(पूर्व विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के औद्योगिक सलाहकार रणजीत रावत की कलम से)
अल्मोड़ा। उत्तराखंड को आत्मनिर्भर बनाने और प्रदेश में स्वरोजगार के लिए उत्तराखंड के स्थानीय फल काफी उपयोगी साबित हो सकते हैं। इससे पहले भी मैंने अपने एक लेख में पहाड़ी सीढ़ीदार खेतों को बेहतरीन ओर्गानिक उत्पादों के उत्पादक केन्द्र में कैसे बदला अपने अनुभव आप लोगों के साथ साझा किए थे।
किन्तु मै आप लोगों बताना चाहूँगा कि सीढ़ीदार खेत मात्र कृषि और पुष्प उत्पादन मात्र के उपयोग ही नहीं अपितु एक खेत से नीचे दूसरे खेत के बीच की जगह भी हम उत्पादकता में बदल सकते है यह कोई नयी चीज़ में नहीं बता रहा हु हमारे पहाड़ में इस जगह में अधिकतर घास या जंगली फल उग जाते है जो अव्यवस्थित रूप में होते है।
किन्तु जब हम इसी चीज़ को स्वरोज़गार और आर्थिकी से जोड़ते है हमें इस जगह का सदुपयोग भी बहुत समझदारी से करना चाहिए । दानापानी फार्म में फ़सलो के साथ साथ गोल्डन Himalayan रैस्पबेरी जिसे हम सभी “हिसालू” के रूप जानते है के भी बहुत सारे झाड़ियाँ(Shrubs) भी लगायी है। इसका वानस्पतिक नाम “रुबूस एल्लिपटिकस (Rubus ellipticus) भी कहते हैं।
हम इसकी आयुर्वेदिक ख़ासियत बाहरी प्रदेश के मेहमानो को समझाते है की गर्मी के मौसम में यह शरीर में फ़्लूइड बैलेन्स या डीहायड्रेशन रोकने के काम आते है और इसका रस कॉफ़ सिरप के रूप में भी इस्तेमाल हो सकता है ।
अतः हमें अपने कृषि उत्पादों के साथ साथ प्राकृतिक रूप से प्रदत्त फलो को भी मार्केट करना चाहिए ताकि हमारे प्रकृति का लाभ बाहर से आए हमारे अतिथि ले सके, इन फलो का स्वाद अनुभव करे और हम इन फलो की माँग बाहरपैदा कर सके फिर इनको इस लेवल पर उत्पादन कर पाए ताकि डिमांड पूरी हो सके यह हाइपथेटिकल है पर यही वो मार्केटिंग है जो हमें मिलकर करनी होगी ।
एक और फल है “तिमील” जिसका वानस्पतिक नाम फायकस औरिक्यूलाता लोऊर (Ficus auriculata Lour) इसके भी बहुत सारे पेड़ हमने प्लांट किए है तथा इसे फल और सब्ज़ी तथा आचार के रूप में भी प्रयोग कर सकते है, तथा यह डायजेस्टिव दवाईके रूप में भी प्रयोग हो सकता है ।
इसी प्रजाति का एक और फल है बेडु। बेडू की भी विदेशों में भारी मांग है। कुल मिलाकर हमारे पहाड़ में ऐसे फल बहुतायत में हैं जिनसे हम अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ कर सकते हैं। इनसे जुड़कर हमारे युवा स्वरोजगार कर सकते हैं और हमारा प्रदेश आत्मनिर्भर बन सकता है।