उत्तराखंड: आत्मनिर्भरता के लिए स्वरोजगार एक बढ़िया विकल्प, सरकार के पास बड़ा अवसर

(पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पूर्व औद्योगिक सलाहकार रणजीत रावत की कलम से)

इस बीच जब बहुत से प्रवासी भाई बंधु घर वापसी की राह पर है और मीडिया में बहुत सारे लोगों ने इच्छा जताई है की वह उत्तराखंड में ही स्वरोज़गार करना चाहते है ताकि शहरों में फिर वापस ना जाए, जो अच्छी पहल है और वर्तमान सरकार के पास एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी भी ।

मेरे ख़याल से इस महामारी ने बहुत सारे बुनियादी प्रश्न हमारे सामने खड़े किए है की क्या हम कम संसाधनों में जीवन निर्वाह कर सकते है ? क्या जो पश्चिम का अति उपभोक्तावाद है इस महामारी के समय वह पूरी तरह से फेल हो चुका है ? क्या पहाड़ के हज़ारों वर्षों से कम संसाधन और प्रकृति की दी हुई नेमत से ही जीवन यापन की जीवन शैली ही मज़बूत विकल्प है ?

अगर इस समय इस महामारी में कोई ऑपर्टूनिटी है तो वह क्या है ?

मेरे हिसाब से में आपको अपने अनुभव साझा करना चाहूँगा जब दानापानी में मैंने १९९६ में सबसे ज़मीन पर पर काम करना शुरू किया वहाँ लांटिना घास या जिसे पहाड़ में क्वीर कहते है सबसे बड़ा चैलेंज था, जिसे ख़त्म करने में क़रीब तीन साल लगे फिर उस ज़मीन को ओर्गानिक रूप से उपजाऊ होने में समय लगा, रैन वोटर हार्वेस्टिंग के लिए टैंक निर्माण किया आज वहाँ यह एक मॉडल है तथा हम लॉंग सुस्टैंबल डिवेलप्मेंट (दीर्घकालिक स्थायी विकास) मॉडल की तर्ज़ पर एक होटेल और रेस्तराँ चला रहे है जो की इसी ज़मीन की उपज है जिसे हमने आर्थिकी से जोड़ा है जो क़रीब प्रत्यक्ष रूप से क़रीब ५०-६९ लोगों को तथा अप्रत्यक्ष रूप से क़रीब ३००-४०० लोगों को रोज़गार से जोड़ रहा है।

यह सब बताने का मेरा तात्पर्य आपको यह है की हमारी उत्तराखंड की भूमि में स्वरोज़गार के बहुत सारी ऑपर्टूनिटी है बस उन्हें हमें पहचानना है, उसे समय देना है और रातों रात चमत्कार की बातों से बाहर आकर लगातार मेहनत क़रनी है ।

जब हम सरकार में थे हमने मिट्टी परीक्षण कार्ड या soil कार्ड किसानो को दिए जिससे मिट्टी परीक्षण हो और किसानो को वैज्ञानिक तकनीक से बताया जाय की मिट्टी किस फसल के लिए उपयुक्त है, हमने सबसे पहले ज़मीनो को “ओर्गानिक सर्टिफ़िकेट” देने की शुरुआत की थी जो की Europe बाद हमारे राज्य में शुरू हुआ ताकि हमारे किसान भाई अपना ओर्गानिक उत्पाद सर्टिफ़ायड तरीक़े से बेच सके, हमने इसराएल के विशेषज्ञों को बुलाकर कम वर्षा क्षेत्र में फसल उत्पादन तकनीक के तकनीकी सहयोग पर कार्य किया था जिसका लाभ किसानो को मिला ।
आप सभी से आग्रह है आप स्वरोज़गार अपनाए, आत्मनिर्भर बने मै आपकी कोई मदद कर सकूँ मुझे ख़ुशी होगी !

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