(वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की कलम से)
– लैंग्वेज प्रेस के अधिकांश पत्रकार भुखमरी के कगार पर
– उत्तरांचल प्रेस क्लब सफेद हाथी बना तो अन्य संगठनों के पदाधिकारी लापता
कोरोना संकट की इस घड़ी में समाज के एक वर्ग है जो सबसे अधिक हाशिए पर पहुंच गया है। गरीब का पेट अंत्योदय और सस्ता राशन, समाज कल्याण की योजनाएं भर रही हैं तो अमीरों ने अपनी मुट्ठी केवल अपनी जरूरतों के लिए खोलनी शुरू कर दी है। एक ओर सरकार कोरोना वारियर्स की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए ढाई करोड़ रुपये दे रही है तो दूसरी ओर जनता तक उनकी आवाज पहुंचाने वाले स्ट्रिंगर और छोटी पोस्ट पर काम करने वाले पत्रकार भुखमरी के कगार पर पहुंच गये हैै।
कई मीडियाकर्मी बेरोजगार भी हो गये हैं। छोटे और मंझोले साप्ताहिक, मासिक और दैनिक अखबारों का न तो सरकारी विज्ञापन मिल रहा है और न ही उनके पास कोई और जीविका उपार्जन का साधन हैं। ऐसे में अखबारों को नियमित जारी रखने की चुनौती भी है। यदि अखबार और पत्रिकाएं नियमित नहीं होंगी तो सूचना विभाग उनको जो गिने-चुने विज्ञापन देता है वो भी देना बंद कर देगा। कुल मिलाकर कोरोना से लैंग्वेज प्रेस खतरे में आ गयी है।
बड़े अखबार और न्यूज चैनलों के स्ट्रिंगरों और स्टाफ रिपोर्टरों की हालत भी खराब है। जान जोखिम में डालकर ये स्टिंªगर खबरें जुटाते हैं लेकिन बदले में उन्हें पांच से दस हजार रुपये ही मिलते हैं। जबकि कई चैनलों और अखबारों ने इनको पिछले कई महीनों से भुगतान भी नहीं किया है। ऐसे में इनका परिवार गंभीर आर्थिक संकट में है। पर किसी को परवाह नहीं है न तो सरकार को और न ही पत्रकारिता की आड़ में दुकान चलाने वाले दलाल पत्रकार संगठनों को।
यदि जूनियर वकीलों को बार काउंसिल पांच हजार रुपये महीने की मदद देगा तो क्या उत्तरांचल प्रेस क्लब कुछ ऐसा नहीं कर सकता। क्लब के पास 300 सदस्य हैं। क्लब हर सदस्य से सालाना 1200 वसूलता है। इसके अलावा क्लब रोजाना हाॅल बुकिंग के अवैध तौर पर 1500 रुपये वसूलता है। क्लब में बार चलता है। इसके अलावा नेता, हंस फाउंडेशन समेत कई संगठनों और सरकारों ने क्लब को आर्थिक मदद दी है। क्लब इस मुश्किल घड़ी में अपने जरूरतमंद सदस्यों को पांच हजार रुपये की मदद तो कर ही सकता है। उत्तराखंड में पत्रकारों के अनेक संगठन हैं। कई नामी-गिरामी पत्रकार इनके कर्ता-धर्ता हैं। पता नहंी कहां हैं वो रावत- फावत-नेगी-फेगी। कहां हैं ये पत्रकारों के तथाकथित नेता। सब लापता हैं।
मेरा अपने साथी पत्रकारों से निवेदन है कि आप स्वाभिमानी हो, लेकिन जरूरत सबको पड़ती है। ऐसे वक्त एक-दूसरे की मदद करें और सुख-दुख के साथी बनें। अपनी समस्याएं एक दूसरे को बताएं। मैं पहले ही कह चुका हूं कि उत्तरजन टुडे परिवार संकट की घड़ी में आपके साथ है और आपके लिए हमसे जो संभव होगा, हम मदद करेंगे। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वो मौजूदा दौर में जूनियर पत्रकारों और छोटे पत्र-पत्रिकाओं के लिए राहत पैकेज लेकर आएं। लाना भी चाहिए। उत्तरांचल प्रेस क्लब से निवेदन है कि वो भी इस दिशा में सोचे। मैं जानता हूं कि क्लब और संगठन में क्या अंतर होता है। फिर भी क्लब इस दिशा में सोचे तो सही?