उत्तराखंड: राहत के नाम पर ये कैसा मजाक है सरकार ?

देहरादून से कैलाश जोशी अकेला की रिपोर्ट

देहरादून। प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार ने राहत के नाम पर पर्यटन व्यवसाइयों को एक एक हजार की आर्थिक मदद की घोषणा की चारों ओर प्रेस विज्ञप्तियों के माध्यम से अपनी वाह वाही करवानी चाही। लेकिन जरा गौर करिए इस मदद पर। हमारे प्रदेश में पर्यटन व्यवसाय से वो लोग जुड़े हैं जो लाखों रुपये खर्च कर होटल व्यवसाय चला रहे थे। यात्रा और पर्यटन मार्ग पर छोटे मोटे व्यवसाय करने वाले लोग पर्यटन व्यवसाय से ही दो जून की रोटी कमाते थे। पर्यटन नगरियों में घोड़ा, पालकी, बोट संचालक आदि इस श्रेणी के व्यवसायी हैं। जरा सोचिए कि क्या एक हजार की आर्थिक मदद से सरकार ने अपना मजाक उड़ाया है या फिर वाहवाही लूटी है?

लॉकडाउन के बाद से ही प्रदेश के पर्यटन क्षेत्र से जुड़े व्यवसाई दो जून की रोटी नहीं कमा पा रहे हैं। आखिर उनके पास जमा पूंजी कितनी होगी। लाखों का कर्ज लेकर होटल खोलने वालों की इस एक हजार रुपये से कितनी मदद होगी। ये तो उनसे सरासर एक भद्दा मजाक है।  एक हजार रुपये वाली इस नौटंकी की बजाय सरकार उनके कारोबार/ आजीविका के सोर्स पर ठोस मंथन करती।

पर्यटन व्यवसाय तो जल्दी से उबरने वाला नहीं दिख रहा है। लगता है कि अगले साल तो इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को रोजी रोटी के लिए तरसना ही पड़ेगा। वैसे भी मंदी की मार इन पर लंबी पड़ेगी।  आखिर इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का भी अपना परिवार है। उनके बच्चे भी पढ़ने लिखने वाले होंगे।

आपको बता दें कि प्रदेश में पर्यटन उद्योग 6 महीने चलता है। इसी 6 महीने में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग अपने लिए सालभर की रोजी रोटी का प्रबंध करते हैं। ऐसा नहीं है कि वे इस उद्योग से लाखों की कमाई कर लेते हैं। गर्मियों में 6 महीने पर्यटक उत्तराखंड आते हैं और शीतकालीन 6 महीने सब कुछ मंदा रहता है।

इस मुद्दे पर अब तक कोई दूसरा राजनीतिक दल भी कुछ नहीं बोला है। जन संघर्ष मोर्चा ने इस मुद्दे को सबसे पहले उठाया है। जन संघर्ष मोर्चा अध्यक्ष एवं जीएमवीएन के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ सिंह नेगी का कहना है कि खुद को महादानी बताने वाली प्रदेश सरकार पर्यटन उद्योग से जुड़े लोगों को एक- एक  हजार की राहत राशि देने की घोषणा कर एक भद्दा मजाक कर रही है| सरकार को चाहिए कि अपनी उपलब्धियों के झूठे विज्ञापनों पर प्रतिवर्ष खर्च होने वाला करोड़ों रुपया जनता का दर्द दूर करने में लगाए |

नेगी ने कहा कि ये उद्योग वर्ष में दो-चार महीने ही चलता है तथा इसी व्यवसाय के सहारे  ये लोग वर्ष भर अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं | चूकि पर्यटन उद्योग इस महामारी व मंदी के कारण अगले साल तक लगभग ठप्प हो गया है तो ऐसे में सरकार को एक ठोस राहत राशि इन लोगों को प्रदान करनी चाहिए थी, लेकिन हैरानी की बात  है कि समाचार पत्रों में छपवाया जा रहा है कि इस घोषणा से इन लोगों में खुशी की लहर है | बड़े शर्म की बात है कि ₹1000 की रकम में 15-20 दिन के लिए दूध भी नहीं आता | मोर्चा सरकार से मांग करता है की आवश्यक  आवश्यकताओं यथा बिजली,पानी,बच्चों की फीस इत्यादि स्वयं वहन कर इनकी चिंता दूर करने की दिशा में काम करे |

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