैयार करने में चालीस लोगों के स्टाफ के साथ ही परिवार के सभी सदस्यों की मेहनत रही है। क्लासन फार्म की परंपरा है कि हर त्यौहार या किसी भी खास मौके पर सभी वृक्षारोपण करते हैं। अभी तक उनका परिवार अपने फार्म के आसपास तकरीबन चार हजार देवदार के पौधे लगा चुका है। आज देवदार के यही पेड़ सेब के बगीचे के लिए लाभदायक बने हुए हैं।

विक्रम रावत की इस कहानी में अब एक नया अध्याय जुड़ता है। कहते हैं कि हर कामयाब शख्स अपनी कामयाबी के शिखर पर पहुंचकर एक बार अपनी जड़ों की ओर जरूर देखता है। ऐसा ही कुछ विक्रम रावत के साथ भी हुआ। उत्तराखंड के खाली होते गांवों और बंजर जमीन की तस्वीरों ने जब उन्हें अंदर तक झकझोरा तो साल 2016 में उन्होंने अपने गांव का रूख किया। कनेक्टिविटी और जलवायु के लिहाज से सेब उत्पादन के लिए उन्होंने पौड़ी को बेहद मुफीद पाया।

सेब उत्पादन की संभावनाओं को देखते हुए उन्होंने गांव के युवाओं को बंजर पड़े खेतों पर सेब की खेती के लिए प्रेरित किया। शुरूआती अनुभव यहां भी उनका बहुत अच्छा नहीं रहा मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। साल 2016 से वह हर साल क्लूण आ रहे हैं, हर बार वह गांव में सेब के पौधे लगवाकर गए, गांव के लोगों को प्रेरित किया, उन्हें सेब की खेती से मुनाफे का गणित समझाया। शुरू में सफलता नहीं मिली लेकिन अब धीरे-धीरे गांव में रह रहे परिवार दिलचस्पी लेने लगे हैं। क्लूण गांव में सेब के एक हजार से अधिक पौधे लग चुके हैं। कुछ पौधों से तो फसल भी मिलनी शुरू हो गयी है।

विक्रम रावत की कोशिश को ‘पंख’ लगाए पौड़ी के प्रगतिशील कलेक्टर धीराज गर्ब्याल ने। विक्रम रावत के गांव वाले भले ही न समझे हों लेकिन धीराज गर्ब्याल ने विक्रम रावत की अपने गांव में सक्रियता को पूरे पौड़ी जिले के लिए ‘अवसर’ में तब्दील कर दिया। जिन्होंने पौड़ी में सेब उत्पादन की पूरी योजना नए सिरे से तैयार की। इसके लिए उन्होंने पौड़ी में सेब उत्पादन के लिए उपयुक्त इलाकों का चयन किया और विक्रम रावत की क्लासन नर्सरी के साथ अनुबंध किया। रिकार्ड वक्त में पौड़ी जिले में सेब के नौ माडल बगीचे तैयार किए गए हैं, इन बगीचों में ग्यारह हजार से अधिक पौध लगायी गयी हैं।

वर्षों से बंजर पड़े पटेलिया फार्म को आबाद करने का जिम्मा भी कलेक्टर धीराज गर्ब्याल ने विक्रम रावत को दिया। उद्यान विभाग के पटेलिया स्थित इस फार्म में हाई डेंसटी एप्पल फार्म के साथ ही रूट स्टाक नर्सरी तैयार की जा रही है। पटेलिया फार्म पर दो हजार से अधिक सेब के रूट स्टाक लगाए जा चुके हैं। माडल के तौर जिलाधिकारी पौड़ी के आवासीय परिसर में एक सेब का बगीचा तैयार किया गया है, यहां लगाए गए रूट स्टाक तो फल देने की तैयारी में हैं ।

उधर विक्रम रावत क्लूण में भी क्लासन की तर्ज पर एकीकृत बागवानी का माडल खड़ा करने की तैयारी में हैं। विक्रम रावत का कहना है कि सेब एक ऐसा फल है जो उन्नति लाता है, एक बार सेब के एक बगीचे से पैसा आना शुरू हो जाएगा तो फिर लोग खुद ब खुद प्रेरित होते चले जाएंगे। वह हिमाचल का अपना उदाहरण देते हैं कि हिमाचल में पहले लोग परंपरागत खेती से हटने के लिए तैयार नहीं थे। परंपरागत बागवानी के कारण हिमाचल में सेब का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 8 से 9 टन के करीब है, जबकि विदेशों में सेब का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 40 से 50 टन होता है।

विदेशों में सेब का उत्पादन सालों पहले से रूट स्टाक पर हो रहा है। हिमाचल में उनके हाई डेंसिटी फार्मिंग शुरू करने के बाद अब तमाम लोग अपने बगीचों को रूट स्टाक पर ला रहे हैं। वहां भी कोशिश हो रही है कि प्रति हेक्टेयर उत्पादन 20 टन तक हो जाए। हिमाचल में सरकार भी इस ओर गंभीर हुई है तो विश्वविद्यालयों में भी इस पर काम शुरू हो गया है ।

विक्रम रावत की मानें तो सेब की खेती बड़े मुनाफे की है, अगर इसे प्लानिंग के साथ सामूहिक तौर पर किया जाए। उनका कहना है कि मार्डन फार्मिंग यानी एकीकृत बागवानी उत्तराखंड का चेहरा बदल सकती है। उनका मानना है सेब उत्पादन किसान की आर्थिकी को मजबूत कर सकता है, बशर्ते इसे बड़े पैमाने पर किया जाए । उत्तराखंड के साथ खास बात यह है कि यहां सेब की फसल हिमाचल से पहले तैयार होगी, जिसे बाजार में दाम भी अच्छा मिलेगा ।

एक एकड़ यानी पहाड़ में बीस नाली जमीन पर लगभग 1300 पौधे लगाए जा सकते हैं। पांचवे साल से सारे खर्चे निकालकर 20 नाली के सेब के बगीचे से आसानी से सब खर्चे निकालकर छह लाख रूपए सालाना तक आराम से कमाए जा सकते हैं।

वह कहते हैं कि समस्या है तो समाधान भी है, पहाड़ में एक साथ खेत नहीं हैं तो बागवानी के लिए कंपनी या कोओपरेटिव बनायी जा सकती है। जंगली जानवरों और बंदरों से भी आसानी से फसल को बचाया जा सकता है, जब पता होता है कि सामने खड़ी फसल सोना देने वाली है तो बागवान खड़े होकर फसल की रखवाली करेगा।

बहरहाल पौड़ी में मिशन एप्पल जारी है, कलेक्टर धीराज गर्ब्याल और विक्रम रावत की जुगलबंदी कामयाब रही तो पौड़ी जिला सेब उत्पादन में आने वाले वर्षों में नया इतिहास रचेगा ।

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